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16 अप्रैल 2018

हैदराबाद मक्का मस्जिद विस्फोट में नो लोगो की हत्या

हैदराबाद मक्का मस्जिद विस्फोट में नो लोगो की हत्या ,,चालीस लोगो को गंभीर घायल करने के स्वामी असीमानन्द सहित पांच आरोपी बरी हो गए ,,ऍन आई ऐ ने चार्ज शीट पेश की थी ,विशेष अदालत में 160 गवाहों ,में से 54 गवाह पक्षद्रोही साबित हुए ,,जज साहिब ने कहा सबूत नहीं है ,,आरोपियों को बरी किया जाता है ,,इन जज साहिब ने इतिहास भी रचा ,,,फैसला दिया और फैसला देकर निजी कारणों से नौकरी से इस्तीफा देने की घोषणा की ,,अजीब बात है जज आर रेड्डी साहिब को इस्तीफा ही देना था तो फिर इस फैसले को सुनाने की उन्हें क्या मजबूरी आन पढ़ी थी ,,खेर यह एक न्यायिक मामला है ,,,लेकिन ऐसे जघन्य राष्ट्रविरोधी मामलों में सियासत करने की जगह सरकारों को बरी होने के मामले में जांच एजेंसियों की संदिग्धता ,,मुल्ज़िमों को झूंठा फंसाने का षड्यंत्र ,,या फिर सरकार बदलने के बाद ,,चार्जशीट पेश होने के बाद ,अधिकारीयों के बयानों में बदलाव ,जिरह में मुख्य परीक्षण में भटकाव ,,गवाहों की पक्षद्रोहिता ,,उनके कारणों की भी जांच होना चाहिए ,एक जज के सामने क़लमबन्द बयान ,और फिर उस बयानों से मुकर जाना फिर जज के समक्ष दिए गए बयानों की प्रासंगिकता क्या रह जाती है ,,,असीमानंद बरी हुए ,,उनके चार साथी भी बरी हुए ,,अगर वोह निर्दोष थे उन्हें झूंठा फंसाया गया था तो ऍन आई ऐ के अधिकारीयों के खिलाफ मुक़दमा दर्ज कर कठोर कार्यवाही की जाकर ,, निर्दोष लोगो को मुआवज़ा दिलवाना चाहिए ,अगर ऍन आई ऐ ने अभियुक्तों को पुख्ता सुबूतों के साथ पकड़े ,तो अदालत में सुनवाई के दौरान मुक़दमे की पैरवी में मज़बूती की कमी ,,ईमानदारी की कमी ,,गवाहो का मुकर जाना ,,मुकरे गए गवाहान का पारिवारिक स्तर में सुनवाई के बाद आये बदलाव ,उनके उस दौरान के मोबाइल नंबर की कॉल डिटेल ,,सरकारी अधिकारियो ,,जांच अधिकारियो ,के मुख्य परीक्षण और जिरह के दौरान गवाहों के बयानों में बदलाव ,,सरकारी वकील का पक्षद्रोही गवाहान से जिरह में पूंछे गए सवाल ,उनकी प्रासंगिकता ,,पैरवी के समय पेश की गयी दलीले ,,उच्चतम न्यायलय के दृष्टांत पेश करने में कोताही मामले की पूरी जांच ,सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश वोह न्यायधीश जो , पत्रकार सम्मेलन में सुप्रीमकोर्ट के लिए इंसाफ मांगते है उनसे समीक्षात्मक जांच करवाए ,,अचानक जज साहिब के फैसले के तुरंत बाद इस्तीफा दिए जाने के पीछे के सच की भी जांच हो ,अगर असीमानंद और साथियों को झूंठा फंसाना साबित होता है तो फिर उन सभी जांच अधिकारियो गवाहो जिन्होंने इन्हे निर्दोष होंने पर भी फंसाया उनके खिलाफ मुक़दमा दर्ज कर कार्यवाही हो जबकि निर्दोषो को जिन्हे बरी किया गया हैं उन्हें उनके परिजनों को इस ग्यारह साल का मुआवज़ा भी दिलवाया जाए ,,लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट की जांच के दौरान अभियोजन पक्ष की घोर लापरवाही ,,मिली भगत ,,जिरह में जान बूझकर पक्षद्रोही गवाहान से सवाल नहीं पूंछना ,,जिरह के दौरान सरकारी गवाहान का बदलाव होना ,,जज का अचानक इस्तीफा देना ,,,लोक अभियोजक द्वारा बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दृष्टांत पेश नहीं करने के मामले में उनके खिलाफ मुक़दमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजना चाहिए ,साथ ही इस मामले की अपील करना चाहिए ,,,सरकार को ऐसे सभी मामलों में इसी तरह की जांच करने के लिए पांच सदस्यों की हर पत्रावली की समीक्षा और अपील सहित गवाहान की मिलीभगत ,अभियोजन की कमज़ोरियों की राय देने के लिए क़ानूनी प्रक्रिया बनाना चाहिए ,,ताकि मज़हब के नाम पर ,,सियासत के नाम पर ,,बदले की भावना से ,मामले को तत्काल रफा दफा करने की दृष्टि से जिन लोगो को झूंठा फंसाया जाता है ,,या सही फंसाने के बाद ,,अभियोजन की गलत पैरवी ,लापरवाही ,,गवाहान से सही सवाल नहीं पूंछना ,,सही दृष्टांत नहीं पेश करने के मामले में उचित कार्यवाही हो सके ,,क्या ऐसा हो सकेगा ,,निर्दोषो को झूंठा फंसाया जाना ,दोषियों को धन बल ,,सत्ता बल ,सरकारी वकीलों से सेटिंग कर ,,जजों का आखरी फैसला सुनाकर ,,मुल्ज़िमों को बरी कर इस्तीफा देने की प्रक्रिया पर रोक लग सकेगी ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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