दोस्तों इस भागती दौड़ती दुनिया में ,,,,रोज़े इफ्तार ,,,,,के सियासीकरण का
भी सोशल मिडिया करण हो गया है आधुनिकता के इस युग में अब रोज़े इफ्तार के
कार्ड सोशल मिडिया पर दावतनामे के बतौर प्रकाशित किये जा रहे है ,,,,,रोज़े
इफ्तार पर टेलीफोन पर सुचना देने ,,या निजी तोर पर कार्ड भेजने की परम्परा
खत्म हो गई है ,,क्योंकि सियासी रोज़े इफ्तार कार्यक्रमों में एक बुलाओ सो
आते है वाली परम्परा होने से अब रोजेदारों ,,महमानों को बुलाने की तहज़ीब
भी मर गई है ,,,,,आधुनिकता की इस साइबर दौड़ में महमाँनन वाज़ी खासकर
रोजेदारों की मेहमाननवाज़ी में इस बदलाव को देखकर तकलीफ तो होती है
,,,,,,,,,,,,हम शुक्रगुज़ार है मंज़ूर तंवर ,,,गुड्डू धनवा ,,,पंकज मेहता
,,,अल्पसंख्यककर्मचारी महासंघ सहित उन भाइयों के जिन्होंने दावतनामे की इस
तहज़ीब को मरने नहीं दिया और निमंत्रण की तहज़ीब को ज़िंदा रखा है
,,,,,,,,,,,,अख्तर
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