आपका-अख्तर खान

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28 जुलाई 2015

जाओ दिल साफ़ नहीं

पता नहीं किस मजबूरी में
यु ही वोह मुझ से बेदिली से मिलते रहे
ना इश्क़ मुझ से ,,ना दिल साफ़ मुझ से
उनसे यूँ ही बेदिली से मिलने पर
मेने कह दिया
जाओ दिल साफ़ नहीं
मुलाक़ात नहीं भी हो तो कोई बात नहीं
बात करने की मिलने की
जो भी मजबूरी हो उसे भूल जाओ
दिल साफ़ नहीं है तो यूँ ही बेवजह
प्यार की रस्म मत निभाओ
यक़ीन मानिए
उनके चेहरे पर ईद की ख़ुशी आई
बरसो से फड़फड़ाते पिंजरे में बंद पंछी की
आज़ादी का सुकून
उनके चेहरे जीत की मुस्कान के साथ आया
उन्होंने मुस्कुराकर आज़ादी की ख़ुशी में कहा
अल्लाह हाफ़िज़ ,,अल्लाह हाफ़िज़
में सोचता रहा
में तो अकेला हूँ ,,अकेला था ,,अकेला ही रहूंगा
फिर यूँ ही में
यह ज़बरदस्ती के प्यार का नाटक क्यों किये जा रहा था ,,,,,,अख्तर

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