अजमेर. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के
समकालीन महान क्रांतिकारी पंडित अर्जुनलाल सेठी को 22 सितंबर 1941 को महान
सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की विश्व प्रसिद्ध दरगाह परिसर
में दफनाया गया था। अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले अजमेर के इस
महान सपूत के जीवनकाल का अंतिम समय काफी गुमनामी में बीता।
उम्र के ढलान पर उनका धार्मिक झुकाव इस्लाम की तरफ भी हो गया था।
हालांकि कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी ऐसा मानते हैं कि संभवत: अंग्रेजों से बचने
के लिए पंडित अर्जुनलाल सेठी को पहचान छिपानी पड़ी, दुर्भाग्य से छिपी हुई
पहचान के बीच ही उन्होंने नश्वर देह त्याग दी, लेकिन उनकी पार्थिव देह को
गरीब नवाज की बारगाह में पनाह मिली जो बिरलों को ही मिलती है।
अर्जुनलाल सेठी के बारे में कुछ पुराने कांग्रेसी बताते हैं कि उन्हें
ख्वाजा साहब की दरगाह के पिछले हिस्से में झालरे के पास दफनाया गया था।
वहां उनकी मजार बनी हुई थी। एक वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता के मुताबिक आजादी
के बाद जब पंडित जवाहरलाल नेहरू अजमेर आए तो उन्होंने सेठीजी की मजार पर
पुष्प चढ़ाए। उनके साथ तब नाती राजीव गांधी और संजय गांधी भी आए थे।
1975 में आई भीषण बाढ़ के दौरान सेठीजी की मजार ध्वस्त हो गई। पूर्व
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा करने अजमेर आईं तो वह
हिस्सा भी देखने गई, जहां सेठीजी की मजार थी। वर्तमान में झालरे का स्वरूप
बदल चुका है। काफी बड़ा हिस्सा पाटकर फर्श बनाया जा चुका है। अब पूरे
इलाके में ही कोई मजार नहीं आती है।स्वतंत्रता आंदोलन में सेठीजी की भूमिका
>नरम और गरम दोनों दलों से गहरा रिश्ता था।
>महात्मा गांधी, पंडित नेहरू के साथ-साथ वे देश के समकालीन उग्र क्रांतिकारियों से भी जुड़े हुए थे।
>जैन विद्यापीठ और बोर्डिंग हाउस शुरू किए, इनमें सभी धर्मों के युवाओं को प्रवेश दिया गया। विद्यापीठ में क्रांतिकारियों की फौज तैयारी की गई।
>23 दिसंबर 1912 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग्ज के जुलूस पर चांदनी चौक में बम फेंकने के आरोप में गिरफ्तार हुए। क्रांतिकारी रास बिहारी बोस व जोरावर सिंह बारहट को पुलिस गिरफ्तार करने में असफल रही, माना जाता है कि बम मारवाड़ी लाइब्रेरी से क्रांतिकारी जोरावर सिंह बारहठ ने बुर्का पहनकर फेंका था, जोरावर सिंह सेठी जी के विद्यापीठ के छात्र थे।अजमेर दरगाह में क्यों दफनाए गए थे ये
>नरम और गरम दोनों दलों से गहरा रिश्ता था।
>महात्मा गांधी, पंडित नेहरू के साथ-साथ वे देश के समकालीन उग्र क्रांतिकारियों से भी जुड़े हुए थे।
>जैन विद्यापीठ और बोर्डिंग हाउस शुरू किए, इनमें सभी धर्मों के युवाओं को प्रवेश दिया गया। विद्यापीठ में क्रांतिकारियों की फौज तैयारी की गई।
>23 दिसंबर 1912 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग्ज के जुलूस पर चांदनी चौक में बम फेंकने के आरोप में गिरफ्तार हुए। क्रांतिकारी रास बिहारी बोस व जोरावर सिंह बारहट को पुलिस गिरफ्तार करने में असफल रही, माना जाता है कि बम मारवाड़ी लाइब्रेरी से क्रांतिकारी जोरावर सिंह बारहठ ने बुर्का पहनकर फेंका था, जोरावर सिंह सेठी जी के विद्यापीठ के छात्र थे।अजमेर दरगाह में क्यों दफनाए गए थे ये
एक समय था जब क्रांतिकारी नृसिंह दास, सेठीजी से बहुत प्रभावित हुए
लेकिन जैन समाज की आंतरिक उठापटक के चलते सेठीजी के विरुद्ध हो गए। सेठीजी
का बुरा वक्त शुरू हो गया और उन्हें परिवार के भरण पोषण तक के लाले पड़ गए।
बाबा नृसिंह दास को बाद में अपनी गलती का आभास हुआ। उन्होंने अपनी पुस्तक
‘राजस्थान की पुकार’ सेठीजी को समर्पित की और समर्पण में लेख लिखा। सेठीजी
दयनीय स्थिति में पहुंच चुके थे। उनके परम भक्त अयोध्याप्रसाद गोयलीय एक
दिन उनके घर आए और सारा नजारा देखा।
गोयलीय ने अपने संस्मरणों में सेठीजी की दयनीय स्थिति का मार्मिक
चित्रण किया है। उनके मुताबिक उस समय एक नारा चल पड़ा था अंग्रेजों में
“लार्ड कर्जन और जैनियों में लार्ड अर्जन’। राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी की
इस किताब में लिखा है सेठी जी को निर्वहन के लिए दरगाह के मदरसे में तीस
रुपए माहवार पढ़ाने की नौकरी करनी पड़ी। सेठी जी बाद में अपने एक मुस्लिम
मित्र के साथ रहने लगे थे और कहते हैं और उसी के पास उनका 22 सितंबर 1941
को देहांत हो गया। उनके पार्थिव शरीर को दरगाह में ही दफना दिया गया।
सेठीजी के परिवार तक को इत्तला नहीं दी गई।
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