वह वही (ख़ुदा) है जो तुम्हें रात को (नींद में एक तरह पर दुनिया से) उठा
लेता हे और जो कुछ तूने दिन को किया है जानता है फिर तुम्हें दिन को उठा कर
खड़ा करता है ताकि (जि़न्दगी की) (वह) मियाद जो (उसके इल्म में) मुअय्युन
है पूरी की जाए फिर (तो आखि़र) तुम सबको उसी की तरफ लौटना है फिर जो कुछ
तुम (दुनिया में भला बुरा) करते हो तुम्हें बता देगा (61)
वह अपने बन्दों पर ग़ालिब है वह तुम लोगों पर निगेहबान (फ़रिश्ते तैनात करके) भेजता है-यहाँ तक कि जब तुम में से किसी की मौत आए तो हमारे भेजे हुये फ़रिश्ते उसको (दुनिया से) उठा लेते हैं और वह (हमारे तामीले हुक्म में ज़रा भी) कोताही नहीं करते (62)
फिर ये लोग अपने सच्चे मालिक ख़़ुदा के पास वापस बुलाए गए-आगाह रहो कि हुक़ूमत ख़ास उसी के लिए है और वह सबसे ज़्यादा हिसाब लेने वाला है (63)
(ऐ रसूल) उनसे पूछो कि तुम खुश्की और तरी के (घटाटोप) अॅधेरों से कौन छुटकारा देता है जिससे तुम गिड़ गिड़ाकर और (चुपके) दुआए माँगते हो कि अगर वह हमें (अब की दफ़ा) उस (बला) से छुटकारा दे तो हम ज़रुर उसके शुक्र गुज़ार (बन्दे होकर) रहेगें (64)
तुम कहो उन (मुसीबतों) से और हर बला में ख़़ुदा तुम्हें नजात देता है (मगर अफसोस) उस पर भी तुम शिर्क करते ही जाते हो (65)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि वही उस पर अच्छी तरह क़ाबू रखता है कि अगर (चाहे तो) तुम पर अज़ाब तुम्हारे (सर के) ऊपर से नाजि़ल करे या तुम्हारे पाव के नीचे से (उठाकर खड़ा कर दे) या एक गिरोह को दूसरे से भिड़ा दे और तुम में से कुछ लोगों को बाज़ आदमियों की लड़ाई का मज़ा चखा दे ज़रा ग़ौर तो करो हम किस किस तरह अपनी आयतों को उलट पुलट के बयान करते हैं ताकि लोग समझे (66)
और उसी (क़ुरान) को तुम्हारी क़ौम ने झुठला दिया हालाँकि वह बरहक़ है (ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि मैं तुम पर कुछ निगेहबान तो हूँ नहीं हर ख़बर (के पूरा होने) का एक ख़ास वक़्त मुक़र्रर है और अनक़रीब (जल्दी) ही तुम जान लोगे (67)
और जब तुम उन लोगों को देखो जो हमारी आयतों में बेहूदा बहस कर रहे हैं तो उन (के पास) से टल जाओ यहाँ तक कि वह लोग उसके सिवा किसी और बात में बहस करने लगें और अगर (हमारा ये हुक्म) तुम्हें शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ज़ालिम लोगों के साथ हरगिज़ न बैठना (68)
और ऐसे लोगों (के हिसाब किताब) का जवाब देही कुछ परहेज़गारो पर तो है नहीं मगर (सिर्फ नसीहतन) याद दिलाना (चाहिए) ताकि ये लोग भी परहेज़गार बनें (69)
और जिन लोगों ने अपने दीन को खेल और तमाषा बना रखा है और दुनिया की जि़न्दगी ने उन को धोके में डाल रखा है ऐसे लोगों को छोड़ो और क़़ुरान के ज़रिए से उनको नसीहत करते रहो (ऐसा न हो कि कोई) शख्स़ अपने करतूत की बदौलत मुब्तिलाए बला हो जाए (क्योंकि उस वक़्त) तो ख़ुदा के सिवा उसका न कोई सरपरस्त होगा न सिफारिषी और अगर वह अपने गुनाह के ऐवज़ सारे (जहाँन का) बदला भी दे तो भी उनमें से एक न लिया जाएगा जो लोग अपनी करनी की बदौलत मुब्तिलाए बला हुए है उनको पीने के लिए खौलता हुआ गर्म पानी (मिलेगा) और (उन पर) दर्दनाक अज़ाब होगा क्योंकर वह कुफ़्र किया करते थे (70)
वह अपने बन्दों पर ग़ालिब है वह तुम लोगों पर निगेहबान (फ़रिश्ते तैनात करके) भेजता है-यहाँ तक कि जब तुम में से किसी की मौत आए तो हमारे भेजे हुये फ़रिश्ते उसको (दुनिया से) उठा लेते हैं और वह (हमारे तामीले हुक्म में ज़रा भी) कोताही नहीं करते (62)
फिर ये लोग अपने सच्चे मालिक ख़़ुदा के पास वापस बुलाए गए-आगाह रहो कि हुक़ूमत ख़ास उसी के लिए है और वह सबसे ज़्यादा हिसाब लेने वाला है (63)
(ऐ रसूल) उनसे पूछो कि तुम खुश्की और तरी के (घटाटोप) अॅधेरों से कौन छुटकारा देता है जिससे तुम गिड़ गिड़ाकर और (चुपके) दुआए माँगते हो कि अगर वह हमें (अब की दफ़ा) उस (बला) से छुटकारा दे तो हम ज़रुर उसके शुक्र गुज़ार (बन्दे होकर) रहेगें (64)
तुम कहो उन (मुसीबतों) से और हर बला में ख़़ुदा तुम्हें नजात देता है (मगर अफसोस) उस पर भी तुम शिर्क करते ही जाते हो (65)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि वही उस पर अच्छी तरह क़ाबू रखता है कि अगर (चाहे तो) तुम पर अज़ाब तुम्हारे (सर के) ऊपर से नाजि़ल करे या तुम्हारे पाव के नीचे से (उठाकर खड़ा कर दे) या एक गिरोह को दूसरे से भिड़ा दे और तुम में से कुछ लोगों को बाज़ आदमियों की लड़ाई का मज़ा चखा दे ज़रा ग़ौर तो करो हम किस किस तरह अपनी आयतों को उलट पुलट के बयान करते हैं ताकि लोग समझे (66)
और उसी (क़ुरान) को तुम्हारी क़ौम ने झुठला दिया हालाँकि वह बरहक़ है (ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि मैं तुम पर कुछ निगेहबान तो हूँ नहीं हर ख़बर (के पूरा होने) का एक ख़ास वक़्त मुक़र्रर है और अनक़रीब (जल्दी) ही तुम जान लोगे (67)
और जब तुम उन लोगों को देखो जो हमारी आयतों में बेहूदा बहस कर रहे हैं तो उन (के पास) से टल जाओ यहाँ तक कि वह लोग उसके सिवा किसी और बात में बहस करने लगें और अगर (हमारा ये हुक्म) तुम्हें शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ज़ालिम लोगों के साथ हरगिज़ न बैठना (68)
और ऐसे लोगों (के हिसाब किताब) का जवाब देही कुछ परहेज़गारो पर तो है नहीं मगर (सिर्फ नसीहतन) याद दिलाना (चाहिए) ताकि ये लोग भी परहेज़गार बनें (69)
और जिन लोगों ने अपने दीन को खेल और तमाषा बना रखा है और दुनिया की जि़न्दगी ने उन को धोके में डाल रखा है ऐसे लोगों को छोड़ो और क़़ुरान के ज़रिए से उनको नसीहत करते रहो (ऐसा न हो कि कोई) शख्स़ अपने करतूत की बदौलत मुब्तिलाए बला हो जाए (क्योंकि उस वक़्त) तो ख़ुदा के सिवा उसका न कोई सरपरस्त होगा न सिफारिषी और अगर वह अपने गुनाह के ऐवज़ सारे (जहाँन का) बदला भी दे तो भी उनमें से एक न लिया जाएगा जो लोग अपनी करनी की बदौलत मुब्तिलाए बला हुए है उनको पीने के लिए खौलता हुआ गर्म पानी (मिलेगा) और (उन पर) दर्दनाक अज़ाब होगा क्योंकर वह कुफ़्र किया करते थे (70)
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