नई दिल्ली. दिल्ली में भाजपा की मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी रही किरण बेदी
ने खुला पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने राजनीति में आने के कारण गिनाए।
चुनावी राजनीति की परीक्षा में नाकामी स्वीकारी। यह भी कहा, ‘मुझे इस बात
की राहत है कि चुनाव प्रचार में मेरे लिए बोले गए ‘अपशब्द’ सुनने को मेरे
माता-पिता जिंदा नहीं हैं।’
पूर्व आईपीएस अफसर ने अपने आधिकारिक ब्लॉग पर लिखा, ‘मैं चुनावी
राजनीति की परीक्षा में नाकाम रही। मैं पूरी जिम्मेदारी लेती हूं। लेकिन
मेरे अंदर की किरण बेदी नाकाम नहीं हुई है। जितना वक्त मिला, मैंने उसमें
पूरी ऊर्जा और अनुभव लगाया।
निश्चित तौर पर वह काफी नहीं था।
लेकिन मैं इस अपराध बोध के साथ नहीं मरना चाहती थी कि मैं सिर्फ
आलोचना कर रही हूं। चुनावी राजनीति में उतरकर परीक्षा देने की हिम्मत नहीं
की।’ दिल्ली के नतीजे आने पर बेदी यह कहकर विवादों में घिर गई थी, “मैं
नहीं हारी हूं। मैंने अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए। यह भाजपा की हार
है। उसे इस हार पर आत्मावलोकन करना चाहिए।’ बेदी ने भाजपा की सुरक्षित सीट
कृष्णानगर से चुनाव लड़ा था। लेकिन आम आदमी पार्टी के एसके बग्गा ने वहां
भी उनको 2,277 वोट से हरा दिया था।
प्रचार में पूरा शहर नहीं थमना चाहिए
बेदी ने लिखा, ‘चुनाव प्रचार के दौरान मैं कहना चाहती थी कि अभियान के
तरीके बदलने चाहिए। पूरा शहर या राज्य थम जाता है। ऐसा क्यों होना चाहिए?
असभ्य, भ्रष्ट, प्रतिशोधी, कानून तोड़ने वाला प्रचार। तरीके सुधरना चाहिए।
प्रचार में भीड़ का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।’
...लेकिन जिंदगी में खाना फ्री नहीं मिलता
बेदी ने पत्र में आप के मुफ्त पानी और बिजली की दरें आधी करने के
वादों पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, ‘लोगों को सुविधाएं चाहिए।
ईमानदारी, विश्वसनीयता और पेशेवर प्रतिबद्धता भी चाहते हैं। लेकिन उन्हें
सब मुफ्त चाहिए। आप जितना ज्यादा देंगे, उतना ज्यादा पाएंगे। लेकिन जिंदगी
में खाना फ्री में नहीं मिलता। आप पीटर को लूटकर पॉल को पैसा दोगे तो वह
दिन दूर नहीं जब सभी लुट जाएंगे।’
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