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25 फ़रवरी 2020

जब क़ुर्आन पढ़ा जाये, तो उसे ध्यान पूर्वक सुनो तथा मौन साध लो। शायद कि तुमपर दया[1] की जाये।

201 ﴿ वास्तव में, जो  आज्ञावास्तव में, जो  आकारीहोते हैं, यदि शैतान की ओर से उन्हें कोई बुरा विचार आ भी जाये, तो तत्काल चौंक पड़ते हैं और फिर अकस्मात् उन्हें सूझ आ जाती है।
202 ﴿ और जो शैतानों के भाई हैं, वे उन्हें कुपथ में खींचते जाते हैं, फिर (उन्हें कुपथ करने में) तनिक भी कमी (आलस्य) नहीं करते।
203 ﴿ और जब आप, इन मिश्रणवादियों के पास कोई निशानी न लायेंगे, तो कहेंगे कि क्यों (अपनी ओर से) नहीं बना ली? आप कह दें कि मैं केवल उसी का अनुसरण करता हूँ, जो मेरे पालनहार के पास से मेरी ओर वह़्यी की जाती है। ये सूझ की बातें हैं, तुम्हारे पालनहार की ओर से (प्रमाण) हैं तथा मार्गदर्शन और दया हैं, उन लोगों के लिए जो ईमान (विश्वास) रखते हों।
204 ﴿ और जब क़ुर्आन पढ़ा जाये, तो उसे ध्यान पूर्वक सुनो तथा मौन साध लो। शायद कि तुमपर दया[1] की जाये।
1. यह क़ुर्आन की एक विशेषता है कि जब भी उसे पढ़ा जाये तो मुसलमान पर अनिवार्य है कि वह ध्यान लगा कर अल्लाह का कलाम सुने। हो सकता है कि उस पर अल्लाह की दया हो जाये। काफ़िर कहते थे कि जब क़ुर्आन पढ़ा जाये तो सुनो नहीं, बल्कि शोर-गुल करो। (देखियेः सूरह ह़ा-मीम सज्दाः26)
205 ﴿ और (हे नबी!) अपने पालनहार का स्मरण विनय पूर्वक तथा डरते हुए और धीमे स्वर में प्रातः तथा संध्या करते रहो और उनमें न हो जाओ, जो अचेत रहते हैं।
206 ﴿ वास्तव में, जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के समीप हैं, वे उसकी इबादत (वंदना) से अभिमान नहीं करते, उसकी पवित्रता वर्णन करते रहते हैं और उसी को सज्दा[1] करते हैं।
1. इस आयत के पढ़ने तथा सुनने वाले को चाहिये कि सज्दा तिलावत करें।

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