पत्रकारों की सोच का शर्मनाक पहलु,,, आप सोचिये ,,देखिये ,,,कोई भी
पत्रकार कोई कार्यक्रम करे ,,किसी कार्यक्रम में वक्ता या फिर गेस्ट रहे
,,,,,अख़बार उस खबर को ईर्ष्यावश दबा देते है ,,,अब तो हद यह हो गई ,,के
पत्रकार की मोत की खबर भी अख़बार दो लाइन छापने लायक भी नहीं समझते ,,,,कोटा
के दिग्गज पत्रकार ,,सम्पर्पित पत्रकार ,,लेखनी के प्रति वफादार पत्रकार
,,जगेन्दर भटनागर की कल मृत्यु हुई ,,हम सोचते थे उनकी जीवनी और पत्रकारिता
के सफर के साथ किसी अख़बार में खबर ज़रूर मिलेगी ,,कहीं और नहीं तो जिस
अखबार नवज्योति में उन्होंने ज़िंदगी गुज़ारी उस अख़बार में खबर ज़रूर होगी
,,लेकिन अफ़सोस पत्रकार नाम के रह गए ,,पत्रकार पत्रकार के दुश्मन हो गए
,,और इस महान पत्रकार ,,क़लमकार की खबर आज किसी अख़बार में नहीं ,,शायद वोह
इस पत्रकार के परिवार से भी विज्ञापन के इन्तिज़ार में हो ,,शर्म आती है
ऐसी सोच पर ,,,अख्तर
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