कहा जाता है कि भारत देश का नाम भारत नामक जैन मुनि के नाम के नाम पर पड़ा।
यह भी मान्यता है कि शकुन्तला के बेटे भरत जो बचपन में शेरो के संग खेलकर
बड़े हुए, उनके नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। यह भी हो सकता है कि राम के
भाई भरत के नाम पर भारत नाम पड़ा हो या कृष्ण से 500 साल पहले नाट्यशास्त्र
के मशहूर योगी भरत के नाम पर पड़ा हो। जब ये सारे नाम पुल्लिंग हैं तो ये
बीच में भारत माता कहां से आ गई?
एक थे अजीमुल्ला खां जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर देश के लिए काम किया। आगे चलकर इन्हीं अजीमुल्ला खां ने मादरे वतन भारत की जय का नारा दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी मादरे वतन भारत की जय के नारे को मान लिया। बाद में स्वामी दयानन्द ने उन पांच व्यक्तियों को आपसी विमर्श कर संगठित किया, जो आगे चलकर 1857 की क्रान्ति के कर्णधार बने। ये थे: नाना साहेब, अजीमुल्ला खां, बाला साहब, तांत्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह।
तय किया गया कि फिरंगी सरकार के खिलाफ पूरे भारत देश में सशस्त्र क्रान्ति के लिए आधारभूमि तैयार की जाए। जनसाधारण और आर्यावर्तीय (भारतीय) सैनिकों में इस क्रान्ति की आवाज को पहुंचाने के लिए ‘रोटी तथा कमल’ की योजना यहीं तैयार की गई। मादरे वतन भारत का नारा भी इस योजना में शामिल किया गया। इस विमर्श में प्रमुख भूमिका स्वामी दयानन्द सरस्वती और अजीमुल्ला खां की ही थी। बाद में यह नारा बंट गया। कांग्रेस में भारत माता की जय, मुस्लिम लीग की सभाओं में मादरे वतन की जय या जय हिन्द। हिन्दू महासभा ने जय हिन्द का नारा पसंद किया जबकि मुस्लिम लीग में मादरे वतन की जय का नारा ही रह गया। इस तरह देखें तो मादरे वतन भारत की जय (भारत माता की जय) नारा किसी और ने नहीं, मुस्लिमों ने दिया जिसे स्वतंत्रता संघर्ष के समय बिना भेदभाव के हर किसी ने बोला। अब आकर इस नारे को भी विवादित बना दिया गया है।
एक थे अजीमुल्ला खां जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर देश के लिए काम किया। आगे चलकर इन्हीं अजीमुल्ला खां ने मादरे वतन भारत की जय का नारा दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी मादरे वतन भारत की जय के नारे को मान लिया। बाद में स्वामी दयानन्द ने उन पांच व्यक्तियों को आपसी विमर्श कर संगठित किया, जो आगे चलकर 1857 की क्रान्ति के कर्णधार बने। ये थे: नाना साहेब, अजीमुल्ला खां, बाला साहब, तांत्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह।
तय किया गया कि फिरंगी सरकार के खिलाफ पूरे भारत देश में सशस्त्र क्रान्ति के लिए आधारभूमि तैयार की जाए। जनसाधारण और आर्यावर्तीय (भारतीय) सैनिकों में इस क्रान्ति की आवाज को पहुंचाने के लिए ‘रोटी तथा कमल’ की योजना यहीं तैयार की गई। मादरे वतन भारत का नारा भी इस योजना में शामिल किया गया। इस विमर्श में प्रमुख भूमिका स्वामी दयानन्द सरस्वती और अजीमुल्ला खां की ही थी। बाद में यह नारा बंट गया। कांग्रेस में भारत माता की जय, मुस्लिम लीग की सभाओं में मादरे वतन की जय या जय हिन्द। हिन्दू महासभा ने जय हिन्द का नारा पसंद किया जबकि मुस्लिम लीग में मादरे वतन की जय का नारा ही रह गया। इस तरह देखें तो मादरे वतन भारत की जय (भारत माता की जय) नारा किसी और ने नहीं, मुस्लिमों ने दिया जिसे स्वतंत्रता संघर्ष के समय बिना भेदभाव के हर किसी ने बोला। अब आकर इस नारे को भी विवादित बना दिया गया है।
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