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31 जुलाई 2017

क़ुरआन का सन्देश

और (हमने) क़ौमे समूद के पास उनके भाई सालेह को (पैग़म्बर बनाकर भेजा) तो उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़़ुदा ही की परसतिश करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं उसी ने तुमको ज़मीन (की मिट्टी) से पैदा किया और तुमको उसमें बसाया तो उससे मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसकी बारगाह में तौबा करो (बेशक मेरा परवरदिगार (हर शख़्स के) क़रीब और सबकी सुनता और दुआ क़ुबूल करता है (61)
वह लोग कहने लगे ऐ सालेह इसके पहले तो तुमसे हमारी उम्मीदें वाबस्ता थी तो क्या अब तुम जिस चीज़ की परसतिश हमारे बाप दादा करते थे उसकी परसतिश से हमें रोकते हो और जिस दीन की तरफ तुम हमें बुलाते हो हम तो उसकी निस्बत ऐसे शक में पड़े हैं (62)  कि उसने हैरत में डाल दिया है सालेह ने जवाब दिया ऐ मेरी क़ौम भला देखो तो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे अपनी (बारगाह) मे रहमत (नबूवत) अता की है इस पर भी अगर मै उसकी नाफ़रमानी करुँ तो ख़ुदा (के अज़ाब से बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा-फिर तुम सिवा नुक़सान के मेरा कुछ बढ़ा दोगे नहीं (63)
ऐ मेरी क़ौम ये ख़ुदा की (भेजी हुयी) ऊँटनी है तुम्हारे वास्ते (मेरी नबूवत का) एक मौजिज़ा है तो इसको (उसके हाल पर) छोड़ दो कि ख़ुदा की ज़मीन में (जहाँ चाहे) खाए और उसे कोई तकलीफ न पहुँचाओ (64)
(वरना) फिर तुम्हें फौरन ही (ख़ुदा का) अज़ाब ले डालेगा इस पर भी उन लोगों ने उसकी कूँचे काटकर (मार) डाला तब सालेह ने कहा अच्छा तीन दिन तक (और) अपने अपने घर में चैन (उड़ा लो) (65)
यही ख़़ुदा का वादा है जो कभी झूठा नहीं होता फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने सालेह और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से नजात दी और उस दिन की रुसवाई से बचा लिया इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार ज़बरदस्त ग़ालिब है (66)
और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक सख़्त चिघाड़ ने ले डाला तो वह लोग अपने अपने घरों में औंधें पड़े रह गये (67)
और ऐसे मर मिटे कि गोया उनमें कभी बसे ही न थे तो देखो क़ौमे समूद ने अपने परवरदिगार की नाफरमानी की और (सज़ा दी गई) सुन रखो कि क़ौमे समूद (उसकी बारगाह से) धुत्कारी हुई है (68)
और हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) इबराहीम के पास खुषख़बरी लेकर आए और उन्होंने (इबराहीम को) सलाम किया (इबराहीम ने) सलाम का जवाब दिया फिर इबराहीम एक बछड़े का भुना हुआ (गोष्त) ले आए (69)
(और साथ खाने बैठें) फिर जब देखा कि उनके हाथ उसकी तरफ नहीं बढ़ते तो उनकी तरफ से बदगुमान हुए और जी ही जी में डर गए (उसको वह फरिश्ते समझे) और कहने लगे आप डरे नहीं हम तो क़ौम लूत की तरफ (उनकी सज़ा के लिए) भेजे गए हैं (70)
और इबराहीम की बीबी (सायरा) खड़ी हुयी थी वह (ये ख़बर सुनकर) हॅस पड़ी तो हमने (उन्हें फरिशतों के ज़रिए से) इसहाक़ के पैदा होने की खुशख़बरी दी और इसहाक़ के बाद याक़ूब की (71)
वह कहने लगी ऐ है क्या अब मै बच्चा जनने बैठॅूगी मैं तो बुढि़या हूँ और ये मेरे मियाँ भी बूढे़ है ये तो एक बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है (72)
वह फरिश्ते बोले (हाए) तुम ख़ुदा की कुदरत से तअज्जुब करती हो ऐ एहले बैत (नबूवत) तुम पर ख़़ुदा की रहमत और उसकी बरकते (नाजि़ल हो) इसमें शक नहीं कि वह क़ाबिल हम्द (वासना) बुज़ुर्ग हैं (73)
फिर जब इबराहीम (के दिल) से ख़ौफ जाता रहा और उनके पास (औलाद की) खुशख़बरी भी आ चुकी तो हम से क़ौमे लूत के बारे में झगड़ने लगे (74)
बेशक इबराहीम बुर्दबार नरम दिल (हर बात में ख़ुदा की तरफ) रुजू (ध्यान) करने वाले थे (75)

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