लखनऊ. बाराबंकी की रेप पीड़ित 13 साल की
बच्ची लखनऊ के क्वींस मैरी मेडिकल कॉलेज में कैदी-सी बन गई है। 10 सितंबर
से। और शायद अगले एक-डेढ़ महीने उसे यहीं रहना होगा। न वो यहां किसी से बात
कर सकती है, न मर्जी से उठकर कहीं जा सकती है। हिलने-डुलने तक पर रोक है।
नाम भी उसका अब पीड़िता हो गया है। अस्पताल में इसी नाम से उसे जानते और
पुकारते हैं। उसके पिता को भी उससे मिलने की इजाजत नहीं है।
मैं किसी और से मिलने के बहाने अस्पताल में
दाखिल हुई। फर्स्ट फ्लोर पर आईसीयू था। यहां 6-7 पलंग पर महिलाएं थीं। हर
एक के पास जाकर पूछना पड़ा कि क्या आपका नाम...है? नर्स या डॉक्टर से पूछ
नहीं सकती थी। वरना मिले बिना बाहर जाना पड़ता। तभी मेरी नजर आईसीयू में एक
अलग से दिखने वाले रूम पर गई। वहां पलंग पर बच्ची सोई थी। नीचे पन्नी
बिछाकर उसकी मां लेटी थी। मैंने उनका नाम पुकारा तो सकपका गईं। मैंने कहा
घबराइए मत, आपके पति से मिलकर आई हूं। तो कुछ नॉर्मल हुईं। मैं कुछ पूछती,
उससे पहले ही वो कहने लगीं- 17 फरवरी की बात है। गांव में भागवत कथा हो रही
थी। रात 11:30 बजे कथा खत्म हुई तो बेटी मंदिर के पीछे बाथरूम करने चली
गई। वहां उस लड़के (लड़का भी नाबालिग है, इसलिए नाम नहीं छाप सकते) ने उसे
पकड़ लिया और मुंह दबाकर गलत काम किया। फिर धमकी दी कि किसी को बताया तो
मां-बाबा को मार डालेगा।
धमकी से डरकर चुप रह गई बच्ची
वो गांव के एक सबसे रईस का बेटा था। बेटी उसकी
धमकी से डर गई। हमें तो 8 जुलाई को पता चला, जब बेटी की तबीयत ज्यादा खराब
हो गई। उसे खूब उल्टियां हो रही थीं। हम मुजफ्फरनगर महौली से उसे बाराबंकी
ले गए। डॉक्टरों ने सोनोग्राफी की तो पता चला वो तो गर्भ से है। तब जाकर
पता चला कि इतना बड़ा हादसा हो गया। हमने पुलिस में शिकायत कराई। फिर इसके
बाबा गर्भपात की इजाजत लेने 13 अगस्त को बाराबंकी मजिस्ट्रेट कोर्ट गए।
लेकिन वहां कहा गया कि जिला अस्पताल जाओ। 18 को सीएमओ से मिले तो उन्होंने
कोर्ट जाने को कह दिया। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे। लेकिन 7 सितंबर
को कोर्ट ने कहा कि पहले मेडिकल जांच कराओ। जांच के बाद डॉक्टरों की टीम
ने ये कहकर इजाजत देने से मना कर दिया कि गर्भ साढ़े सात महीने का हो चुका
है। बच्ची की जान जा सकती है।
टपकने लगे बच्ची के आंसू
बात चल ही रही थी कि आईसीयू में कुछ महिलाओं के
चीखने की आवाज आई। मेरी नजर बच्ची पर गई तो वो डरी सी दिखी। उसकी मां ने
कहा- इसे तो मालूम भी नहीं कि बच्चा पैदा कैसे होता है। बेचारी जब परेशान
हो जाती है तो गुस्से में चीखती है। कहती है जिसकी वजह से मेरा पेट दुखता
है और उल्टियां होती हैं, वो सामने आ जाए तो मैं उसे मार डालूंगी। रोज
पूछती है कि मां, मै तो 13 साल की हूं। मैं अभी मां क्यों बनूं? काश, वो
पहले ही सबकुछ बता देती तो ये दिन नहीं देखना पड़ता। पलंग पर लेटी उस बच्ची
से जब मैंने कुछ पूछना चाहा। मेरा सवाल भी पूरा नहीं हुआ था कि उसके आंसू
टपकने लगे। इतने में उसकी मां फिर कहने लगी-वो बहुत डरी हुई है। कोई उसकी
तरफ प्यार से भी देख ले तो घबरा जाती है। हमें यूं बात करते देख कुछ दायी
और नर्सें आ गईं। पूछने लगीं-आप कौन हो? क्या बातें कर रही हो? क्या लगती
हो इसकी? जाओ, बाहर निकलो। मैं बाहर आ गई।
सीढ़ियां उतर रही थी कि गेट पर खड़े उसके पिता
मेरी ओर बढ़े। पूछने लगे-कैसी है मेरी बेटी? फिर कहने लगे- हमारे गांव की
कुंआरी बेटी तो किसी महिला अस्पताल में किसी से मिलने भी नहीं जाती। ठीक
नहीं माना जाता। लेकिन अब...कैसे जाएंगे गांव? क्या कहेंगे? घर में दो
बेटी, एक बेटा और हैं। परिवार की थोड़ी बहुत जो जमीन है उसी पर खेती कर गुजर
बसर करते हैं। यूं लखनऊ में रहकर इलाज करवाना वो भी महीनेभर उनके लिए
मुमकिन नहीं। यह मिहला अस्पताल है, इसलिए उसे भीतर जाने की मनाही है।
इसीलिए कोर्ट से एबॉर्शन की अनुमति मांगी थी। परमिशन मिली भी, लेकिन तब तक
देर हो चुकी थी। हमें भी उसका नाम लेना मना है। उसकी पहचान भी छिपाकर रखनी
है, इसलिए उसका फोटो भी नहीं खींच सकते। हां उसके पिता उसके दो पासपोर्ट
साइज फोटो अपने बटुए में लिए घूम रहे हैं। चार दिन पहले वह कुछ कागज लेने
घर गए थे। तभी बेटी का पिछली दिवाली पर खिंचवाया फोटो अपने साथ ले आए। पिता
बेचैन से अस्पताल के दरवाजे पर सुबह से शाम खड़े रहते हैं। थक जाते हैं तो
वहीं जमीन पर बैठ जाते हैं। रात अस्पताल के बरामदे में ही काट लेते हैं।
फिर सुबह बेटी को भीतर चाय बिस्कुट पहुंचा देते हैं, चौकीदार के हाथ। 5-6
दिन पहले तक उन्हें दिन में एक दो बार बेटी के पास जाने को मिलता था। लेकिन
फिर कुछ एनजीओ वाले यहां आए और हंगामा हो गया। तब से पहरेदारी कड़ी कर दी
गई है।
दलीलें सभी के पास, दर्द बच्ची के पास
मां की चिंता; वो किसी महिला को दर्द में देख सिहर जाती है, खुद कैसे सहन करेगी?
पिता का गम; डिलेवरी के बाद बेटी और उसके बच्चे को कहां ले जाएंगे?
डॉक्टर के दावे; अबॉर्शन हो या डिलीवरी, अब ऑपरेशन ही विकल्प है। बच्ची कमजोर है। उसकी साइकोलॉजी पर भी असर होगा। -डॉ. सुनीता मित्तल, गायनीकोलॉजिस्ट, पूर्व एचओडी एम्स
वकील के तर्क; पीड़िता नाबालिग है। कोर्ट ज्यादा से ज्यादा उसे हर्जाना दिला सकता है। उसके बच्चे को किसी शैल्टर होम में भेजा जा सकता है। -आभा सिंह, सीनियर एडवोकेट
...और बच्ची; मैं कब घर जाऊंगी, सहेलियों के साथ कब खेलूंगी...? यहां मुझे किसी से बात नहीं करने देते ...क्यों?
दलीलें सभी के पास, दर्द बच्ची के पास
मां की चिंता; वो किसी महिला को दर्द में देख सिहर जाती है, खुद कैसे सहन करेगी?
पिता का गम; डिलेवरी के बाद बेटी और उसके बच्चे को कहां ले जाएंगे?
डॉक्टर के दावे; अबॉर्शन हो या डिलीवरी, अब ऑपरेशन ही विकल्प है। बच्ची कमजोर है। उसकी साइकोलॉजी पर भी असर होगा। -डॉ. सुनीता मित्तल, गायनीकोलॉजिस्ट, पूर्व एचओडी एम्स
वकील के तर्क; पीड़िता नाबालिग है। कोर्ट ज्यादा से ज्यादा उसे हर्जाना दिला सकता है। उसके बच्चे को किसी शैल्टर होम में भेजा जा सकता है। -आभा सिंह, सीनियर एडवोकेट
...और बच्ची; मैं कब घर जाऊंगी, सहेलियों के साथ कब खेलूंगी...? यहां मुझे किसी से बात नहीं करने देते ...क्यों?
17 साल का आरोपी बाल सुधारगृह में है।
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