और वह लोग कहने लगे ऐ शोएब जो बाते तुम कहते हो उनमें से अक्सर तो हमारी
समझ ही में नहीं आयी और इसमें तो शक नहीं कि हम तुम्हें अपने लोगों में
बहुत कमज़ोर समझते है और अगर तुम्हारा क़बीला न हेाता तो हम तुम को (कब का)
संगसार कर चुके होते और तुम तो हम पर किसी तरह ग़ालिब नहीं आ सकते (91)
शोएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम क्या मेरे कबीले का दबाव तुम पर ख़ुदा से भी बढ़ कर है (कि तुम को उसका ये ख़्याल) और ख़ुदा को तुम लोगों ने अपने वास्ते पीछे डाल दिया है बेशक मेरा परवरदिगार तुम्हारे सब आमाल पर अहाता किए हुए है (92)
और ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) करो मैं भी (बजाए खुद) कुछ करता हू अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाजि़ल होता है जा उसको (लोगों की नज़रों में) रुसवा कर देगा और (ये भी मालूम हो जाएगा कि) कौन झूठा है तुम भी मुन्तिज़र रहो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तेज़ार करता हूँ (93)
और जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने शोऐब और उन लोगों को जो उसके साथ इमान लाए थे अपनी मेहरबानी से बचा लिया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक चिंघाड़ ने ले डाला फिर तो वह सबके सब अपने घरों में औंधे पड़े रह गए (94)
(और वह ऐसे मर मिटे) कि गोया उन बस्तियों में कभी बसे ही न थे सुन रखो कि जिस तरह समूद (ख़ुदा की बारगाह से) धुत्कारे गए उसी तरह एहले मदियन की भी धुत्कारी हुयी (95)
और बेशक हमने मूसा को अपनी निशनियाँ और रौशन दलील देकर (96)
फिरआऊन और उसके अम्र (सरदारों) के पास (पैग़म्बर बना कर) भेजा तो लोगों ने फिरआऊन ही का हुक्म मान लिया (और मूसा की एक न सुनी) हालांकि फिरआऊन का हुक्म कुछ जॅचा समझा हुआ न था (97)
क़यामत के दिन वह अपनी क़ौम के आगे आगे चलेगा और उनको दोज़ख़ में ले जाकर झोंक देगा और ये लोग किस क़दर बड़े घाट उतारे गए (98)
और (इस दुनिया) में भी लानत उनके पीछे पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी) क्या बुरा इनाम है जो उन्हें मिला (99)
(ऐ रसूल) ये चन्द बस्तियों के हालात हैं जो हम तुम से बयान करते हैं उनमें से बाज़ तो (उस वक़्त तक) क़ायम हैं और बाज़ का तहस नहस हो गया (100)
शोएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम क्या मेरे कबीले का दबाव तुम पर ख़ुदा से भी बढ़ कर है (कि तुम को उसका ये ख़्याल) और ख़ुदा को तुम लोगों ने अपने वास्ते पीछे डाल दिया है बेशक मेरा परवरदिगार तुम्हारे सब आमाल पर अहाता किए हुए है (92)
और ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) करो मैं भी (बजाए खुद) कुछ करता हू अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाजि़ल होता है जा उसको (लोगों की नज़रों में) रुसवा कर देगा और (ये भी मालूम हो जाएगा कि) कौन झूठा है तुम भी मुन्तिज़र रहो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तेज़ार करता हूँ (93)
और जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने शोऐब और उन लोगों को जो उसके साथ इमान लाए थे अपनी मेहरबानी से बचा लिया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक चिंघाड़ ने ले डाला फिर तो वह सबके सब अपने घरों में औंधे पड़े रह गए (94)
(और वह ऐसे मर मिटे) कि गोया उन बस्तियों में कभी बसे ही न थे सुन रखो कि जिस तरह समूद (ख़ुदा की बारगाह से) धुत्कारे गए उसी तरह एहले मदियन की भी धुत्कारी हुयी (95)
और बेशक हमने मूसा को अपनी निशनियाँ और रौशन दलील देकर (96)
फिरआऊन और उसके अम्र (सरदारों) के पास (पैग़म्बर बना कर) भेजा तो लोगों ने फिरआऊन ही का हुक्म मान लिया (और मूसा की एक न सुनी) हालांकि फिरआऊन का हुक्म कुछ जॅचा समझा हुआ न था (97)
क़यामत के दिन वह अपनी क़ौम के आगे आगे चलेगा और उनको दोज़ख़ में ले जाकर झोंक देगा और ये लोग किस क़दर बड़े घाट उतारे गए (98)
और (इस दुनिया) में भी लानत उनके पीछे पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी) क्या बुरा इनाम है जो उन्हें मिला (99)
(ऐ रसूल) ये चन्द बस्तियों के हालात हैं जो हम तुम से बयान करते हैं उनमें से बाज़ तो (उस वक़्त तक) क़ायम हैं और बाज़ का तहस नहस हो गया (100)
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