﴾ 151 ﴿ आप उनसे कहें कि आओ, मैं तुम्हें (आयतें) पढ़कर सुना दूँ कि तुमपर, तुम्हारे पालनहार ने क्या ह़राम (अवैध)
किया है? वो ये है कि किसी चीज़ को उसका साझी न बनाओ, माता-पिता के साथ
उपकार करो और अपनी संतानों को निर्धनता के भय से वध न करो। हम तुम्हें
जीविका देते हैं और उन्हें भी देंगे और निर्लज्जा की बातों के समीप भी न
जाओ, खुली हों अथवा छुपी और जिस प्राण को अल्लाह ने ह़राम (अवैध) कर दिया है, उसे वध न करो, परन्तु उचित कारण[1] से। अल्लाह ने तुम्हें इसका आदेश दिया है, ताकि इसे समझो।
1. सह़ीह़ ह़दीस में है कि किसी मुसलमान का खून तीन कारणों के सिवा अवैध हैः 1. किसी ने विवाहित हो कर व्यभिचार किया हो। 2. किसी मुसलमान को जान-बूझ कर अवैध मार डाला हो। 3. इस्लाम से फिर गया हो और अल्लाह तता उस के रसूल से युध्द करने लगे। (सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीस संख्याः1676)
﴾ 152 ﴿ और अनाथ के धन के समीप न जाओ, परन्तु ऐसे ढंग से, जो उचित हो। यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाये तथा नाप-तोल न्याय के साथ पूरा करो। हम किसी प्राण पर उसकी सकत से अधिक भार नहीं रखते और जब बोलो तो न्याय करो, यद्यपि समीपवर्ती ही क्यों न हो और अल्लाह का वचन पूरा करो, उसने तुम्हें इसका आदेश दिया है, संभवतः तुम शिक्षा ग्रहण करो।
﴾ 153 ﴿ तथा (उसने बताया कि) ये (इस्लाम ही) अल्लाह की सीधी राह[1] है। अतः इसीपर चलो और दूसरी राहों पर न चलो, अन्यथा वह तुम्हें उसकी राह से दूर करके तित्तर-बित्तर कर देंगे। यही है, जिसका आदेश उसने तुम्हें दिया है, ताकि तुम उसके आज्ञाकारी रहो।
1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक लकीर बनाई, और कहाः यह अल्लाह की राह है। फिर दायें-बायें कई लकीरें खीचीं और कहाः इन पर शैतान है जो इन की ओर बुलाता है और यही आयत पढ़ी। (मुस्नद अह़मदः431)
﴾ 154 ﴿ फिर हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की थी, उसपर पुरस्कार पूरा करने के लिए, जो सदाचारी हो तथा प्रत्येक वस्तु के विवरण के लिए तथा ये मार्गदर्शन और दया थी, ताकि वे अपने पालनहार से मिलने पर ईमान लायें।
﴾ 155 ﴿ तथा (उसी प्रकार) ये पुस्तक (क़ुर्आन) हमने अवतरित की है, ये बड़ा शुभकारी है, अतः इसपर चलो[1] और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।
1. अर्थात जब अह्ले किताब सहित पूरे संसार वासियों के लिये प्रलय तक इसी क़ुर्आन का अनुसरण ही अल्लाह की दया का साधन है।
﴾ 156 ﴿ ताकि (हे अरब वासियो!) तुम ये न कहो कि हमसे पूर्व दो समुदाय (यहूद तथा ईसाई) पर पुस्तक उतारी गयी और हम उनके पढ़ने-पढ़ाने से अनजान रह गये।
﴾ 157 ﴿ या ये न कहो कि यदि हमपर पुस्तक उतारी जाती, तो हम निश्चय उनसे अधिक सीधी राह पर होते, तो अब तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक खुला तर्क आ गया, मार्गदर्शन तथा दया आ गयी। फिर उससे बड़ा अत्यचारी कौन होगा, जो अल्लाह की आयतों को मिथ्या कह दे और उनसे कतरा जाये? और जो लोग हमारी आयतों से कतराते हैं, हम उनके कतराने के बदले उन्हें कड़ी यातना देंगे।
﴾ 158 ﴿ क्या वे लोग इसी बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उनके पास फ़रिश्ते आ जायें, या स्वयं उनका पालनहार आ जाये या आपके पालनहार की कोई आयत (निशानी) आ जाये?[1] जिस दिन आपके पालनहार की कोई निशानी आ जायेगी, तो किसी प्राणी को उसका ईमान लाभ नहीं देगा, जो पहले ईमान न लाया हो या अपने ईमान की स्थिति में कोई सत्कर्म न किया हो। आप कह दें कि तुम प्रतीक्षा करो, हम भी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
1. आयत का भावार्थ यह है कि इन सभी तर्कों के परस्तुत किये जाने पर भी यदि यह ईमान नहीं लाते तो क्या उस समय ईमान लायेंगे जब फ़रिश्ते उन के प्राण निकालने आयेंगे? या प्रलय के दिन जब अल्लाह इन का निर्णय करने आयेगा? या जब प्रलय की कुछ निशानियाँ आ जायेंगी? जैसे सूर्य का पश्चिम से निकल आना। सह़ीह़ बुखारी की ह़दीस है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा कि प्रलय उस समय तक नहीं आयेगी जब तक कि सूर्य पश्चिम से नहीं निकलेगा। और जब निकलेगा तो जो देखेंगे सभी ईमान ले आयेंगे। और यह वह समय होगा कि किसी प्रणी को उस का ईमान लाभ नहीं देगा। फिर आप ने यही आयत पढ़ी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीसः4636)
﴾ 159 ﴿ जिन लोगों ने अपने धर्म में विभेद किया और कई समुदाय हो गये, (हे नबी!) आपका उनसे कोई संबंध नहीं, उनका निर्णय अल्लाह को करना है, फिर वह उन्हें बतायेगा कि वे क्या कर रहे थे।
﴾ 160 ﴿ जो (प्रलय के दिन) एक सत्कर्म लेकर (अल्लाह) से मिलेगा, उसे उसके दस गुना प्रतिफल मिलेगा और जो कुकर्म लायेगा, तो उसको उसी के बराबर कुफल दिया जायेगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
1. सह़ीह़ ह़दीस में है कि किसी मुसलमान का खून तीन कारणों के सिवा अवैध हैः 1. किसी ने विवाहित हो कर व्यभिचार किया हो। 2. किसी मुसलमान को जान-बूझ कर अवैध मार डाला हो। 3. इस्लाम से फिर गया हो और अल्लाह तता उस के रसूल से युध्द करने लगे। (सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीस संख्याः1676)
﴾ 152 ﴿ और अनाथ के धन के समीप न जाओ, परन्तु ऐसे ढंग से, जो उचित हो। यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाये तथा नाप-तोल न्याय के साथ पूरा करो। हम किसी प्राण पर उसकी सकत से अधिक भार नहीं रखते और जब बोलो तो न्याय करो, यद्यपि समीपवर्ती ही क्यों न हो और अल्लाह का वचन पूरा करो, उसने तुम्हें इसका आदेश दिया है, संभवतः तुम शिक्षा ग्रहण करो।
﴾ 153 ﴿ तथा (उसने बताया कि) ये (इस्लाम ही) अल्लाह की सीधी राह[1] है। अतः इसीपर चलो और दूसरी राहों पर न चलो, अन्यथा वह तुम्हें उसकी राह से दूर करके तित्तर-बित्तर कर देंगे। यही है, जिसका आदेश उसने तुम्हें दिया है, ताकि तुम उसके आज्ञाकारी रहो।
1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक लकीर बनाई, और कहाः यह अल्लाह की राह है। फिर दायें-बायें कई लकीरें खीचीं और कहाः इन पर शैतान है जो इन की ओर बुलाता है और यही आयत पढ़ी। (मुस्नद अह़मदः431)
﴾ 154 ﴿ फिर हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की थी, उसपर पुरस्कार पूरा करने के लिए, जो सदाचारी हो तथा प्रत्येक वस्तु के विवरण के लिए तथा ये मार्गदर्शन और दया थी, ताकि वे अपने पालनहार से मिलने पर ईमान लायें।
﴾ 155 ﴿ तथा (उसी प्रकार) ये पुस्तक (क़ुर्आन) हमने अवतरित की है, ये बड़ा शुभकारी है, अतः इसपर चलो[1] और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।
1. अर्थात जब अह्ले किताब सहित पूरे संसार वासियों के लिये प्रलय तक इसी क़ुर्आन का अनुसरण ही अल्लाह की दया का साधन है।
﴾ 156 ﴿ ताकि (हे अरब वासियो!) तुम ये न कहो कि हमसे पूर्व दो समुदाय (यहूद तथा ईसाई) पर पुस्तक उतारी गयी और हम उनके पढ़ने-पढ़ाने से अनजान रह गये।
﴾ 157 ﴿ या ये न कहो कि यदि हमपर पुस्तक उतारी जाती, तो हम निश्चय उनसे अधिक सीधी राह पर होते, तो अब तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक खुला तर्क आ गया, मार्गदर्शन तथा दया आ गयी। फिर उससे बड़ा अत्यचारी कौन होगा, जो अल्लाह की आयतों को मिथ्या कह दे और उनसे कतरा जाये? और जो लोग हमारी आयतों से कतराते हैं, हम उनके कतराने के बदले उन्हें कड़ी यातना देंगे।
﴾ 158 ﴿ क्या वे लोग इसी बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उनके पास फ़रिश्ते आ जायें, या स्वयं उनका पालनहार आ जाये या आपके पालनहार की कोई आयत (निशानी) आ जाये?[1] जिस दिन आपके पालनहार की कोई निशानी आ जायेगी, तो किसी प्राणी को उसका ईमान लाभ नहीं देगा, जो पहले ईमान न लाया हो या अपने ईमान की स्थिति में कोई सत्कर्म न किया हो। आप कह दें कि तुम प्रतीक्षा करो, हम भी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
1. आयत का भावार्थ यह है कि इन सभी तर्कों के परस्तुत किये जाने पर भी यदि यह ईमान नहीं लाते तो क्या उस समय ईमान लायेंगे जब फ़रिश्ते उन के प्राण निकालने आयेंगे? या प्रलय के दिन जब अल्लाह इन का निर्णय करने आयेगा? या जब प्रलय की कुछ निशानियाँ आ जायेंगी? जैसे सूर्य का पश्चिम से निकल आना। सह़ीह़ बुखारी की ह़दीस है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा कि प्रलय उस समय तक नहीं आयेगी जब तक कि सूर्य पश्चिम से नहीं निकलेगा। और जब निकलेगा तो जो देखेंगे सभी ईमान ले आयेंगे। और यह वह समय होगा कि किसी प्रणी को उस का ईमान लाभ नहीं देगा। फिर आप ने यही आयत पढ़ी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीसः4636)
﴾ 159 ﴿ जिन लोगों ने अपने धर्म में विभेद किया और कई समुदाय हो गये, (हे नबी!) आपका उनसे कोई संबंध नहीं, उनका निर्णय अल्लाह को करना है, फिर वह उन्हें बतायेगा कि वे क्या कर रहे थे।
﴾ 160 ﴿ जो (प्रलय के दिन) एक सत्कर्म लेकर (अल्लाह) से मिलेगा, उसे उसके दस गुना प्रतिफल मिलेगा और जो कुकर्म लायेगा, तो उसको उसी के बराबर कुफल दिया जायेगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
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