एक फूल हो तुम मेरे जीवन का
हर पंखुरी सहेजे है अंतर्मन।
खुश्बू बन बिखरे हो चहुँ ओर
जिसमें सुवासित हो उठता है तन।
हर पंखुरी सहेजे है अंतर्मन।
खुश्बू बन बिखरे हो चहुँ ओर
जिसमें सुवासित हो उठता है तन।
एहसास हो तुम एक मीठा सा
भीगा है जिसमें अंग-प्रत्यंग ।
एक राग हो तुम संग जिसके
झंकृत हो उठता है मन।
एक लहर सी मैं तो बिखरी थी
समेट लिया तुमने सागर बन।
एक पथ दिखलाया तुमने जीवन का
आँखें मूँदे चलूँगी संग-संग।
पाकर तुम्हे यूँ लगता है
जैसे अब सम्पूर्ण हुआ जीवन।.........मंजुला चौहान
भीगा है जिसमें अंग-प्रत्यंग ।
एक राग हो तुम संग जिसके
झंकृत हो उठता है मन।
एक लहर सी मैं तो बिखरी थी
समेट लिया तुमने सागर बन।
एक पथ दिखलाया तुमने जीवन का
आँखें मूँदे चलूँगी संग-संग।
पाकर तुम्हे यूँ लगता है
जैसे अब सम्पूर्ण हुआ जीवन।.........मंजुला चौहान
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