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03 जून 2019

दोस्तों आदाब अर्ज़ है ,,ईद की ख़ुशी सामने है ,,रोज़े की इबादत का वक़्त

दोस्तों आदाब अर्ज़ है ,,ईद की ख़ुशी सामने है ,,रोज़े की इबादत का वक़्त,, इस साल आखिर वक़्त में है ,हो सकता है ,,आज चाँद दिख जाए ,,ईद कल हो जाए ,,लेकिन रोज़े में ,सियासी इफ्तार पार्टियों में बदमज़गी ,बदनिजामत का जो हाल होता है ,, आलिमों की मौजूदगी में यह सब ,, कभी,, कभी ,, नहीं , रोज़ ,रोज़ , होता है ,बस इसीलिए,, एक भाईजान ,जिनका नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि में अपने वायदे से बंधा हूँ ,उनकी प्रेरणा ,उनके झकझोरने ,, झिंझोड़ने से में ,यह गुस्ताख़ अलफ़ाज़ की बेबाक ,,तहरीर लिखने की हिम्मत कर रहा हूँ ,,में गुनहगार ही नहीं महागुनह्गार हूँ ,लेकिन फिर भी मज़हब को लेकर कुछ तो कटटरता भी है ,बस इसीलिए,, सुधार के लिए ,आलिमों के ज़रिये अगली बार,, सियासी बदमज़गी ,,महिमांडन ,,स्वागत सत्कार वाले इफ्तार कार्यक्रमों पर ,,,सार्वजनिक रूप से पाबंदी के ,,इश्तेहार करने की उम्मीद से ,,रोज़े को आलिमों की मौजूदगी में बेहुरमती से बचाने की , यह तल्ख़ कोशिश कर रहा हूँ ,, क्योंकि ,,हमारे मज़हब में अगर कोई बुराई देखो तो उसे ताक़त के बल पर रोक दो ,,अगर ताक़त के बल पर नहीं रोक सकते तो बोलकर ,इशारे से ,लिखकर विरोध करो ,ऐसा नहीं कर सकते तो कमसे कम दिल में बुरा कहकर उससे अलग हो जाए ,इस्लामिक यही सीख भी मुझे इस तहरीर की इजाज़त देती है ,में बहुत ज़्यादा बाहुबली ताक़तवर तो नहीं ,लेकिन अल्लाह ने दो अलफ़ाज़ बेबाकी से लिखने की सलाहियत दी है इसीलिए यह तहरीरी गुस्ताखी ज़ेर ऐ पेश है ,, हम तो गुनहगार है ,लेकिन आलिम ऐ दींन तो पाकीज़ा है , वोह अल्लाह के सिवा किसी भी सियासी नेता का कोई खौफ नहीं रखते ,वोह इस्लाम की रिवायतों ,इबादत के तोर तरीकों के मुहाफ़िज़ भी होते ,है और हर हाल में वोह इसे बचाने के लिए तब्लीग भी करते है ,ऐसे आलिम चमचागिरी ,चापलूसी ,स्वागत सत्कार ,तोहफों ,दिखावे के मोहताज नहीं होते वोह निडर होकर ऐसे मामलों में कोई फैसला ज़रूर लेंगे ,हाँ ईद मिलन समारोह एक अलग तब्लीगी ,गंगाजमुना तहज़ीब ,, खुशियों को क़ौमी एकता के पैगाम के साथ बांटा जाए तो अख़लाक़ी हो सकता है ,, सियासी रोज़ा अफ्तार में बदमज़गी ,आलिमों की मौजूदगी में नमाज़ ,रोज़ेदारों की ज़िल्लत का माहौल देखकर दो साल पहले मेने एक लेख लिखकर ऐसे इफ्तार जिसमे इस्लामिक इबादती रिवायतों की मुखालफत हो ,,अपना विरोध दर्ज कराया था ,,इसी दौरान कोटा में निकाह ,निकासी के वक़्त बेंड बाजे को लेकर एक अघोषित क़ानून की घोषणा हुई ,जिसमे जिस निकाह में डांस ,बेंड बाजे हों वहां निकाह पढ़ाने वालों को निकाह नहीं पढ़ाने तक की हिदायत दी गयी ,मेने इस मामले में भी तारीफ़ की ,लोगों में जागरूकता हुई और काफी हद तक खुद की मर्ज़ी से ऐसी बेहयाई पर रोक सी लगी ,अभी भी क़रीब क़रीब ऐसे डांस ,म्युज़िक पर रोक है ,,,इसी दौरान एक भाईजान ने मुझे झिंझोड़ा ,सवाल किया ,आपने रोज़े में इफ्तार प्रोग्राम और नमाज़ के मामले में जो गैर इस्लामिक हरकतें होती है ,उन्हें रोकने के लिए कोई सुझावात्मक ,प्रतिकार करते हुए लेख नहीं लिखा ,में पिछले साल किसी भी सियासी इफ्तार पार्टी में हरगिज़ हरगिज़ नहीं गया था ,इसलिए इफ्तार में क्या दुश्वारियां है ,,क्या हालात है ,आलिमों के सामने इफ्तार आयोजकों की क्या गैरइस्लामिक हरकते है ,नमाज़ के वक़्त क्या नापकीजगियां है ,इस मामले में कोई मंज़र कशी मेरे दिमाग में नहीं थी ,बस इस साल मेने सियासी महिमांडन करने वाली इफ्तार पार्टियों में नहीं जाने के अहद को तोडा और अपने साथियों के रोकने के बावजूद भी कुछ सियासी पार्टियों के हालात जानने के लिए इफ्तार पार्टियों में जाना हुआ ,,,यक़ीनन मेरे भाईजान जिन्होंने मुझे इफ्तार पार्टियों में ज़िल्ल्त भरे माहौल की मंज़र कशी करते हुए ,निकाह के वक़्त नाच गाने पर रोक लगाने और ऐसा नहीं करने पर निकाह नहीं पढ़ाने के फैसले और इफ्तार की ज़िल्लत के वक़्त चुप्पी सिर्फ चुप्पी ही नहीं उसमे भागीदार बनने पर आलिमों की चुप्पी को पक्षपात पूर्ण बताते हुए मेरी खिंचाई की थी ,मुझे जायज़ लगी ,मेरे इन भाईजान पर पहले तो नाराज़ हुआ ,,उल्टा सुलटा ,भरा ,बुरा कहा ,,आलिमों के ग्रुप बनाकर उनके मुख़ालिफ़ीन बताया ,,मगर इन भाईजान ने मुस्कुराते हुए कहा ,,क़लम रुक गयी है तो कोई बात नहीं ,लकिन फिर भी अहद तोड़िये ,बाहर निकलिए और सियासी इफ्तार पार्टियों में रोज़ेदारों की ज़िल्ल्त ,,निजी लोगों का महिमामंडन ,,मालाये ,,स्वागत ,सत्कार ,तोहफेबाज़ी का दौर ,,,आलिम ऐ दींन लोगों की रोज़े की तक़रीर के वक़्त सियासी शोर शराबा ,,अव्यवस्थाएं ,,,सियासी लोगों के आने के बाद उनकी तवज्जो में बदमज़गियां ,रोज़ेदारों में एक भगदड़ का माहौल ,,नमाज़ की जल्दी में अव्यस्थाओं के बीच नमाज़ की अदायगी ,,अगर एक से दो आलिम ऐ दींन हो गए ,तो नमाज़ पढ़ाने की इमामत पर रस्साकशी ,,अजीब सा मंज़र लगा ,,हम भी सियासत में है सियासत का एक हिस्सा है ,लेकिन यक़ीनन सियासत के नाम पर इस्लामी अरकान ,रोज़े को इफ्तार के नाम पर बिगड़ते हुए देखकर चुप्पी साध लेना मेरे जैसे गुनाहगारों के लिए और गुनहगारी होगी ,,सुधार हो या न हो ,लेकिन शुरुआत तो होना चाहिए ,,यह सब कहीं अलग थलग कोने में नहीं ,,आलिम ऐ दींन की मौजूदगी में होना अजीब सा लगत्ता है ,रोज़े में इबादत का आज अगर अल्लाह ने चाहा तो इस साल का आखरी दिन हो सकता है ,चाँद अगर नज़र आया तो ईद कल हो सकती है ,यह खुदा का फैसला है ,लकिन जिन भाईजान को मेने हड़काया था ,उनके पास जाकर सबसे पहले तो मेने मुआफी मांगी ,शर्मिंदगी ज़ाहिर की ,,भाईजान ने मेरी पीठ थपथपाई वायदा लिया ,हिम्मत करो ,सच ,लिखो ज़द में जो भी आये आने दो ,,भाईजान से मेने ऐसे मामलों में रोक लगाने के लिए सुझाव चाहे ,,,तो भाईजान फिर मुस्कुराये मुझे धकियाते हुए कहा ,यूँ तो बढ़े अक़्लमंद बनते हो ,लेकिन हो बुद्धू के बुद्धू ,इतना भी नहीं पता ,जब आलिम ए दीन ,,निकाह के वक़्त धूम धड़ाके को इस्लाम के क़ानून के खिलाफ बताकर इसे रोकने का ऐलान करते ,,है ,ऐसे मामलों का उलंघन होने पर निकाह नहीं पढ़ाने की सजा देते है ,तो फिर वोह खुद इफ्तार पार्टियों में जाना बंद करे ,सार्वजनिक रूप से आम मुसलमानों में इसकी तब्लीग करके इसका ऐलान करके इंकार करे ,,अगर कोई इफ्तार पार्टी में जाना भी हो ,तो इस्लामिक क़ानून रिवायतों के मुताबिक़ ऐसे आयोजकों को इंतिज़ाम ,करने ,अनुशासन क़ायम करने की हिदायत हो ,मालाओं से ,तोहफों से बचा जाए ,,स्वागत सत्कार से ज़्यादा तक़रीर पर ध्यान हो और तक़रीर जब हो तो बस तक़रीर हो शोरशराबा हो तो उठकर आने की हिम्मत भी हो ,रोज़े इफ्तार के बाद नमाज़ का साफ़ सुथरा रोज़ेदारों के रुतबे के इंतज़ामात हो ,,इसकी पालना सुनिश्चित हों तो आलिम ऐ दींन को ऐसे कार्यक्रम में जाना चाहिए वरना यह सच है ,और जो रोज़ेदार ,गैर सियासी लोग ,या क़ल्ब से मज़हबी सियासी लोग भी अपने दिल पर हाथ रखकर इंसाफाना जवाब देंगें तो यक़ीनन एक जवाब बेसाख्ता निकलेगा ,गलत ,है गलत है ,ग़लत है ,जो गुनाह निकाह के वक़्त बैंडबाजे बजाने ,नाचने ,गाने का बताकर निकाह से इंकार करने की सजा सुनाई है ,वैसे ही रोज़े इफ्तार की महफिल सज़ा कर ,इस तरह की अव्यवस्थाये ,,शोर शराबे ,भागम भाग ,,स्वागत सत्कार ,निजी महिमामंडन ,,क़सीदेबाज़ी ऐसा ही बेहुरमती वाला गुनाह है ,ऐसे मामलों में भी आलिम ऐ दींन की महफ़िल से जुड़े इज़्ज़तमआब लोगों को ,अपने कलेजे पर हाथ रखकर आत्मचिंतन करना चाहिए और ऐसे अव्यस्थित रोज़ेदारों के साथ शरारत जैसी हरकत करने वाले प्रोग्रामों से उन्हें बचना चाहिए और आम मसजिदों में ,,प्रोग्रामों में आम रोज़ेदारों से भी ऐसे प्रोग्रामों से दूर रहने की अपील करना चाहिए ,,में सही हूँ या गलत मुझे पता नहीं ,में जानता हूँ एक तरफ सियासी लोगों की नाराज़गी का में शिकार बनूंगा ,दूसरी तरफ कुछ आलिम ऐ दींन भी इस कड़वे सच को आत्मचिंत के बाद मुझ से नाराज़गी का रिश्ता बना सकते है ,लेकिन मुझे यक़ीन है बहुमत मेरी पीठ थपथपाने वालों का होगा ,,और फिर अल्लाह ने इज़्ज़त देना ,ज़िल्ल्त देना खुद के हाथ में रखी है ,चंद लोगों की नाराज़गी ,जिसे अल्लाह रखे उसे कौन चखे वाली कहावत की तरह से दूर हो जाती है ,,,गुस्ताखी माफ़ हो , गुस्ताखी माफ़ हो ,,,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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