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06 नवंबर 2019

हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का अनुपालन करो

51 ﴿ (हे नबी!) क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक का कुछ भाग दिया गया? वे मूर्तियों तथा शैतानों पर ईमान (विश्वास) रखते हैं और काफ़िरों[1] के बारे में कहते हैं कि ये ईमान वालों से अधिक सीधी डगर पर हैं।
1. अर्थात मक्का के मूर्ति के पुजारियों के बारे में। मदीना के यहूदियों की यह दशा थी कि वह सदैव मूर्ति पूजा के विरोध रहे। और उस का अपमान करते रहे। परन्तु अब मुसलमानों के विरोध में उन की प्रशंसा करते और कहते कि मूर्ति पूजकों का आचरण स्वभाव अधिक अच्छा है।
52 ﴿ और जिसे अल्लाह धिक्कार दे, आप उसका कदापि कोई सहायक नहीं पाएंगे।
53 ﴿ क्या उनके पास राज्य का कोई भाग है, इसलिए लोगों को (उसमें से) तनिक भी नहीं देंगे?
54 ﴿ बल्कि वे लोगों[1] से उस अनुग्रह पर विद्वेष कर रहे हैं, जो अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया है। तो हमने (पहले भी) इब्राहीम के घराने को पुस्तक तथा ह़िक्मत (तत्वदर्शिता) दी है और उन्हें विशाल राज्य प्रदान किया है।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और मुसलमानों पर कि अल्लाह ने आप को नबी बना दिया तथा मुसलमानों को ईमान दे दिया।
55 ﴿ फिर उनमें से कोई ईमान लाया और कोई उससे विमुख हो गया। (तो विमुख होने वाले के लिए) नरक की भड़कती अग्नि बहुत है।
56 ﴿ वास्तव में, जिन लोगों ने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र (अविश्वास) किया, हम उन्हें नरक में झोंक देंगे। जब-जब उनकी खालें पकेंगी, हम उनकी खालें बदल देंगे, ताकि वे यातना चखें, निःसंदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
57 ﴿ और जो लोग ईमान लाये तथा सदाचार किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। जिनमें वे सदावासी होंगे, उनके लिए उनमें निर्मल पत्नियाँ होंगी और हम उन्हें घनी छाँवों में रखेंगे।
58 ﴿ अल्लाह[1] तुम्हें आदेश देता है कि धरोहर उनके स्वामियों को चुका दो और जब लोगों के बीच निर्णय करो, तो न्याय के साथ निर्णय करो। अल्लाह तुम्हें अच्छी बात का निर्देश दे रहा है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने-देखने वाला है।
1. यहाँ से ईमान वालों को संबोधित किया जा रहा है कि सामाजिक जीवन की व्यवस्था के लिये मूल नियम यह है कि जिस का जो भी अधिकार हो, उसे स्वीकार किया जाये और दिया जाये। इसी प्रकार कोई भी निर्णय बिना पक्षपात के न्याय के साथ किया जाये, किसी प्रकार कोई अन्याय नहीं होना चाहिये।
59 ﴿ हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का अनुपालन करो और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो तथा अपने शासकों की आज्ञापालन करो। फिर यदि किसी बात में तुम आपस में विवाद (विभेद) कर लो, तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हो। ये तुम्हारे लिए अच्छा[1] और इसका परिणाम अच्छा है।
1. अर्थात किसी के विचार और राय को मानने से। क्यों कि क़ुर्आन और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत ही धर्मादेशों की शिलाधार हैं।
60 ﴿ (हे नबी!) क्या आपने उन द्विधावादियों (मुनाफ़िक़ों) को नहीं जाना, जिनका ये दावा है कि जो कुछ आपपर अवतरित हुआ है तथा जो कुछ आपसे पूर्व अवतरित हुआ है, उनपर ईमान रखते हैं, किन्तु चाहते हैं कि अपने विवाद का निर्णय विद्रोही के पास ले जायें, जबकि उन्हें आदेश दिया गया है कि उसे अस्वीकार कर दें? और शैतान चाहता है कि उन्हें सत्धर्म से बहुत दूर[1] कर दे।
1. आयत का भावार्थ यह है कि जो धर्म विधान क़ुर्आन तथा सुन्नत के सिवा किसी अन्य विधान से अपना निर्णय चाहते हों, उन का ईमान का दावा मिथ्या है।

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