अजीब बात है ,,जिन सरकारी स्कूलों में भवन नहीं ,,नीम के पेड के निचे पढ़ाई
होती हो ,,स्कूल तक जाने की सड़के नहीं ,,,स्कूल में पानी भरा रहता हो
,,बाथरूम नहीं ,,,लेट्रीन नहीं ,,अध्यापक नहीं ,,छात्र ,,छात्राओ को साइकिल
योजना ,,मुफ्त यूनिफॉर्म ,,मिड डे मील ,,मुफ्त किताबें ,,कापियां और
छात्रव्रत्ति देने का लालच देकर घर घर घूम कर स्कूलों में भर्ती की जाती हो
,,उन स्कूलों में व्यवस्था सुधारे बगैर अधिकारियिों के बच्चो को पढ़ाने का
हुक्म ,,संवेधानिक अधिकारों के उलंग्घन जैसा है ,,,,,,स्कूलों
के मास्टर तो जानवरो की गिनती ,,जनसंख्या सर्वे ,,पोलियो उन्मूलन
,,,,चुनाव सहित दूसरे कामो में लगाये जाते है ,स्कूलों के अध्यापको पर
ट्रांसफर की तलवार हमेशा लटकी रहती है ,,हालात यह है के इंग्लिश के अध्यापक
से संस्कृत ,,उर्दू के अध्यापक से संस्कृत ,,, विज्ञानं के अध्यापक से
अंग्रेजी जैसे विषय उल्ट सुलट कर पढ़ाये जा रहे है ,,,स्टफिंग पैटर्न के नाम
पर लूट है तो स्कूलों में ट्रांसफर उद्योग से सभी शिक्षक पीड़ित है
,,स्कूलों में प्रयोग किये जाते है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ऐसे में इन
स्कूलों की व्यवस्था सुधारने के लिए पहले अतिरिक्त बजट और सुझाव लेकर
सरकारी स्कूलों की हालत बदलने ,,स्कूलों में पुख्ता इंतिज़ाम करने ,,,पढ़ाई
के वातावरण के लिए स्कूल के अध्यापकों में ट्रांसफर का असमंजस खत्म करने
,,स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने ,,राजनितिक द्वेषता से अलग रखने
,,,,,सहित महत्वपूर्ण सुधार कार्यक्रम लागु किये जाए ,,,,,,,,,,अख्तर खान
अकेला कोटा राजस्थान
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