आयना ,यानी खुद का चेहरा सच में केसा है ,एक सच्ची तस्वीर ,ताके तुम और में
जो भी आयना देखें खुद को अपना बदशक्ल चेहरा देखकर सजा ,ले ,संवार ले ,सुधर
जाए ,,यही मक़सद है इस आयना शीर्षक की किताब का ,यह सिर्फ राजनितिक संगठन
,कार्यकर्ताओं के व्यवहार ,नेताओं का उनके प्रति व्यवहार ,कार्यकर्ताओं
द्वारा सच नेता तक पहुंचाने की हिम्मत नहीं कर पाने के बाद उपजी निराशा
,उपेक्षा ,,आम जनता में भरोसे की कमी का सच बताने के लिए लिखा जाना
उद्देश्य है ,प्लीज़ अपने अनुभव शेयर करे ,,मेरे व्हाट्सप्प 9829086339
पर मुमकिन हो तो कुछ पुख्ता उदाहरण जिससे हम पिछड़े है ,,हम इस हाल में
पहुंचे है ,हो तो प्लीज़ दीजिये न ,,कोई ,पत्र कोई पूर्व में दिए गए सुझाव
,जो अनुत्तरित है ,वोह भी दीजिये न ,वैसे मेरे अपने समाज के लोग तो सो में
से सौफीसदी वाले है ,लेकिन इनमे भी तो आँखों में आँख डाल कर अपने नेता से
अपनी बात कहनी की सलाहियत हिम्मत अभी तक नहीं आ पायी है ,,हाथ बांधे खड़े
रहना अलग बात ,,सुझाव देना ,सामाजिक सरोकार के काम करवाकर अपने नेता की
प्रतिष्ठा बढ़वाना अलग बात है ,,लेकिन ,नेता के सभी काम करने के बाद भी
,उनसे किसी भी काम की कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाने का कड़वा सच भी मेरे
अपने समाज के लोगों का आप पढियेगा ज़रूर ,,कुछ अनुभव हो तो वोह भी बताइयेगा
ज़रूर ,,अख्तर
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