बढ़ी मासूमियत से
वोह पूंछते है
आजकल शायरी नहीं करते
वोह नहीं समझते
जिनकी ख्वाहिशे अधूरी हो
और जो मौत के नज़दीक होते है
वोह शायर नहीं
सिर्फ ख़ौफ़ज़दा होते है ,
वोह पूंछते है
आजकल शायरी नहीं करते
वोह नहीं समझते
जिनकी ख्वाहिशे अधूरी हो
और जो मौत के नज़दीक होते है
वोह शायर नहीं
सिर्फ ख़ौफ़ज़दा होते है ,
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