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14 अगस्त 2015

संसद में टकराव पर राष्ट्रपति ने जताई चिंता, बोले- गंभीर चिंतन की जरूरत

संसद में टकराव पर राष्ट्रपति ने जताई चिंता, बोले- गंभीर चिंतन की जरूरत
नई दिल्ली. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 69वें स्वंतत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में संसद के मानसून सत्र का सीधे उल्लेख न करते हुए कहा, 'लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं। संसद परिचर्या के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है।'
उन्होंने कहा कि यदि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो निश्चित तौर पर राजनीतिक दलों एवं जनता के लिए इस बारे में गंभीर चिंतन करने का वक्त आ गया है, ताकि सुधारात्मक उपाय अंदर से आ सकें। उन्होंने कहा, 'हमारा लोकतंत्र रचनात्मक है, क्योंकि यह बहुलवादी है, परन्तु इस विविधता का पोषण सहिष्णुता और धैर्य के साथ किया जाना चाहिए।'
उन्होंने ने कहा कि भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त उर्वर भूमि पर, भारत एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में विकसित हुआ है। इसकी जड़ें गहरीं हैं, परन्तु पत्तियां मुरझाने लगी हैं। अब इसमें नवीनता लाने का वक्त आ गया है। यदि हमने अभी कदम नहीं उठाए तो क्या सात दशक बाद हमारे उत्तराधिकारी हमें उतने सम्मान तथा प्रशंसा के साथ याद कर पाएंगे, जैसा हम 1947 में भारतवासियों के स्वप्न को साकार करने वालों को करते हैं। भले ही उत्तर सहज न हो, परंतु प्रश्न तो पूछना ही होगा। सामाजिक सौहार्द पर किये जा रहे कुठाराघातों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि स्वार्थी तत्व सदियों पुरानी धर्मनिरपेक्षता को नष्ट करने के प्रयास में सामाजिक सौहार्द को चोट पहुंचाते हैं।
देश के विभाजन का भी जिक्र
देश के विभाजन का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि 15 अगस्त 1947 आधुनिक भारत के उदय का एक ऐतिहासिक और हर्षोल्लास का क्षण था, लेकिन यह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अकल्पनीय पीड़ा के रक्त से भी रंजित था। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध महान संघर्ष के दौर में जो आदर्श तथा विश्वास कायम रहे वे उस समय दबाव में थे, लेकिन देश के महानायकों की एक महान पीढ़ी ने इस विकट चुनौती का सामना किया। उनकी दूरदर्शिता तथा परिपक्वता ने हमारे आदर्शों को राेष और भावनाओं के दबाव में विचलित होने से बचाया।
उन्होंने कहा कि इन असाधारण महापुरुषों और महिलाओं ने हमें ऐसा संविधान दिया, जिससे महानता की और भारत की यात्रा का शुभारम्भ हुआ। लोकतंत्र को संविधान का सबसे मूल्यवान उपहार बताते हुए उन्होंने कहा कि इसने हमारे प्राचीन मूल्यों को आधुनिक संदर्भ में नया रूप दिया तथा विभिन्न स्वतंत्रताओं को संस्थागत रूप प्रदान किया। मानव और प्रकृति के बीच पारस्परिक संबंधों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता जताते हुए राष्ट्रपति ने आगाह किया कि उदारमना प्रकृति से छेड़छाड़ किए जाने पर वह आपदा बरपाने वाली विध्वंसक शक्ति में बदल सकती है, जिससे जानमाल की भयानक हानि हो सकती है।
राष्ट्रपति ने कहा, 'इस समय जब मैं आपको संबोधित कर रहा हूं देश के बहुत से हिस्से बड़ी कठिनाई से बाढ़ की विभीषिका से उबर पा रहे हैं। हमें पीड़ितों के लिए तात्कालिक राहत के साथ ही पानी की कमी और अधिकता दोनों के प्रबंधन का दीर्घकालीन समाधान ढूंढना होगा। उन्होंने भारत की गुरू-शिष्य परम्परा काे याद करते हुए कहा कि विद्यार्थी श्रद्धा तथा विनम्रता के साथ शिक्षक के ऋण को स्वीकार करता है। समाज शिक्षक के गुणों तथा उसकी विद्वता को सम्मान तथा मान्यता देता है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, क्या आज हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसा हो रहा है? विद्यार्थियों, शिक्षकों और अधिकारियों को रुककर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
सेनाओं और खिलाड़ियों का विशेष अभिनंदन
राष्ट्रपति ने इस अवसर पर विश्व भर के सभी भारतवासियों का अभिनंदन किया। उन्होंने सशस्त्र सेनाओं अर्द्ध सैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों, विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने और पुरस्कार जीतने वाले खिलाड़ियों का भी विशेष तौर पर अभिनन्दन किया। उन्होंने कहा, 'मैं 2014 के लिए नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को बधाई देता हूं, जिन्होंने देश का नाम रोशन किया।'

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