आपका-अख्तर खान

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02 मार्च 2015

अभी तो शाम हुई है

अभी तो शाम हुई है
मेरा तकिया
आंसुओं से तो भीगने दे
मेरा कमरा
सिसकियों से तो गूंजने दो
अभी तो शाम हुई है
तुम्हारी यादो में
अभी मुझे तड़पने तो दो
तुम्हारा वोह प्यार
मुझे पकड़कर चिपट जाना
मेरे होंटों पर तुम्हारे
जलते हुए होंटों को रख कर इतराना
अभी तो शाम हुई है
मुझे यह सब सोचने तो दो
मेरी रात का नज़ारा ऐसा है
तो बताओं तुम ही बताओ
में फिर सुबह का इन्तिज़ार क्यों करूँ
अभी तो शाम हुई है
सोचता हूँ यह शाम
मेरी ज़िंदगी की आखरी शाम
तेरे बगैर में आखरी करूँ ,,,,,,,,,,अख्तर

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