आपका-अख्तर खान

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13 अगस्त 2015

धाक.


एक-दो पे नहीं,
मेरी सैंकड़ों में थी !
और..
गिनती भी मेरी शहर
के बड़ों-बड़ों में थी ।

दफ़न..
छःफ़ीट के गड्ढे में
कर दिया मुझको !
जब कि..
ज़मीन मेरे नाम
तो एकड़ों में थी ।।

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