शिक्षा विभाग ने स्टाफिंग पैटर्न के मानदंड अप्रैल में जारी किए थे। उसके अनुसार कक्षा एक से 12वीं तक की स्कूल में 14 अध्यापक रखे जाएंगे। इनमें पांच व्याख्याता और तीन वरिष्ठ अध्यापक है। वरिष्ठ अध्यापक गणित, विज्ञान एवं तृतीय भाषा पढ़ाएंगे। स्कूलों में तृतीय भाषा के रूप में संस्कृत, सिंधी, उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी और संगीत विषय पढ़ाया जाता है। अब जिन स्कूलों में इनमें से कोई विषय स्वीकृत है और दस से अधिक छात्र हैं, वहां उसी विषय का अध्यापक दिया गया है। हाल ही में स्कूलवार सूचियां जारी होने पर विषयों की स्थिति देख उर्दू शिक्षक परेशान हो उठे। क्योंकि जिले की 358 माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में उर्दू विषय के 65 में से 14 पद ही रखे गए हैं। अब जिन स्कूलों में यह पद हैं उन्हीं में उर्दू विषय पढ़ाया जाएगा। शेष अध्यापक सरप्लस हो गए हैं। जबकि संस्कृत विषय का पद प्रत्येक स्कूल में रखा गया है।
घर-घर जाकर छात्रों को लाए थे
शालाप्रवेशोत्सव के पहले चरण में घर-घर जाकर उर्दू पढ़ने वाले छात्रों को स्कूलों में प्रवेश दिलाया। छात्र संख्या बढ़ाई लेकिन जब स्कूलों से पद ही समाप्त कर दिए तो अब इन बच्चों को कौन पढ़ाएगा। राजस्थान शिक्षक संघ उर्दू के जिलाध्यक्ष जुल्फीकार अली ने बताया कि यह सूचियां हाल ही में बाहर आई तो पता चला कि उनके पद ही समाप्त कर दिए। यही नहीं संस्कृत को छोड़ तृतीय भाषा में अन्य विषय के सैकंड ग्रेड अध्यापकों के पद भी समाप्त हो गए हैं। सरकार के इस फैसले से उर्दू पढ़ने वाले बालकों के साथ अन्याय होगा। उनका भविष्य चौपट हो जाएगा। जिस स्कूल में पद है, वह उनके घर से इतनी दूर है कि बच्चे पहुंच ही नहीं पाएंगे। जुल्फीकार ने बताया कि इस फैसले के खिलाफ आंदोलन किया जाएगा।
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