सुनो हिंदुस्तान में तलाक़ नहीं था ,,जन्म जन्मांतर का रिश्ता था ,,धर्म
मज़हब की कट्टरता थे ,,घर के सम्बन्ध बिगड़े तो बस ,,पीछा छुड़वाने के लिए
आत्महत्या ही एक मात्र रास्ता हुआ करता था ,,हज़ारो हज़ार बहुए जलती ,,मार दी
जाती ,,आत्महत्याएं कर लेती ,,पुरुष आत्महत्या कर लेते ,,लेकिन फिर
,,इस्लाम में तलाक़ के सिद्धांत को पढ़ा गया ,,कारण जाने ,,,एक बेमेल रिश्ता
बेवजह जोड़ कर रखने का नतीजा अराजकता ,,आत्महत्या ,,हिंसा ही होती है
,,सर्वेक्षण हुए और फिर जन्म जन्मांतर के रिश्तो को अलग करने के मज़हबी
आदेशो के विपरीत तलाक़ ,,सम्बन्द्द विच्छेद को मान्यता दी गयी ,,तो जनाब
तलाक़ बेमेल रिश्तो को अलग करने की एक ज़रूरत है ,,लेकिन खेल नहीं ,,तलाक़
मामले में सभी मज़हबो में ,,पाबन्दियाँ लगी है ,,उन पाबन्दियों के खिलाफ
तलाक़ एक अपराध भी है ,,सामाजिक कुरीति भी है और मज़हबी अपराध तो है ही सही
,,तो ज़रा सोचो ,,,तलाक़ कोई खेल नहीं बस एक समझौते का ज़रिया है जो एक तरफा
नहीं दो तरफा है ,,सुनवाई का मौक़ा देने के बाद है ,,बेवजह किसी को अपना कर
छोड़ देने ,,उसका जोबन लूटने ,,उसके जीवन का खर्च खा जाने का आपराधिक कृत्य
नहीं,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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