﴾ 1
﴿ सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसने आकाशों तथा धरती को बनाया तथा
अंधेरे और उजाला बनाया, फिर भी जो काफ़िर हो गये, वे दूसरों को अपने
पालनहार के बराबर समझते[1] हैं।
1. अर्थात वह अंधेरों और प्रकाश में विवेक (अन्तर) नहीं करते, और रचित को रचयिता का स्थान देते हैं।
﴾ 2 ﴿ वही है, जिसने तुम्हें मिट्टी से उत्पन्न[1] किया, फिर (तुम्हारे जीवन की) अवधि निर्धारित कर दी और एक निर्धारित अवधि (प्रलय का समय) उसके पास[2] है, फिर भी तुम संदेह करते हो।
1. अर्थात तुम्हारे पिता आदम अलैहिस्सलाम को। 2. दो अवधि, एक जीवन और कर्म के लिये, तथा दूसरी कर्मों के फल के लिये।
﴾ 3 ﴿ वही अल्लाह पूज्य है आकाशों तथा धरती में। वह तुम्हारे भेदों तथा खुली बातों को जानता है तथा तुम जो भी करते हो, उसे जानता है।
﴾ 4 ﴿ और उनके पास उनके पालनहार की आयतों (निशानियों) में से कोई आयत (निशानी) नहीं आयी, जिससे उन्होंने मुँह फेर न[1] लिए हो।
1. अरथात् मिश्रणवादियों के पास।
﴾ 5 ﴿ उन्होंने सत्य को झुठला दिया है, जब भी उनके पास आया। तो शीघ्र ही उनके पास उसके समाचार आ जायेंगे[1], जिसका उपहास कर रहे हैं।
1. अर्थात उस के तथ्य का ज्ञान हो जायेगा। यह आयत मक्का में उस समय उतरी जब मुसलमान विवश थे, परन्तु बद्र के युध्द के बाद यह भविष्यवाणी पूरी होने लगी और अन्ततः मिश्रणवादी परास्त हो गये।
﴾ 6 ﴿ क्या वह नहीं जानते कि उनसे पहले हमने कितनी जातियों का नाश कर दिया, जिन्हें हमने धरती में ऐसी शक्ति और अधिकार दिया था, जो अधिकार और शक्ति तुम्हें नहीं दिये हैं और हमने उनपर धारा प्रवाह वर्षा की और उनकी धरती में नहरें प्रवाहित कर दीं, फिर हमने उनके पापों के कारण उन्हें नाश[1] कर दिया और उनके पश्चात् दूसरी जातियों को पैदा कर दिया।
1. अर्थात अल्लाह का यह नियम है कि पापियों को कुछ अवसर देता है, और अन्ततः उन का विनाश कर देता है।
﴾ 7 ﴿ (हे नबी!) यदि हम आपपर काग़ज़ में लिखी हुई कोई पुस्तक उतार[1] दें, फिर वे उसे अपने हाथों से छूयें, तबभी जो काफ़िर हैं, कह देंगे कि ये तो केवल खुला हुआ जादू है।
1. इस में इन काफ़िरों के दुराग्रह की दशा का वर्णन है।
﴾ 8 ﴿ तथा उन्होंने कहाः[1] इस (नबी) पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतारा[2] गया? और यदि हम कोई फ़रिश्ता उतार देते, तो निर्णय ही कर दिया जाता, फिर उन्हें अवसर नहीं दिया जाता[3]।
1. जैसा कि वह माँग करते हैं। (देखियेः सूरह बनी इस्राईल, आयतः93) 2. अर्थात अपने वास्तविक रूप में, जब कि जिब्रील (अलैहिस्सलाम) मनुष्य के रूप में आया करते थे। 3. अर्थात मानने या न मानने का।
﴾ 9 ﴿ और यदि हम किसी फ़रिश्ते को नबी बनाते, तो उसे किसी पुरुष ही के रूप में बनाते[1] और उन्हें उसी संदेह में डाल देते, जो संदेह (अब) कर रहे हैं।
1. क्योंकि फ़रिश्तों को आँखों से उन के स्वभाविक रूप में देखना मानव के बस की बात नहीं है। और यदि फ़रिश्ते को रसूल बना कर मनुष्य के रूप में भेजा जाता तब भी कहते कि यह तो मनुष्य है। यह रसूल कैसे हो सकता है?
﴾ 10 ﴿ (हे नबी!) आपसे पहले भी रसूलों के साथ उपहास किया गया, तो जिन्होंने उनसे उपहास किया, उन्हें उनके उपहास (के दुष्परिणाम) ने घेर लिया।
1. अर्थात वह अंधेरों और प्रकाश में विवेक (अन्तर) नहीं करते, और रचित को रचयिता का स्थान देते हैं।
﴾ 2 ﴿ वही है, जिसने तुम्हें मिट्टी से उत्पन्न[1] किया, फिर (तुम्हारे जीवन की) अवधि निर्धारित कर दी और एक निर्धारित अवधि (प्रलय का समय) उसके पास[2] है, फिर भी तुम संदेह करते हो।
1. अर्थात तुम्हारे पिता आदम अलैहिस्सलाम को। 2. दो अवधि, एक जीवन और कर्म के लिये, तथा दूसरी कर्मों के फल के लिये।
﴾ 3 ﴿ वही अल्लाह पूज्य है आकाशों तथा धरती में। वह तुम्हारे भेदों तथा खुली बातों को जानता है तथा तुम जो भी करते हो, उसे जानता है।
﴾ 4 ﴿ और उनके पास उनके पालनहार की आयतों (निशानियों) में से कोई आयत (निशानी) नहीं आयी, जिससे उन्होंने मुँह फेर न[1] लिए हो।
1. अरथात् मिश्रणवादियों के पास।
﴾ 5 ﴿ उन्होंने सत्य को झुठला दिया है, जब भी उनके पास आया। तो शीघ्र ही उनके पास उसके समाचार आ जायेंगे[1], जिसका उपहास कर रहे हैं।
1. अर्थात उस के तथ्य का ज्ञान हो जायेगा। यह आयत मक्का में उस समय उतरी जब मुसलमान विवश थे, परन्तु बद्र के युध्द के बाद यह भविष्यवाणी पूरी होने लगी और अन्ततः मिश्रणवादी परास्त हो गये।
﴾ 6 ﴿ क्या वह नहीं जानते कि उनसे पहले हमने कितनी जातियों का नाश कर दिया, जिन्हें हमने धरती में ऐसी शक्ति और अधिकार दिया था, जो अधिकार और शक्ति तुम्हें नहीं दिये हैं और हमने उनपर धारा प्रवाह वर्षा की और उनकी धरती में नहरें प्रवाहित कर दीं, फिर हमने उनके पापों के कारण उन्हें नाश[1] कर दिया और उनके पश्चात् दूसरी जातियों को पैदा कर दिया।
1. अर्थात अल्लाह का यह नियम है कि पापियों को कुछ अवसर देता है, और अन्ततः उन का विनाश कर देता है।
﴾ 7 ﴿ (हे नबी!) यदि हम आपपर काग़ज़ में लिखी हुई कोई पुस्तक उतार[1] दें, फिर वे उसे अपने हाथों से छूयें, तबभी जो काफ़िर हैं, कह देंगे कि ये तो केवल खुला हुआ जादू है।
1. इस में इन काफ़िरों के दुराग्रह की दशा का वर्णन है।
﴾ 8 ﴿ तथा उन्होंने कहाः[1] इस (नबी) पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतारा[2] गया? और यदि हम कोई फ़रिश्ता उतार देते, तो निर्णय ही कर दिया जाता, फिर उन्हें अवसर नहीं दिया जाता[3]।
1. जैसा कि वह माँग करते हैं। (देखियेः सूरह बनी इस्राईल, आयतः93) 2. अर्थात अपने वास्तविक रूप में, जब कि जिब्रील (अलैहिस्सलाम) मनुष्य के रूप में आया करते थे। 3. अर्थात मानने या न मानने का।
﴾ 9 ﴿ और यदि हम किसी फ़रिश्ते को नबी बनाते, तो उसे किसी पुरुष ही के रूप में बनाते[1] और उन्हें उसी संदेह में डाल देते, जो संदेह (अब) कर रहे हैं।
1. क्योंकि फ़रिश्तों को आँखों से उन के स्वभाविक रूप में देखना मानव के बस की बात नहीं है। और यदि फ़रिश्ते को रसूल बना कर मनुष्य के रूप में भेजा जाता तब भी कहते कि यह तो मनुष्य है। यह रसूल कैसे हो सकता है?
﴾ 10 ﴿ (हे नबी!) आपसे पहले भी रसूलों के साथ उपहास किया गया, तो जिन्होंने उनसे उपहास किया, उन्हें उनके उपहास (के दुष्परिणाम) ने घेर लिया।

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