हाँ (अलबत्ता) जो शख़्स अपने अहद को पूरा करे और परहेज़गारी इख़्तेयार करे तो बेशक ख़ुदा परहेज़गारों को दोस्त रखता है (76)
बेशक जो लोग अपने अहद और (क़समे) जो ख़ुदा (से किया था उसके) बदले थोड़ा (दुनयावी) मुआवेज़ा ले लेते हैं उन ही लोगों के वास्ते आखि़रत में कुछ हिस्सा नहीं और क़यामत के दिन ख़ुदा उनसे बात तक तो करेगा नहीं ओर न उनकी तरफ़ नज़र (रहमत) ही करेगा और न उनको (गुनाहों की गन्दगी से) पाक करेगा और उनके लिये दर्दनाम अज़ाब है (77)
और एहले किताब से बाज़ ऐसे ज़रूर हैं कि किताब (तौरेत) में अपनी ज़बाने मरोड़ मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि तुम ये समझो कि ये किताब का जुज़ है हालांकि वह किताब का जुज़ नहीं और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) ख़ुदा के यहाँ से (उतरा) है हालांकि वह ख़ुदा के यहाँ से नहीं (उतरा) और जानबूझ कर ख़ुदा पर झूठ (बोहतान) जोड़ते हैं (78)
किसी आदमी को ये ज़ेबा न था कि ख़ुदा तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फिरे कि ख़ुदा को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे ख़ुदा (दूसरो) को पढ़ाते रहते हो और तुम ख़ुद भी सदा पढ़ते रहे हो (79)
और वह तुमसे ये तो (कभी) न कहेगा कि फ़रिश्तों और पैग़म्बरों को ख़ुदा बना लो भला (कहीं ऐसा हो सकता है कि) तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हें कुफ्र का हुक्म करेगा (80)
(और ऐ रसूल वह वक़्त भी याद दिलाओ) जब ख़ुदा ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब और हिकमत (वगै़रह) दे उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास उसकी तसदीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रूर उस पर ईमान लाना, और ज़रूर उसकी मदद करना (और) ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुमने इक़रार कर लिया तुमने मेरे (अहद का) बोझ उठा लिया सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया इरशाद हुआ (अच्छा) तो आज के क़ौल व (क़रार के) आपस में एक दूसरे के गवाह रहना (81)
और तुम्हारे साथ मैं भी एक गवाह हॅू फिर उसके बाद जो शख़्स (अपने क़ौल से) मुँह फेरे तो वही लोग बदचलन हैं (82)
तो क्या ये लोग ख़ुदा के दीन के सिवा (कोई और दीन) ढूढते हैं हालांकि जो (फ़रिश्ते) आसमानों में हैं औेर जो (लोग) ज़मीन में हैं सबने ख़ुशी ख़ुशी या ज़बरदस्ती उसके सामने अपनी गर्दन डाल दी है और (आखि़र सब) उसकी तरफ़ लौट कर जाएंगे (83)
(ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि हम तो ख़ुदा पर ईमान लाए और जो किताब हम पर नाजि़ल हुयी और जो (सहीफ़े) इबराहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याकू़ब और औलादे याकू़ब पर नाजि़ल हुये और मूसा और ईसा और दूसरे पैग़म्बरों को जो (जो किताब) उनके परवरदिगार की तरफ़ से इनायत हुयी (सब पर ईमान लाए) हम तो उनमें से किसी एक में भी फ़क्र नहीं करते(84)
और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख़्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख़्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आखि़रत में सख़्त घाटे में रहेगा (85)
भला ख़ुदा ऐसे लोगों की क्योंकर हिदायत करेगा जो इमाने लाने के बाद फिर काफि़र हो गए हालांकि वह इक़रार कर चुके थे कि पैग़म्बर (आखि़रूज़ज़मा) बरहक़ हैं और उनके पास वाज़ेह व रौशन मौजिज़े भी आ चुके थे और ख़ुदा ऐसी हठधर्मी करने वाले लोगों की हिदायत नहीं करता (86)
ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उनपर ख़ुदा और फ़रिश्तों और (दुनिया जहान के) सब लोगों की फिटकार हैं (87)
और वह हमेशा उसी फिटकार में रहेंगे न तो उनके अज़ाब ही में तख़्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न उनको मोहलत दी जाएगी (88)
मगर (हां) जिन लोगों ने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी (ख़राबी की) इस्लाह कर ली तो अलबत्ता ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (89)
जो अपने ईमान के बाद काफि़र हो बैठे फि़र (रोज़ बरोज़ अपना) कुफ्रबढ़ाते चले गये तो उनकी तौबा हरगिज़ न कु़बूल की जाएगी और यही लोग (पल्ले दरजे के) गुमराह हैं (90)
बेशक जो लोग अपने अहद और (क़समे) जो ख़ुदा (से किया था उसके) बदले थोड़ा (दुनयावी) मुआवेज़ा ले लेते हैं उन ही लोगों के वास्ते आखि़रत में कुछ हिस्सा नहीं और क़यामत के दिन ख़ुदा उनसे बात तक तो करेगा नहीं ओर न उनकी तरफ़ नज़र (रहमत) ही करेगा और न उनको (गुनाहों की गन्दगी से) पाक करेगा और उनके लिये दर्दनाम अज़ाब है (77)
और एहले किताब से बाज़ ऐसे ज़रूर हैं कि किताब (तौरेत) में अपनी ज़बाने मरोड़ मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि तुम ये समझो कि ये किताब का जुज़ है हालांकि वह किताब का जुज़ नहीं और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) ख़ुदा के यहाँ से (उतरा) है हालांकि वह ख़ुदा के यहाँ से नहीं (उतरा) और जानबूझ कर ख़ुदा पर झूठ (बोहतान) जोड़ते हैं (78)
किसी आदमी को ये ज़ेबा न था कि ख़ुदा तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फिरे कि ख़ुदा को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे ख़ुदा (दूसरो) को पढ़ाते रहते हो और तुम ख़ुद भी सदा पढ़ते रहे हो (79)
और वह तुमसे ये तो (कभी) न कहेगा कि फ़रिश्तों और पैग़म्बरों को ख़ुदा बना लो भला (कहीं ऐसा हो सकता है कि) तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हें कुफ्र का हुक्म करेगा (80)
(और ऐ रसूल वह वक़्त भी याद दिलाओ) जब ख़ुदा ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब और हिकमत (वगै़रह) दे उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास उसकी तसदीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रूर उस पर ईमान लाना, और ज़रूर उसकी मदद करना (और) ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुमने इक़रार कर लिया तुमने मेरे (अहद का) बोझ उठा लिया सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया इरशाद हुआ (अच्छा) तो आज के क़ौल व (क़रार के) आपस में एक दूसरे के गवाह रहना (81)
और तुम्हारे साथ मैं भी एक गवाह हॅू फिर उसके बाद जो शख़्स (अपने क़ौल से) मुँह फेरे तो वही लोग बदचलन हैं (82)
तो क्या ये लोग ख़ुदा के दीन के सिवा (कोई और दीन) ढूढते हैं हालांकि जो (फ़रिश्ते) आसमानों में हैं औेर जो (लोग) ज़मीन में हैं सबने ख़ुशी ख़ुशी या ज़बरदस्ती उसके सामने अपनी गर्दन डाल दी है और (आखि़र सब) उसकी तरफ़ लौट कर जाएंगे (83)
(ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि हम तो ख़ुदा पर ईमान लाए और जो किताब हम पर नाजि़ल हुयी और जो (सहीफ़े) इबराहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याकू़ब और औलादे याकू़ब पर नाजि़ल हुये और मूसा और ईसा और दूसरे पैग़म्बरों को जो (जो किताब) उनके परवरदिगार की तरफ़ से इनायत हुयी (सब पर ईमान लाए) हम तो उनमें से किसी एक में भी फ़क्र नहीं करते(84)
और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख़्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख़्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आखि़रत में सख़्त घाटे में रहेगा (85)
भला ख़ुदा ऐसे लोगों की क्योंकर हिदायत करेगा जो इमाने लाने के बाद फिर काफि़र हो गए हालांकि वह इक़रार कर चुके थे कि पैग़म्बर (आखि़रूज़ज़मा) बरहक़ हैं और उनके पास वाज़ेह व रौशन मौजिज़े भी आ चुके थे और ख़ुदा ऐसी हठधर्मी करने वाले लोगों की हिदायत नहीं करता (86)
ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उनपर ख़ुदा और फ़रिश्तों और (दुनिया जहान के) सब लोगों की फिटकार हैं (87)
और वह हमेशा उसी फिटकार में रहेंगे न तो उनके अज़ाब ही में तख़्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न उनको मोहलत दी जाएगी (88)
मगर (हां) जिन लोगों ने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी (ख़राबी की) इस्लाह कर ली तो अलबत्ता ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (89)
जो अपने ईमान के बाद काफि़र हो बैठे फि़र (रोज़ बरोज़ अपना) कुफ्रबढ़ाते चले गये तो उनकी तौबा हरगिज़ न कु़बूल की जाएगी और यही लोग (पल्ले दरजे के) गुमराह हैं (90)
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