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15 नवंबर 2019

यदि किसी स्त्री को अपने पति से दुर्व्यवहार अथवा विमुख होने की शंका हो

121 ﴿ उन्हीं का निवास स्थान नरक है और वे उससे भागने की कोई राह नहीं पायेंगे।
122 ﴿ तथा जो लोग ईमान लाये और सत्कर्म किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। वे उनमें सदावासी होंगे। ये अल्लाह का सत्य वचन है और अल्लाह से अधिक सत्य कथन किसका हो सकता है?
123 ﴿ (ये प्रतिफल) तुम्हारी कामनाओं तथा अह्ले किताब की कामनाओं पर निर्भर नहीं। जो कोई भी दुष्कर्म करेगा, वह उसका कुफल पायेगा तथा अल्लाह के सिवा अपना कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।
124 ﴿ तथा जो सत्कर्म करेगा, वह नर हो अथवा नारी, फिर ईमान भी[1] रखता होगा, तो वही लोग स्वर्ग में प्रवेश पायेंगे और तनिक भी अत्याचार नहीं किये जायेंगे।
1. अर्थात सत्कर्म का प्रतिफल सत्य आस्था और ईमान पर आधारित है कि अल्लाह तथा उस के नबियों पर ईमान लाया जाये। तथा ह़दीसों से विद्वित होता है कि एक बार मुसलमानों और अह्ले किताब के बीच विवाद हो गया। यहूदियों ने कहा कि हमारा धर्म सब से अच्छा है। मुक्ति केवल हमारे ही धर्म में है। मुसलमानों ने कहा कि हमारा धर्म सब से अच्छा और अन्तिम धर्म है। उसी पर यह आयत उतरी। (इब्ने कसीर)
125 ﴿ तथा उस व्यक्ति से अच्छा किसका धर्म हो सकता है, जिसने स्वयं को अल्लाह के लिए झुका दिया, वह एकेश्वरवादी भी हो और एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण कर रहा हो? और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना विशुध्द मित्र बना लिया।
126 ﴿ तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को अपने नियंत्रण में लिए हुए है।
127 ﴿ (हे नबी!) वे स्त्रियों के बारे में आपसे धर्मादेश पूछ रहे हैं। आप कह दें कि अल्लाह उनके बारे में तुम्हें आदेश देता है और वे आदेश भी हैं, जो इससे पूर्व पुस्तक (क़ुर्आन) में तुम्हें, उन अनाथ स्त्रियों के बारे में सुनाये गये हैं, जिनके निर्धारित अधिकार तुम नहीं देते और उनसे विवाह करने की रुची रखते हो तथा उन बच्चों के बारे में भी, जो निर्बल हैं तथा (ये भी आदेश देता है कि) अनाथों के लिए न्याय पर स्थिर रहो[1] तथा तुम जो भी भलाई करते हो, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।
1. इस्लाम से पहले यदि अनाथ स्त्री सुन्दर होती तो उस का संरक्षक, यदि उस का विवाह उस से हो सकता हो, तो उस से विवाह कर लेता परन्तु उसे महर (विवाह उपहार) नहीं देता। और यदि सुन्दर नहीं हो तो दूसरे से उसे विवाह नहीं करने देता था। ताकि उस का धन उसी के पास रह जाये। इसी प्रकार अनाथ बच्चों के साथ भी अत्याचार और अन्याय किया जाता था, जिन से रोकने के लिये यह आयत उतरी। (इब्ने कसीर)
128 ﴿ और यदि किसी स्त्री को अपने पति से दुर्व्यवहार अथवा विमुख होने की शंका हो, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि आपस में कोई संधि कर लें और संधि कर लेना ही अच्छा[1] है। लोभ तो सभी में होता है। यदि तुम एक-दूसरे के साथ उपकार करो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उससे सूचित है।
1. अर्थ यह है कि स्त्री, पुरुष की इच्छा और रूचि पर ध्यान दे। तो यह संधि की रीति अलगाव से अच्छी है।
129 ﴿ और यदि तुम अपनी पत्नियों के बीच न्याय करना चाहो, तो भी ऐसा कदापि नहीं कर[1] सकोगे। अतः एक ही की ओर पूर्णतः झुक[2] न जाओ और (शेष को) बीच में लटकी हुई न छोड़ दो और यदि (अपने व्यवहार में) सुधार[3] रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावन् है।
1. क्यों कि यह स्वभाविक है कि मन का आकर्षण किसी एक की ओर होगा। 2. अर्थात जिस में उस के पति की रूचि न हो, और न व्यवहारिक रूप से बिना पति के हो। 3. अर्थात सब के साथ व्यवहार तथा सहवास संबंध में बराबरी करो।
130 ﴿ और यदि दोनों अलग हो जायें, तो अल्लाह प्रत्येक को अपनी दया से (दूसरे से) निश्चिंत[1] कर देगा और अल्लाह बड़ा उदार तत्वज्ञ है।
1. अर्थात यदि निभाव न हो सके तो विवाह बंधन में रहना आवश्यक नहीं। दोनों अलग हो जायें, अल्लाह दोनों के लिये पति तथा पत्नी की व्यवस्था बना देगा।

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