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29 अप्रैल 2016

हज़रत इमाम सादिक़

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
नाम व लक़ब (उपाधि)
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का नाम जाफ़र व आपका मुख्य लक़ब सादिक़ है।
माता पिता
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत उम्मे फ़रवा पुत्री क़ासिम पुत्र मुहम्मद पुत्र अबुबकर हैं।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 83 हिजरी के रबी उल अव्वल मास की 17 वी तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का शिक्षा अभियान
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस्लामी समाज मे शिक्षा केप्रचार व प्रसार हेतू एक महान अभियान शुरू किया। शिक्षण कार्य के लिए उन्होने पवित्र स्थान मस्जिदे नबवी को चुना तथा वहा पर बैठकर शिक्षा का प्रसार व प्रचार आरम्भ किया। ज्ञान के प्यासे मनुष्य दूर व समीप से आकर उनकी कक्षा मे सम्मिलित होते तथा प्रश्नो उत्तर के रूप मे अपने ज्ञान मे वृद्धि करते थे।
आप के इस अभियान का मुख्य कारण बनी उमैय्या व बनी अब्बास के शासन काल मे इस्लामी समाज मे आये परिवर्तन थे। इनके शासन काल मे यूनानी ,फ़ारसी व हिन्दी भाषा की पुस्तकों का अरबी भाषा मे अनुवाद मे हुआ। जिसके परिणाम स्वरूप मुसलमानों के आस्था सम्बन्धि विचारो मे विमुख्ता फैल गयी। तथा ग़ुल्लात ,ज़िन्दीक़ान ,जाएलाने हदीस ,अहले राए व मुतासव्वेफ़ा जैसे अनेक संमूह उत्पन्न हुए। इस स्थिति मे हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के लिए अवश्यक था कि इस्लामी समाज मे फैली इस विमुख्ता को दूर किया जाये। अतः हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने ज्ञान के आधार पर समस्त विचार धाराओं को निराधार सिद्ध किया। व समाज मे शिक्षा का प्रसार व प्रचार करके समाज को धार्मिक विघटन से बचा लिया। तथा समाज को आस्था सम्बन्धि विचारों धार्मिक निर्देशों व नवीनतम ज्ञान से व्यापक रूप से परिचित कराया। तथा अपने ज्ञान के आधार पर एक विशाल जन समूह को शिक्षित करके समाज के हवाले किया। ताकि वह समाज को शिक्षा के क्षेत्र मे और उन्नत बना सकें।
आपके मुख्य शिष्यों मे मालिक पुत्र अनस ,अबु हनीफ़ा ,मुहम्द पुत्र हसने शेबानी ,सुफ़याने सूरी ,इबने अयीनेह ,याहिया पुत्र सईद ,अय्यूब सजिस्तानी ,शेबा पुत्र हज्जाज ,अब्दुल मलिक जरीह अत्यादि थे।
जाहिज़ नामक विद्वान हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिक्षा प्रसार के सम्बन्ध मे लिखते है कि-
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने ज्ञान रूपी नदियां पृथ्वी पर बहाई व मानवता को ज्ञान रूपी ऐसा समुन्द्र प्रदान किया जो इससे पहले मानवता को प्राप्त न था। समस्त संसार ने अपके ज्ञान से अपनी प्यास बुझाई।
हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के कथन
१. हर बुज़ुर्गी और शरफ़ की अस्ल तवाज़ो है।
२. जिन कामों के लिये बाद में माज़ेरत करना पड़े उनसे परहेज़ (बचो) करो।
३. अपने दिलों (मन का बहु) को क़ुराने मजीद की तिलावत और अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) से नूरानी रखो।
४. अगर कोई तुम पर एहसान करे तो तुम उसके एहसान को चुकाओ और अगर यह न कर सकते हो तो उसके लिये दुआ करो।
५. जिस तरह तुम यह चाहते हो की लोग तुमसे नेकी करें तुम भी दूसरों से नेकी करो।
६. सफ़र (यात्रा) से पहले हमसफ़र (जिसके साथ सफ़र कर रहा है) को और घर लेने से पहले हमसाया (पड़ोसी) को ख़ूब परख लो।
७. किसी फ़क़ीर को ख़ाली वापिस न करो कुछ न कुछ ज़रूर दे दो ।
८. अव्वल वक़्त नमाज़ अदा (पढ़ो) करो अपने दीन के सुतून (खम्भो) को मज़बूत करो।
९. लोगों को ख़ुश करने के लिये ऐसा काम न करो जो ख़ुदावन्दे आलम को नापसन्द हो।
१०. दोस्तों (मित्रों) को हज़र (मौजूदगी) में एक दूसरे से मिलते रहना चाहिये और सफ़र में ख़ुतूत (ख़त का बहु वचन) के ज़रिये राबता (सम्बन्ध) रखना चाहिये।
११. शराबियों से दोस्ती मत करो।
१२. अच्छे काम इन्सान को बूरे वक़्त में बचाते है।
१३. (अगर) आज तुम अपने किसी भाई की मदद करोगे तो कल हज़ारों लोग तुम्हारी मदद करेगें।
१४. मौत की याद बुरी ख़्वाहिशों (इच्छाओं) को दिल से (मन से) ज़ाएल (दूर) करती है।
१५. माँ बाप की फ़रमांबरदारी ख़ुदावन्दे आलम की इताअत (आज्ञा का पालन) है।
१६. हसद ,कीना और ख़ुद पसन्दी (स्वार्थ) दीन के लिये आफ़त हैं।
१७. सिल्हे रहम आमाल को पाकीज़ा (पवित्र) करता है।
१८. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स पर रहमत करे जो इल्म (ज्ञान) को ज़िन्दा रखे।
१९. ग़ुस्सा हर बुराई का पेशख़ेमा है।
२०. जिसकी ज़बान सच बोलती है उसका अमल भी पाक होता है।
२१. अपने वालदैन (माता पिता) से नेकी करो ताकि तुम्हारी औलाद (बच्चे) तुम से नेकी करें।
२२. ख़ामोंशी से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।
२३. कुफ़्र की बुनियाद तीन चीज़ हैं 1.लालच ,2.तकब्बुर (घमण्ड) ,3.हसद।
२४. नेक बातें तहरीर (लिखावट) में लाओ और उसे अपने भाईयों में तक़सीम करो।
२५. मुझे वह शख़्स नापसन्द है जो अपने काम में सुस्ती करे।
२६. हरीस (लालची) मत बनो क्योंकि उससे इन्सान की आबरू चली जाती है और वह दाग़दार हो जाता है।
२७. बदतरीन लग़्ज़िश यह है के इन्सान अपने उयूब (ऐब का बहु वचन) की तरफ़ मुतावज्जेह (ध्यान) न दे।
२८. शराबियों से कोई राबता (सम्बन्ध) न रखो।
२९. जिस घर या जिस नशिस्त में मोहम्मद (स 0)का नाम मौजूद हो वह बा बरकत व मुबारक है।
३०. लिखे हुए कागज़ात को नज़्रे आतिश (जलाओ नहीं) न करो अगर जलाना है तो पहले नविश्त ए जात (लिखे हुए को) को महो (मिटा) कर दो।
३१. कभी गुनाह को कम न समझो मगर गुनाह से इज्तेनाब (बचो) करो।
३२. जिसने लालच को अपना पेशा बनाया उसने ख़ुद को रूसवा (ज़लील) कर लिया।
३३. जल्दबाज़ी हमेशा पशेमानी (पश्चाताप) का बायस (कारण) होती है।
३४. मौत की याद बेतुकी ख़्वाहिशों (व्यर्थ इच्छाओं) को दिल से निकाल देती है।
३५. निजात व सलामती हमेशा (सदैव) ग़ौर व फ़िक्र (सोचविचार) से हासिल (प्राप्त) होती है।
३६. ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी (ख़ुशी) माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है।
३७. जो शख़्स कम अक़्लों और बेवकूफ़ों से दोस्ती करता है वह अपनी आबरू ख़ुद कम करता है।
३८. शराब से बचो के यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।
३९. मेदा तमाम बुराईयों का ख़ज़ाना है और परहेज़ हर इलाज का पेशख़ेमा है।
४०. जिस तरह ज़्यादा पानी से सब्ज़ा पज़मुर्दा हो जाता है उसी तरह ज़्यादा खाने से दिल मुर्दा हो जाता है।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 148 हिजरी क़मरी मे शव्वाल मास की 25 वी तिथि को हुई। अब्बासी शासक मँनसूर दवानक़ी के आदेशानुसार आपको विषपान कराया गया जो आपकी शहादत का कारण बना।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नःतुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। यह शहर वर्तमान समय मे सऊदी अरब मे है।

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