(ऐ रसूल) उनसे कह दो कि मै तो ये नहीं कहता कि मेरे पास ख़ुदा के ख़ज़ाने
हैं (कि इमान लाने पर दे दूगा) और न मै गै़ब के (कुल हालात) जानता हूँ और न
मै तुमसे ये कहता हूँ कि मै फ़रिश्ता हूँ मै तो बस जो (ख़ुदा की तरफ से)
मेरे पास वही की जाती है उसी का पाबन्द हूँ (उनसे पूछो तो) कि अन्धा और आँख
वाला बराबर हो सकता है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं सोचते (51)
और इस क़ुरान के ज़रिए से तुम उन लोगों को डराओ जो इस बात का ख़ौफ रखते हैं कि वह (मरने के बाद) अपने ख़़ुदा के सामने जमा किये जायेंगे (और यह समझते है कि) उनका ख़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त हे और न कोई सिफारिष करने वाला ताकि ये लोग परहेज़गार बन जाए (52)
और (ऐ रसूल) जो लोग सुबह व शाम अपने परवरदिगार से उसकी ख़़ुशनूदी की तमन्ना में दुआएं माँगा करते हैं- उनको अपने पास से न धुत्कारो-न उनके (हिसाब किताब की) जवाब देही कुछ उनके जि़म्मे है ताकि तुम उन्हें (इस ख़्याल से) धुत्कार बताओ तो तुम ज़ालिम (के शुमार) में हो जाओगे (53)
और इसी तरह हमने बाज़ आदमियों को बाज़ से आज़माया ताकि वह लोग कहें कि हाए क्या ये लोग हममें से हैं जिन पर ख़़ुदा ने अपना फ़जल व करम किया है (यह तो समझते की) क्या ख़ुदा शुक्र गुज़ारों को भी नही जानता (54)
और जो लोग हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तुम्हारे पास आँए तो तुम सलामुन अलैकुम (तुम पर ख़़ुदा की सलामती हो) कहो तुम्हारे परवरदिगार ने अपने ऊपर रहमत लाजि़म कर ली है बेषक तुम में से जो शख्स़ नादानी से कोई गुनाह कर बैठे उसके बाद फिर तौबा करे और अपनी हालत की (असलाह करे ख़ुदा उसका गुनाह बख़्श देगा क्योंकि) वह यक़ीनी बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (55)
और हम (अपनी) आयतों को यू तफ़सील से बयान करते हैं ताकि गुनाहगारों की राह (सब पर) खुल जाए और वह इस पर न चले (56)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझसे उसकी मनाही की गई है कि मैं ख़ुदा को छोड़कर उन माबूदों की इबादत करुं जिन को तुम पूजा करते हो (ये भी) कह दो कि मै तो तुम्हारी (नफसानी) ख़्वाहिश पर चलने का नहीं (वरना) फिर तो मै गुमराह हो जाऊॅगा और हिदायत याफता लोगों में न रहूँगा (57)
तुम कह दो कि मै तो अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और तुमने उसे झुठला दिया (तो) तुम जिस की जल्दी करते हो (अज़ाब) वह कुछ मेरे पास (एख़्तियार में) तो है नहीं हुकूमत तो बस ज़रुर ख़़ुदा ही के लिए है वह तो (हक़) बयान करता है और वह तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है (58)
(उन लोगों से) कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम जल्दी करते हो अगर वह मेरे पास (एख़्तियार में) होता तो मेरे और तुम्हारे दरम्यिान का फैसला कब का चुक गया होता और ख़ुदा तो ज़ालिमों से खूब वाकि़फ है (59)
और उसके पास ग़ैब की कुन्जिया हैं जिनको उसके सिवा कोई नही जानता और जो कुछ खुश्की और तरी में है उसको (भी) वही जानता है और कोई पत्ता भी नहीं खटकता मगर वह उसे ज़रुर जानता है और ज़मीन की तारिकि़यों में कोई दाना और न कोई ख़ुष्क चीज़ है मगर वह नूरानी किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है (60)
और इस क़ुरान के ज़रिए से तुम उन लोगों को डराओ जो इस बात का ख़ौफ रखते हैं कि वह (मरने के बाद) अपने ख़़ुदा के सामने जमा किये जायेंगे (और यह समझते है कि) उनका ख़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त हे और न कोई सिफारिष करने वाला ताकि ये लोग परहेज़गार बन जाए (52)
और (ऐ रसूल) जो लोग सुबह व शाम अपने परवरदिगार से उसकी ख़़ुशनूदी की तमन्ना में दुआएं माँगा करते हैं- उनको अपने पास से न धुत्कारो-न उनके (हिसाब किताब की) जवाब देही कुछ उनके जि़म्मे है ताकि तुम उन्हें (इस ख़्याल से) धुत्कार बताओ तो तुम ज़ालिम (के शुमार) में हो जाओगे (53)
और इसी तरह हमने बाज़ आदमियों को बाज़ से आज़माया ताकि वह लोग कहें कि हाए क्या ये लोग हममें से हैं जिन पर ख़़ुदा ने अपना फ़जल व करम किया है (यह तो समझते की) क्या ख़ुदा शुक्र गुज़ारों को भी नही जानता (54)
और जो लोग हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तुम्हारे पास आँए तो तुम सलामुन अलैकुम (तुम पर ख़़ुदा की सलामती हो) कहो तुम्हारे परवरदिगार ने अपने ऊपर रहमत लाजि़म कर ली है बेषक तुम में से जो शख्स़ नादानी से कोई गुनाह कर बैठे उसके बाद फिर तौबा करे और अपनी हालत की (असलाह करे ख़ुदा उसका गुनाह बख़्श देगा क्योंकि) वह यक़ीनी बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (55)
और हम (अपनी) आयतों को यू तफ़सील से बयान करते हैं ताकि गुनाहगारों की राह (सब पर) खुल जाए और वह इस पर न चले (56)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझसे उसकी मनाही की गई है कि मैं ख़ुदा को छोड़कर उन माबूदों की इबादत करुं जिन को तुम पूजा करते हो (ये भी) कह दो कि मै तो तुम्हारी (नफसानी) ख़्वाहिश पर चलने का नहीं (वरना) फिर तो मै गुमराह हो जाऊॅगा और हिदायत याफता लोगों में न रहूँगा (57)
तुम कह दो कि मै तो अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और तुमने उसे झुठला दिया (तो) तुम जिस की जल्दी करते हो (अज़ाब) वह कुछ मेरे पास (एख़्तियार में) तो है नहीं हुकूमत तो बस ज़रुर ख़़ुदा ही के लिए है वह तो (हक़) बयान करता है और वह तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है (58)
(उन लोगों से) कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम जल्दी करते हो अगर वह मेरे पास (एख़्तियार में) होता तो मेरे और तुम्हारे दरम्यिान का फैसला कब का चुक गया होता और ख़ुदा तो ज़ालिमों से खूब वाकि़फ है (59)
और उसके पास ग़ैब की कुन्जिया हैं जिनको उसके सिवा कोई नही जानता और जो कुछ खुश्की और तरी में है उसको (भी) वही जानता है और कोई पत्ता भी नहीं खटकता मगर वह उसे ज़रुर जानता है और ज़मीन की तारिकि़यों में कोई दाना और न कोई ख़ुष्क चीज़ है मगर वह नूरानी किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है (60)
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