युधिष्ठिर महाभारत में भी ईमानदार थे , ओर आज के कलियुग में भी ईमानदार है ,
यह सच साबित कर दिखाया है , कोटा के भाई , युधिष्ठिर चांदसी ने ,
युधिष्ठिर ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया शॉपिंग सेंटर , शाखा में , अपने खाते ,
से पन्द्रह हज़ार रुपये निकलवाने के लिए चेक भरकर दिया ,, कैशियर ने पन्द्रह
हज़ार के मुगालते में , तीस हजार रुपये गिनकर दिये , युधिष्ठिर ने उक्त
नोट की गड्डी बिना गिना जेब मे रख ली ,, घर आकर जब उन्हें पता चला , नॉट
गिने , तब पन्द्रह हज़ार की जगह उन्हें कैशियर ने तीस हजार रुपये
दिए यह सच उन्हें पता चला , युधिष्ठिर ने अपने साथी पत्रकार पर्यावरण विद
ब्रजेश विजय वर्गीय , से गिनवाए ओर फिर बैंक वापस लौटे , केशियर को फिर
गिनने के लिए रुपये दिए , कैशियर ने पूरे तीस हजार रुपये मशीन से गिने और
वापस लौट दिये , युधिष्ठिर , बृजेश जी ने कैशियर से चेक में भरी राशि
कन्फर्म करने को कहा , चेक पर पन्द्रह हज़ार की राशि भरी थी और कैशियर ने
तीस हजार दे दिए , खुद युधिष्ठिर इस राशि को लौटाने आये , कैशियर ने ठंडी
सांस ली और सोचा ईमानदारी अभी ज़िंदा है , युधिष्ठिर आज भी ईमानदार है ,
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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