खुद पर गुज़रती है तो अहसास होता है कहाँ कितनी परेशानियां ,कितनी
अव्यवस्थाएं है ,मुख्यमंन्त्री वसुंधरा सिंधिया के गृह संभाग के ,संभागीय
आयुक्त कितने लाचार ,,कितने बेबस है ,इसका अंदाजा उस वक़्त लगा जब वोह आधी
रात को अपनी दोहती के पेट में दर्द होने की शिकायत के बाद त्वरित इलाज के
लिए कोटा संभाग के सबसे बढे अस्पताल महाराव भीम सिंह चिकित्सालय नयापुरा ले
गए ,,,संभागीय आयुक्त अपनी दोहती के तत्काल इलाज के लिखे भटकते रहे,अपना
परिचय देते रहे ,लेकिन चिकित्स्कों ,,स्टाफ ने उनकी एक नहीं ,सुनी पर्ची
कटवाने की ज़िद पर अड़ गए ,,इतना ही नहीं संभागीय आयुक्त इलाज के लिए भटकते
रहे और स्टाफ कर्मी मोबाइल पर खेलते रहे ,यह कोई नई बात नहीं ,यह घटना आम
आदमी के साथ रोज़ होती है ,लेकिन इसका अहसास पहली बार किसी अधिकारी को यहां
हुआ है ,,अधिकारी फिर भी किसी के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं कर पाए है
,,कोटा संभाग के हर दफ्तर ,हर जन सुविधा से जुडी व्यवस्था का यही तो हाल
है ,,,एक वक़्त था जब अधिकारी स्टिंग ऑपरेशन चलाकर ,छद्म मरीज़ ,,छद्म
ज़रूरतमंद को भेजकर विभाग के कर्मचारियों ,अस्पतालों ,थानों के हालात पता
करते थे फिर उन्हें सुधारने की हिदायत भी देते थे ,उनके खिलाफ कार्यवाही भी
करते थे ,,लेकिन अब ऐसा नहीं होता ,जनप्रतिनिधि अपनी अपनी ढपली अपना अपना
राग अलापते है ,राजनितिक विरोधाभास होने के बाद भी ,,अलग अलग पार्टियों के
नेताओं में ऐसा गठंबंधन होता है ,के तू मेरी मत कह ,में तेरी नहीं कहूं
वाले कहावत चरितार्थ होती है ,कोटा संभागीय आयुक्त की आप बीती शर्मनाक है
,आम आदमी होता तो डॉक्टर उसे मारपीट कर बंद करवा देते ,हड़ताल कर देते ,,एक
अख़बार ने इस व्यवस्था की पोल खोलते हुए जो सच उजागर किया है उसके लिए वोह बधाई
के पात्र है ,,कोटा संभाग की ,कोटा संभाग के हर जन सुविधा से जुड़े विभाग
की ऐसी ही स्थिति है ,थानों का हाल सभी देख रहे है ,जनसुनवाई की फोर्मलिटी
रोज़ हम देखते है ,सिर्फ कागज़ की खानापूर्ति धरातल पर कोई इंसाफ नहीं ,सत्ता
पक्ष के खिलाफ अव्यवस्था ,अराजकता ,,बेईमानी ,,भ्रष्टाचार के प्रमाणिक
अपराध है लेकिन विधानसभा में कोई सवाल नहीं उठाता ,विधानसभा तो छोडो इतनी
सियासी पार्टियां इतने प्रतिनिधि जो एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े है वोह भी
प्रशासनिक स्तर पर ,राजनितिक स्तर ,,किसी भी सूरत में कोई इलज़ाम प्रेस
कॉन्फ्रेंस कर के नहीं लगाता है ,,सभी एक दूसरे में शामिल है छोटा
कार्यकर्ता सामाजिक कार्यक्रमों में अगर किसी दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता
से एक समाज का होने से अभिवादन भी कर ले तो बढे नेता उस पर गुर्राते है
लेकिन यह बढे लोग ,तू मेरी मत कह ,में तेरी नहीं कहूंगा वाली सियासत पर
कार्यकर्ताओं को बेवक़ूफ़ बनाते है ,इनकी ख़ामोशी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है
,यह लोग संगठन पार्टियों की मर्यादाओ का ताक में रखकर वोटो को जिधर चाहे
ट्रांसफर करवा दे ,पार्टी की मर्यादाओं के खिलाफ जिधर चाहे गिरवी रख दें
पार्टी के अधिकृत प्रत्याक्षी के खिलाफ जिसे चाहे समर्थन दे दे ,कोई देखने
वाला ,कोई सुनने वाला नहीं है ,हाड़ोती का सियासी अतीत घिनोना है भीतर घाती
है ,,चोर चोर मोसेरे भाई वाला है ,लेकिन अधिकारी वर्ग में ऐसी खामोशी ऐसी
उपेक्षा पहले नहीं थी ,एक प्रमोटी कमिश्नर कोटा में कई महीनों बाद तैनात
होता है ,कोई अधिकारी ,,कोई कलेक्टर उनकी बैठक में नहीं जाता ,उनकी खुद की
अस्पताल में सुनवाई नहीं होती इससे ज़्यादा प्रशासनिक अक्षमता का नज़ारा क्या
होगा ,लेकिन कहते है ,,आल आल इज़ वेळ ,,आल इज़ वेळ ,,ऐसे में हम हमारा कोटा
कैसे होगा कामयाब ,कैसे होंगे कामयाब ,जनप्रतिनिधि चुप ,अखबार चुप ,,जनता
चुप ,,संगठन चुप ,,अधिकारी बेबस लाचार ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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