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27 जून 2015

स्मार्ट सिटी


जिस शहर में सात मिलीमीटर बरसात होने से सड़कों पर चार फुट पानी आ जाता हो। तीन साल में दो सौ दिन प्रदूषित पानी नलों के जरिए घरों में जाता हो। लोग इस पानी को पीकर बीमार पड़ते हों। इस पानी के लिए भी शहर के लोग तरसते हों। जलदाय अधिकारियों की ठुकाई करने पर ही पानी आता हो। इसके बावजूद अधिकारियों की आंखें नहीं खुलें। जनप्रतिनिधियों के मुंह बंद रहें। वह शहर कितने समय में स्मार्ट बन सकता है।
जिस शहर का सीवरेज सिस्टम फैल हो चुका हो। सीवरेज के पानी पर माफिया का कब्जा हो। फैक्टरियाँ तेजाबी पानी उपचारित किए बिना नदी-नाले में छोड़ देती हों। इस पानी से चर्म रोग फैलते हों। जमीन ऊसर हो रही हो। वह शहर कितने समय में स्मार्ट बन सकता है।
अतिक्रमण जहां लाइलाज हो गया हो। खाली जमीन ही नहीं, पहाड़ों पर भी कब्जा हो गया हो। कहीं भी पार्किंग नहीं हो। मास्टर प्लान की धज्जियां उड़ रही हो। वन भूमि पर हजारों अवैध कब्जे हो चुके हों। अतिक्रमण की आड़ में खुले आम वसूली होती हो। वह शहर कितने समय में स्मार्ट बन सकता है।
गंदगी की समस्या विकराल हो गई हो। हाईकोर्ट के आदेश मलबे में दबा दिए हों। जहां कलक्टर को सफाई की निगरानी करनी पड़े। फिर भी गंदगी मुंह चिड़ाती रहे। वह शहर कितने समय में स्मार्ट बन सकता है।
जहां सालभर रखरखाव के नाम पर कटौती होती रहे। फिर भी हवा के झोंके से बिजली गुल हो जाए। बरसात के बाद घंटों तक लोग अंधेरे में डूबे रहें। जहां हर फीडर में चोरी का फाल्ट हो। रिश्वत देने पर ही मीटर में करंट दौड़ता हो। वह शहर कितने समय में स्मार्ट बन सकता है।
जहां रोज चोरियां होती हों। सड़कों पर चेनें लुटती हों। जेबें कट जाएं हर बस में। गांजा-अफीम बाजारों में। जेलों में बंदी ऐश करें। सड़कों की चाल अराजक हो। जब लूट के अड्डे थाने हों। तब शहर कितने समय में स्मार्ट बन सकता है।
स्कूलों के हाल बेहाल। अस्पताल बबदहाल। यूनिवर्सिटी का भगवान ही मालिक।
तो ऐसे हालात में भी अपना शहर स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल हो गया है। योजनाकारों का पूरा फोकस है। स्मार्ट लिविंग। स्मार्ट पीपुल्स । स्मार्ट एन्वायरमेंट। स्मार्ट इकोनामी। स्मार्ट गवर्नेंस। चुनौती स्वीकार कर ली है। अगर दर्जा मिला तो हर साल दो सौ करोड़ मिलेंगे विकास के लिए। खर्च तो अब भी सैकड़ों करोड़ हो रहे हैं। पर स्मार्टनेस नहीं आ रही। मौका चूक गए तो पीढ़ियां कोसेंगी।
सब लगे हैं शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने में सांसद, महापौर। निगम के अफसर। सवाल यह कि जब सारे लोग स्मार्ट शहर के दर्जे के लिए उतावले हैं, फिर भी बंटाढार क्यूं हो रहा है? एक ताजा जानकारी यह कि शहर की 98 फीसदी आबादी नगर निगम की कार्य प्रणाली से नाखुश हैं।
अब बताओ। क्या हमारा शहर स्मार्ट बन सकता है? ये झुनझुना किसके लिए? शहर के लिए? या जेबें और भरने के लिए

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