कहने
को तो , 10 दिसम्बर विश्व मानवअधिकार दिवस ,लेकिन भारत के सिस्टम में यह
दिवस ,,विश्व हास्य दिवस बन कर रह गया है ,रस्म अदायगी बढ़ी बढ़ी बातें ,और
नतीजे के नाम पर ढाक के तीन पात ,न मानवाधिकार क़ानून की पालना ,न संविधान
में मानवाधिकार संरक्षण की क्रियान्विति ,और तो और देश के सर्वोच्च
न्यायालय के मानवाधिकर संरक्षण संबंधित क्रियान्वित किये जाने के आदेशित
गाइड लाइन की भी पालना नहीं ,,मेरी आलोचना हो सकती है ,लेकिन सच कभी आलोचना
से बदलता नहीं है ,कड़वा सच यही है ,के देश की कोई भी संस्था ,कोई भी सरकार
,कभी भी मानवाधिकार संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं रही ,यह जो कुछ भी
दिखावा है ,मात्र अंतर्राष्ट्रीय संधि ,अंतर्राष्ट्रीय दबाव में ही हुआ है
,,, में व्यवहारिक हूँ ,मेने हमारी ह्यूमन रिलीफ सोसायटी के माध्यम से वर्ष
1991 से ही अपने साथियों के साथ मिलकर ,मानवाधिकार संरक्षण के प्रति
जागरूकता ,संविधानिक प्रावधानों को लागू करने की कोशिशों मे ,सिस्टम में
बैठे महामहिम राष्ट्रपति महोदय ,प्रधानमंत्री महोदय , को लगातार सुझाव पत्र
लिखे ,खेर जैसे भी हुआ ,,आखिर वर्ष 1993 में मानवाधिकार क़ानून बना
,क्रियान्वित हुआ और राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग गठित कर रंगनाथ मिश्र को
इसका चेयरमेन बनाया गया ,,मुझे फख्र है ,के राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग में
पुलिस प्रताड़ना की पहली शिकायत हमारी ह्यूमन रिलीफ सोसायटी की तरफ से हमने
दर्ज ,करवाई ,मानवाधिकार जांच दल सबसे पहले कोटा में जांच के लिए आया ,और
प्रताड़ना के मामले पहला फैसला मानवाधिकार आयोग का हमारी शिकायत पर ही हुआ
,,,फिर जागरूकता बढ़ी ,सुप्रिमकोर्ट का दबाव बढ़ा ,,राज्य स्तर पर भी
मानवाधिकार आयोगों का गठन हुआ ,राजस्थान में भी भी पहली पुलिस प्रताड़ना की
शिकायत हमारी ह्यूमन रिलीफ सोसायटी की तरह से हमने दर्ज करवाई ,,ऐतिहासिक
फैसला करवाया ,,,कोटा सहित राजस्थान की जेलों के सुधार के मामले में
राष्ट्रिय मानवअधिकार आयोग ने हमारे शिकायत को जनहित याचिका के रूप में
दर्ज करवाकर ,काफी राहत दिलवाई ,,,लेकिन फिर आयोग के नियम ,बदले
,राजनीतिकरण हुआ ,,शिकायत करने की प्रक्रिया जटिल ,हुई जांच प्रक्रिया में
बदलाव हुआ ,,फैसले धीमी गति से होने लगे ,,खेर सरकारी सिस्टम का एक हिस्सा
यह बनता गया ,सरकार की आर्थिक मदद आयोगों को नहीं मिल पायी ,,जागरूकता
कार्यक्रम ठप्प से हुए ,, लेकिन अफ़सोस इस बात का है ,वर्ष 1993 में
मानवाधिकार संरक्षण क़ानून बना ,इस क़ानून में ,हर ज़िले में ,जिला मानवअधिकार
न्यायालय ,खोलने का प्रावधान क़ानून बनाकर किया गया ,,पुरे छब्बीस साल
गुज़रने के बाद ,दर्जनों राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बदलने के
बावजूद भी ,,आज तक देश के किसी भी ज़िले में ,मानवाधिकार न्यायलय ,
मानवाधिकार विशेष लोक अभियोजक नहीं है ,पुरे छब्बीस साल में हर साल,, में
,मेरी सोसायटी की तरह से ,मुख्यमंत्री राजस्थान ,राज्यपाल महोदय ,,
महामहिम राष्ट्रपति महोदय ,प्रधानमंत्री महोदय को पत्र लिखता रहा हूँ
,लेकिन नतीजे के नाम पर ज़ीरो ,सिर्फ ज़ीरो रहा ,राजस्थान के मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत ने इस मामले में पहल ज़रूर की थी ,लेकिन यह पहल ठंडे बसते में
क़ैद है ,,राजस्थान के मानवाधिकार आयोग चेयरमेन प्रकाश टाटिया से कोटा
प्रवास के दौरान ,मेने मेरी सोसायटी की तरह से जब यह उज़्रदारी की तो वोह
,,अशोक गहलोत की पूर्व सरकार के एक परिपत्र सर्कुलर को तलाश कर लाये
,उन्होंने तो कागज़ों में हर ज़िले में जिला मानवअधिकार न्यायालय खुले होने
की कोटा के तात्कालिक जिला जज के सामने घोषणा भी कर दी , लेकिन हमने
परिपत्र के आधार पर कोटा की विशेष मानवाधिकार अदालत तलाशी ,नहीं मिली
,परिवाद पेश कर विशेष मानवाधिकार न्यायलय लिखा ,ख़ारिज हो गया ,यानी यक़ीनन
परिपत्र तो है ,लेकिन वोह सिर्फ कागज़ी है ,,राजस्थान सहित पुरे देश में अगर
हम ,मानवाधिकार क़ानून की छब्बीस साल पुरानी घोषणा , की क्रियान्विति
भी नहीं करवा पाए ,आयोगों ,उनके कर्मचारियों ,सिस्टम पर करोडो करोड़ खर्च
कर दे ,और खुद मानवाधिकार क़ानून की पालना के तहत हम विशेष न्यायालय ,विशेष
लोक अभियोजक भी ज़िलों में नहीं लागू करवा पाए ,तो फिर ऐसे मानवाधिकार
आयोग ,ऐसे विश्व मानवअधिकार दिवस का क्या फायदा ,जब खुद मानवाधिकार आयोग
,अपने ही क़ानून की क्रियान्विति छब्बीस साल बाद भी करवा पाने में अक्षम
साबित हुआ है ,तो फिर संविधान के विधिक मानवाधिकार प्रावधान ,,सुप्रीमकोर्ट
के मानवअधिकार संबंधित संवेधानिक हर हाल में लागू किये जाने वाले आदेशों
की क्रियान्विति ,निगरानी के बारे में कल्पना करना भी अजीब सा लगता है
,इसलिए हम शर्मिंदा है ,,मानवअधिकार क़ानून को लागू नहीं करने वाले ,आज भी
मौजूद है ,,,पुलिस क़ानून बना लेकिन चौबीस घंटे ,बिना किसी अवकाश के ,अपने
परिवार से दूर रहकर ,तनाव में रहकर काम करने वाले पुलिसकर्मियों के लिए
कल्याण क़ानून की रस्म अदायगी तो हुई ,लेकिन कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं ,काम
के घंटे तय नहीं ,,एक बंदूक चलाने वाला टाइगर पुलिसकर्मी ,बंगलो पर
चपड़ासगिरि करते हुए देखे जाते है तो फिर इस क़ानून की क्रियान्विति के
बारे में सोचना पढ़ता है ,जब पुलिसकर्मी के परिवार में खुद के घर में शादी
हो ,और स्टाफ की कमी बताकर उसे अवकाश देने में आनाकानी हो ,,माँ बीमार हो
,बाप ,बीमार हो ,बच्चों के एक्ज़ाम हो लेकिन पुलिस जवान को स्टाफ की कमी
बताकर छुट्टी नहीं ,और ऐसे में भी अफसरों के घरों ,मंत्रियों के बंगलों पर
बेवजह पुलिसकर्मियों का जाब्ता लगाकर रखा जाता है ,,ट्रेंड कमांडों
,पुलिसकर्मियों से क़ानून व्यवस्था की जगह ,,बेवजह सुरक्षा गार्ड के नाम पर
चोकीदारी ,गनमेन का बेवजह का काम ,,इतना ही नहीं ,घर के कुत्तों के
इंजेक्शन लगाने ,पेड़ पौधों में पानी देने ,मेमसाहब ,,बच्चों की चाकरी में
भी भी कई पुलिसकर्मी त्रस्त रहे है ,दबाव में आत्महत्याएं हुई है ,दबाव में
बदले की भावना से हत्याएं हुई है , लेकिन रस्म अदायगी ,मानवाधिकार आयोग
ज़िंदाबाद की ,,फिर भी ,,कुछ काम है ,जिनकी प्रशंसा भी होना चाहिए ,और वोह
तुरंत घटनाओ का संज्ञान ,लेना रिपोर्ट ,लेना फिर पुलिसकर्मियों को 197 सी
आर पी सी का प्रोटेक्शन , न्यायालय में कार्यवाही विचाराधीन की बाध्यता के
मुद्दे और मामला खत्म ,,कुछ को छुटपुट एक्स ग्रेसिया ,,कुछ मामलों में
सुधारात्मक सुझाव ,इन मुद्दों पर चिंतन , मंथन की ज़रूरत है ,और मानवअधिकार
आयोग चाहे राष्ट्रिय हो चाहे राज्य के हो ,सभी को ,सरकार के हर दबाव से
मुक्त होना ज़रूरी है ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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