(और वह वक़्त भी याद करो) जब तुमने मूसा से कहा कि ऐ मूसा हमसे एक ही खाने
पर न रहा जाएगा तो आप हमारे लिए अपने परवरदिगार से दुआ कीजिए कि जो चीज़े
ज़मीन से उगती है जैसे साग पात तरकारी और ककड़ी और गेहूँ या (लहसुन) और
मसूर और प्याज़ (मन व सलवा) की जगह पैदा करें (मूसा ने) कहा क्या तुम ऐसी
चीज़ को जो हर तरह से बेहतर है अदना चीज़ से बदलन चाहते हो तो किसी शहर में
उतर पड़ो फिर तुम्हारे लिए जो तुमने माँगा है सब मौजूद है और उन पर ज़िल्लत
रूसवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोगों ने क़हरे खु़दा की तरफ पलटा
खाया, ये सब इस सबब से हुआ कि वह लोग खु़दा की निशानियों से इन्कार करते थे
और पैग़म्बरों को नाहक शहीद करते थे, और इस वजह से (भी) कि वह नाफ़रमानी
और सरकशी किया करते थे (61)
बेशक मुसलमानों और यहूदियों और नसरानियों और लामज़हबों में से जो कोई
खु़दा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान लाए और अच्छे-अच्छे काम करता रहे तो उन्हीं
के लिए उनका अज्र व सवाब उनके खु़दा के पास है और न (क़यामत में) उन पर
किसी का ख़ौफ होगा न वह रंजीदा दिल होंगे (62)
और (वह वक़्त याद करो) जब हमने (तामीले तौरेत) का तुमसे एक़रार लिया और हमने तुम्हारे सर पर तूर से (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह दिया कि तौरेत जो हमने तुमको दी है उसको मज़बूत पकड़े रहो और जो कुछ उसमें है उसको याद रखो (63)
ताकि तुम परहेज़गार बनो फिर उसके बाद तुम (अपने एहदो पैमान से) फिर गए बस अगर तुम पर खु़दा का फज़ल और उसकी मेहरबानी न होती तो तुमने सख़्त घाटा उठाया होता (64)
और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखू़बी जानते हो जो शम्बे (सनीचर) के दिन अपनी हद से गुज़र गए (कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले) तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ (और वह बन्दर हो गए) (65)
बस हमने इस वाक़ये से उन लोगों के वास्ते जिन के सामने हुआ था और जो उसके बाद आनेवाले थे अज़ाब क़रार दिया, और परहेज़गारों के लिए नसीहत (66)
और (वह वक़्त याद करो) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि खु़दा तुम लोगों को ताकीदी हुक्म करता है कि तुम एक गाय जि़बाह करो वह लोग कहने लगे क्या तुम हमसे दिल्लगी करते हो मूसा ने कहा मैं खु़दा से पनाह माँगता हूँ कि मैं जाहिल बनूँ (67)
(तब वह लोग कहने लगे कि (अच्छा) तुम अपने खु़दा से दुआ करो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो मूसा ने कहा बेशक खु़दा ने फरमाता है कि वह गाय न तो बहुत बूढ़ी हो और न बछिया बल्कि उनमें से औसत दरजे की हो, ग़रज़ जो तुमको हुक्म दिया गया उसको बजा लाओ (68)
वह कहने लगे (वाह) तुम अपने खु़दा से दुआ करो कि हमें ये बता दे कि उसका रंग आखि़र क्या हो मूसा ने कहा बेशक खु़दा फरमाता है कि वह गाय खू़ब गहरे ज़र्द रंग की हो देखने वाले उसे देखकर खु़श हो जाए (69)
तब कहने लगे कि तुम अपने खु़दा से दुआ करो कि हमें ज़रा यह तो बता दे कि वह (गाय) और कैसी हो (वह) गाय तो और गायों में मिल जुल गई और खु़दा ने चाहा तो हम ज़रूर (उसका) पता लगा लेगे (70)
मूसा ने कहा खु़दा ज़रूर फरमाता है कि वह गाय न तो इतनी सधाई हो कि ज़मीन जोते न खेती सीचें भली चंगी एक रंग की कि उसमें कोई धब्बा तक न हो, वह बोले अब (जा के) ठीक-ठीक बयान किया, ग़रज़ उन लोगों ने वह गाय हलाल की हालाँकि उनसे उम्मीद न थी वह कि वह ऐसा करेंगे (71)
और जब तुमने एक शख़्स को मार डाला और तुममें उसकी बाबत फूट पड़ गई एक दूसरे को क़ातिल बताने लगा जो तुम छिपाते थे (72)
खु़दा को उसका ज़ाहिर करना मंजू़र था बस हमने कहा कि उस गाय को कोई टुकड़ा लेकर इस (की लाश) पर मारो यूँ खु़दा मुर्दे को जि़न्दा करता है और तुम को अपनी कु़दरत की निशानियाँ दिखा देता है (73)
ताकि तुम समझो फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख़्त हो गये बस वह पत्थर के मिस्ल (सख़्त) थे या उससे भी ज़्यादा (सख्त़) क्योंकि पत्थरों में बाज़ तो ऐसे होते हैं कि उनसे नहरें जारी हो जाती हैं और बाज़ ऐसे होते हैं कि उनमें दरार पड़ जाती है और उनमें से पानी निकल पड़ता है और बाज़ पत्थर तो ऐसे होते हैं कि खु़दा के ख़ौफ से गिर पड़ते हैं और जो कुछ तुम कर रहे हो उससे खु़दा ग़ाफिल नहीं है (74)
(मुसलमानों) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा (सा) ईमान लाएँगें हालाँकि उनमें का एक गिरोह साबिक़ में (पहले) ऐसा था कि खु़दा का कलाम सुनता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खू़ब जानते थे और जब उन लोगों से मुलाक़ात करते हैं (75)
और (वह वक़्त याद करो) जब हमने (तामीले तौरेत) का तुमसे एक़रार लिया और हमने तुम्हारे सर पर तूर से (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह दिया कि तौरेत जो हमने तुमको दी है उसको मज़बूत पकड़े रहो और जो कुछ उसमें है उसको याद रखो (63)
ताकि तुम परहेज़गार बनो फिर उसके बाद तुम (अपने एहदो पैमान से) फिर गए बस अगर तुम पर खु़दा का फज़ल और उसकी मेहरबानी न होती तो तुमने सख़्त घाटा उठाया होता (64)
और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखू़बी जानते हो जो शम्बे (सनीचर) के दिन अपनी हद से गुज़र गए (कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले) तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ (और वह बन्दर हो गए) (65)
बस हमने इस वाक़ये से उन लोगों के वास्ते जिन के सामने हुआ था और जो उसके बाद आनेवाले थे अज़ाब क़रार दिया, और परहेज़गारों के लिए नसीहत (66)
और (वह वक़्त याद करो) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि खु़दा तुम लोगों को ताकीदी हुक्म करता है कि तुम एक गाय जि़बाह करो वह लोग कहने लगे क्या तुम हमसे दिल्लगी करते हो मूसा ने कहा मैं खु़दा से पनाह माँगता हूँ कि मैं जाहिल बनूँ (67)
(तब वह लोग कहने लगे कि (अच्छा) तुम अपने खु़दा से दुआ करो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो मूसा ने कहा बेशक खु़दा ने फरमाता है कि वह गाय न तो बहुत बूढ़ी हो और न बछिया बल्कि उनमें से औसत दरजे की हो, ग़रज़ जो तुमको हुक्म दिया गया उसको बजा लाओ (68)
वह कहने लगे (वाह) तुम अपने खु़दा से दुआ करो कि हमें ये बता दे कि उसका रंग आखि़र क्या हो मूसा ने कहा बेशक खु़दा फरमाता है कि वह गाय खू़ब गहरे ज़र्द रंग की हो देखने वाले उसे देखकर खु़श हो जाए (69)
तब कहने लगे कि तुम अपने खु़दा से दुआ करो कि हमें ज़रा यह तो बता दे कि वह (गाय) और कैसी हो (वह) गाय तो और गायों में मिल जुल गई और खु़दा ने चाहा तो हम ज़रूर (उसका) पता लगा लेगे (70)
मूसा ने कहा खु़दा ज़रूर फरमाता है कि वह गाय न तो इतनी सधाई हो कि ज़मीन जोते न खेती सीचें भली चंगी एक रंग की कि उसमें कोई धब्बा तक न हो, वह बोले अब (जा के) ठीक-ठीक बयान किया, ग़रज़ उन लोगों ने वह गाय हलाल की हालाँकि उनसे उम्मीद न थी वह कि वह ऐसा करेंगे (71)
और जब तुमने एक शख़्स को मार डाला और तुममें उसकी बाबत फूट पड़ गई एक दूसरे को क़ातिल बताने लगा जो तुम छिपाते थे (72)
खु़दा को उसका ज़ाहिर करना मंजू़र था बस हमने कहा कि उस गाय को कोई टुकड़ा लेकर इस (की लाश) पर मारो यूँ खु़दा मुर्दे को जि़न्दा करता है और तुम को अपनी कु़दरत की निशानियाँ दिखा देता है (73)
ताकि तुम समझो फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख़्त हो गये बस वह पत्थर के मिस्ल (सख़्त) थे या उससे भी ज़्यादा (सख्त़) क्योंकि पत्थरों में बाज़ तो ऐसे होते हैं कि उनसे नहरें जारी हो जाती हैं और बाज़ ऐसे होते हैं कि उनमें दरार पड़ जाती है और उनमें से पानी निकल पड़ता है और बाज़ पत्थर तो ऐसे होते हैं कि खु़दा के ख़ौफ से गिर पड़ते हैं और जो कुछ तुम कर रहे हो उससे खु़दा ग़ाफिल नहीं है (74)
(मुसलमानों) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा (सा) ईमान लाएँगें हालाँकि उनमें का एक गिरोह साबिक़ में (पहले) ऐसा था कि खु़दा का कलाम सुनता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खू़ब जानते थे और जब उन लोगों से मुलाक़ात करते हैं (75)
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