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03 जुलाई 2015

खुदा का शुक्र है आज का जुम्मा इबादत के साथ खुशनुमा खुशनूदगी के साथ गुज़र गया

खुदा का शुक्र है आज का जुम्मा इबादत के साथ खुशनुमा खुशनूदगी के साथ गुज़र गया ,,,,,,मोलवी ,,मुल्ला ,,अफवाह बाज़ लोगों की अफवाह के जुमे के दिन चिंघाड़ होगी ,,तबाही आएगी सब झूंठी बकवास साबित हो गई ,,खुदा से बढ़कर जो भी खुदा बनता है उसे ऐसे ही मुंह की खाना पढ़ती है ,,दुनिया में तो ऐसे लोगों की बेइज़्ज़ती होती ही है साथ ही उनकी आख़ेरत भी बिगड़ती है ,,अभी भी ऐसे लोग चाहे तो खुदा ने उनके लिए तोबा का रास्ता खोल रखा है ,,सार्वजनिक रूप से अपनी तोबा कर अगर यह अफवाह बाज़ लोग भविष्य में सुधरने की क़सम खा ले और उसपर क़ायम भी रहे तो यक़ीनन इनकी आख़ेरत भी अच्छी हो जायेगी ,,खेर बन्दे और अल्लाह के बीच गुनाह और सवाब के मामले में बीच दरमियाँ में आने वाले हम और तुम कौन होते है ,,लेकिन तालाब के किनारे एक मस्जिद में जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बे के दौरान मुक़र्रिर ने आज क़ुरानी हुकम ,,,थोड़े से मोल में मेरी आयते मत बेचो ,,,पर भी तक़रीर की ,,मुक़र्रिर ने हदीसों का हवाला देते हुए कहा के ,,किसी भी इबादत के रूपये लेना हराम है ,,मुक़र्रिर ने खुलासा किया के अगर कोई तरावीह पढ़ाता है उसे रूपये दिए जाते है या वोह खुद लेते है तो यह हराम है ,,,मुक़र्रिर ने यह भी खुलासा किया के हम्द और नात गाने वाले को अगर कोई रूपये देता है या ऐसे गाने वाले रूपये लेते है तो वोह हराम होता है ,,,कुल मिलकर मंशा थी के इस्लाम में रूपये लेकर इबादत यानी नमाज़ ,,तरावीह ,,क़ुरआन मजीद पढ़ाना वगेरा वगेरा जो भी हो उसके बदले में कोई भी उजरत रक़म लेना हराम है ,,में खुश था के चलो किसी एक मुक़र्रर ने तो क़ुरआन की वोह आयत पढ़ ली और खुले तोर पर उसका हदीस की रौशनी में बयांन करने की हिम्मत दिखाई ,,लेकिन एक पल में मुक़र्रिर साहब ने पलटी खाई वोह कहने लगे के इबादत के बदले ऐसे लेना तो हराम है ,,लेकिन एक तरकीब है जो हराम नहीं है ,,मुक़र्रिर ने कहा के आप घंटे तय कीजिये नमाज़ पढ़ाने वाले ,,,तरावीह पढ़ाने वाले ,,इबादत करने वालों से घंटे तय कीजिये के हम दो घंटे ,,तीन घंटे ,,या जितना भी वक़्त हो आपका लेंगे ,,इस दौरान अगर वोह नमाज़ पढ़ाते है ,, तरावीह पढ़वाते है ,,,,,,हंद व् नात गाते है तो यक़ीनन आप उन्हें वक़्त के बदले रुपए दे रहे है और यह हराम नहीं है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,में अब तक हतप्रभ हूँ ,,में अब तक नहीं समझ सका के खुदा एक तरफ तो इबादत के बदले उजरत को हराम क़रार देता है दूसरी तरफ उसी इबादत के बदले वक़्त का नाम आ जाने से हलाल कर देता है ,,,में जाहिल हूँ ,,इस्लाम में तर्जुमे से क़ुरान और हदीसों के साथ साथ मुस्लिम क़ानून और इतिहास के अलावा बहुत कुछ नहीं पढ़ सका हूँ इसलिए लगातार सोचते रहने के बाद भी यह नहीं समझ सका हूँ के जब खुदा की आयतो का मोल ,,यानी इबादत का मोल क़ुरआन के हुक्मे में ही इंकार है ,,तो फिर कैसे वक़्त जोड़ देने से वोह हलाल हो सकती है ,,,,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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