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09 मार्च 2018

क़ुरान का संदेशः

(मुसलमानों जब तुम रूए ज़मीन पर सफ़र करो) और तुमको इस अम्र का ख़ौफ़ हो कि कुफ़्फ़ार (असनाए नमाज़ में) तुमसे फ़साद करेंगे तो उसमें तुम्हारे वास्ते कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि नमाज़ में कुछ कम कर दिया करो बेशक कुफ़्फ़ार तो तुम्हारे ख़ुल्लम ख़ुल्ला दुश्मन हैं (101)
और (ऐ रसूल) तुम मुसलमानों में मौजूद हो और (लड़ाई हो रही हो) कि तुम उनको नमाज़ पढ़ाने लगो तो (दो गिरोह करके) एक को लड़ाई के वास्ते छोड़ दो (और) उनमें से एक जमाअत तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपने हथियार अपने साथ लिए रहे फिर जब (पहली रकअत के) सजदे कर (दूसरी रकअत फुरादा पढ़) ले तो तुम्हारे पीछे पुश्त पनाह बनें और दूसरी जमाअत जो (लड़ रही थी और) जब तक नमाज़ नहीं पढ़ने पायी है और (तुम्हारी दूसरी रकअत में) तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपनी हिफ़ाज़त की चीजे़ और अपने हथियार (नमाज़ में साथ) लिए रहे कुफ़्फ़ार तो ये चाहते ही हैं कि काश अपने हथियारों और अपने साज़ व सामान से ज़रा भी ग़फ़लत करो तो एक बारगी सबके सब तुम पर टूट पड़ें हाँ अलबत्ता उसमें कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि (इत्तेफ़ाक़न) तुमको बारिश के सबब से कुछ तकलीफ़ पहुचे या तुम बीमार हो तो अपने हथियार (नमाज़ में) उतार के रख दो और अपनी हिफ़ाज़त करते रहो और ख़ुदा ने तो काफि़रों के लिए जि़ल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है (102)
फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो उठते बैठते लेटते (ग़रज़ हर हाल में) ख़ुदा को याद करो फिर जब तुम (दुश्मनों से) मुतमईन हो जाओ तो (अपने मअमूल) के मुताबिक़ नमाज़ पढ़ा करो क्योंकि नमाज़ तो इमानदारों पर वक़्त मुय्यन करके फ़र्ज़ की गयी है (103)
और (मुसलमानों) दुशमनों के पीछा करने में सुस्ती न करो अगर लड़ाई में तुमको तकलीफ़ पहुँचती है तो जैसी तुमको तकलीफ़ पहुँचती है उनको भी वैसी ही अज़ीयत होती है और (तुमको) ये भी (उम्मीद है कि) तुम ख़ुदा से वह वह उम्मीदें रखते हो जो (उनको) नसीब नहीं और ख़ुदा तो सबसे वाकि़फ़ (और) हिकमत वाला है (104)
(ऐ रसूल) हमने तुमपर बरहक़ किताब इसलिए नाजि़ल की है कि ख़ुदा ने तुम्हारी हिदायत की है उसी तरह लोगों के दरमियान फ़ैसला करो और ख़्यानत करने वालों के तरफ़दार न बनो (105)
और (अपनी उम्मत के लिये) ख़ुदा से मग़फि़रत की दुआ माँगों बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (106) और (ऐ रसूल) तुम (उन बदमाशों) की तरफ़ होकर (लोगों से) न लड़ो जो अपने ही (लोगों) से दग़ाबाज़ी करते हैं बेशक ख़ुदा ऐसे शख़्स को दोस्त नहीं रखता जो दग़ाबाज़ गुनाहगार हो (107)
लोगों से तो अपनी शरारत छुपाते हैं और (ख़ुदा से नहीं छुपा सकते) हालांकि वह तो उस वक़्त भी उनके साथ साथ है जब वह लोग रातों को (बैठकर) उन बातों के मशवरे करते हैं जिनसे ख़ुदा राज़ी नहीं और ख़ुदा तो उनकी सब करतूतों को (इल्म के अहाते में) घेरे हुए है (108)
(मुसलमानों) ख़बरदार हो जाओ भला दुनिया की (ज़रा सी) जि़न्दगी में तो तुम उनकी तरफ़ होकर लड़ने खड़े हो गए (मगर ये तो बताओ) फिर क़यामत के दिन उनका तरफ़दार बनकर ख़ुदा से कौन लड़ेगा या कौन उनका वकील होगा (109)
और जो शख़्स कोई बुरा काम करे या (किसी तरह) अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करे उसके बाद ख़ुदा से अपनी मग़फि़रत की दुआ माँगे तो ख़ुदा को बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान पाएगा (110)

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