आपका-अख्तर खान

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07 मई 2014

,,अगर मे इन्साफ की बात करता हूँ तो इस्लाम की बात करता हूँ अगर मे अमन की बात करता हूँ अगर मे ज़ालिमों को सज़ा देने की बात करता हूँ तो मे इस्लाम की बात करता हूँ ,,,,,लेकिन मे अगर किसी के धर्म मज़हब को चोट पहूँचाने किसी मज़हब को बदनाम करने की बात करता हुँ तो मे हराम करतां हुँ

दोस्तों कल मेने माई नेम इस खान ,,,,,की तर्ज़ पर एक पोस्ट लिखी थी मेरे कै अपनोँ ने ,,भाइयोँ ने उस पोस्ट तीखी  निर्भीक टिप्पणियां की है मेरे भाई राजीव चतुर्वेदी साहब सहित दो साथियों ने कमाल ही कर  दिया इस पोस्ट को मुद्दा बनाकर एक नयी पोस्ट बना दी ,,भाई राजीव चतुर्वेदी की फनकारी ने इस पोस्ट की प्रतीक्रिया ओर बढा दी ,,,मेरे कै दोस्त मुझ से नाराज़ हुए ,,,कई खामोश रहे तो कई ने खुद को देशभक्त मानकर दूसरोँ को गददार मान  लिया ,,भाई राजीव चतुर्वेदी पर कुछ मेरे भाई उन्हे आर एस ऐस का एजेन्ट बठाकर पिल पढें ,कुछ ने मेरी पोस्ट की तारीफ़ की ,,,कुछ ने कुछ ने ललकारा ,,कुछ ने फटकारा लेकिन खुशी की बात यह रही के बहस एक़ मर्यादाओं के दायरे मे रही मुद्दे पर निर्भीकता ओर निष्पक्षता से निजी विचारधारा को प्रभवित रखकर भी टिप्पणियाँ की गयी ,,,,,,
मेरे दोस्तों बुज़ुर्गो मेंने फिर अपनी इस पोस्ट मे अपनी विचारधारा आप भाइयोँ पर थोपने की  गुस्ताखी की है ,,दोस्तोँ   कोई भी आदमी पुरी तरह से बुरा ओर पुरी तरह से अच्छा नहीं होता ,,, वोह आधा अचछा ओर आधा खराब होता है अगर हम उस शख्स मे केवल ओर केवल बुराइयाँ देख्ते है तो वोह हमै बुरा लगता है ओर अगर हम उसमे  केवल अच्छाइयां देख्ते है तो वोह सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छा लगता है यानी हमारी सोच ओर हमारी जानकारी को हम अन्तिम मानकर लोगो को अचछा बुरा कहने लगते है ,,,,,,,,,,,भाई राजीव चतुर्वेदी को मेरे मित्र ने आर एस एस का एजेन्ट कहा तो क्या हुआ अगर वोह आर एस ऐस के एजेन्ट है लेकिन लिखते तो अच्छा है कठोर कड़वा मुस्लिम विरोधी भी  लिखते है तो काफ़ी अच्छा ओर  निष्पक्ष भी लिखते है ,,,,,मुस्लिम समाज के विरोध मे लिखना उन्की बराई हो सकती है अगर हम उनकी इस बुराई का विरोध करते है तो हमे उनके अच्छे लेखन की तारीफ़ करने का साहस  भी होना चाहिये ,,,,,,,,,,,,अगर नरेन्द्र मोदी को हम मुस्लिमों का कातिल कहकर उन्हे बुरा बुरा कहते है तो उनके गुजरात के विकास ओर गुड गवर्नेन्स ,,अच्छी भाषण शैली की हमे बिना किसी पूर्वाग्रह के प्रशंसा भी करना चाहिये ,,,,अगर हम कॉँग्रेस के नुमाइंदों पर मुसलमानों की तबाही ,,बर्बादी के मामले को लेकर पुख्ता सुबूतो के साथ इल्जाम लगाते है ,,मस्जिद तुड्वाने का उन्हे दौषी कहते है तो कई जगह पर फसादात के माहौल मे उनके निष्पक्ष काम की हमे तारीफ़ भी  करना चाहिये ,,,यह बिना पूर्वाग्रह का लेखन है ओर कोइ भी बिना पूर्वाग्रह के लिखा गया लेखन क्भी किसी के खिलाफ़ तो कभी किसी के पक्ष मे होता है बस यहीं पूर्वाःग्रह से ग्रसित लोग या आधी अधुरी जान्कारी रखने वाले लोग भर्मित ओर  कनवयुज़ हो जाती है ओर अपने कयास अपने दिल दिमाग मे रखी बसी विचारधारा ओर ज़ानकारी के हिसाब से लिखने वाले की विचारधारा के बारे मे कयास लगाने लगते है ,,,,मे कभी भाजपा के खिलाफ़  लिखता हु  तो कांग्रेसी खुश होते है कभी कॉँग्रेस की करतूतें लिखता हूँ तो भाजपाई खुश होते है ,,कभी आप पार्टीः के कुछ सिद्धान्त की  तारीफ लिखता हूँ तो लोग आपिया कहते है ,,कुल मिलकर लेखनी के सच को जान्ने की जगह मेरे कई भाई उसमे मेरी ज़ात ,,मेरा धर्म ,,मेरा मज़हब ,,मेरा समाज ,,,तलाशने लगते है ,,,,,मे  सन्त कबीर दास की समझ का एक उदाहरण देन चाहता हूँ ,,,,,,,,,,,,कबीर दास जो हरे भरे इलाक़े मे रहे उन्होने छायादार घने वृक्ष देखे ऍसे खजूर का पेढ़ दखकर उनकी मन मे छायादार वृक्षों के मुकाबले मे खजूर के पेढ़ को लेकर बदगुमानी आना वाजिब बात थी उन्होने  दोहा लिख ड़ाला ,, बढा हुआ तो क्या हुआ ,,,,,जेसे पेढ़ खजूर ,,पंछी को छांया नहीं फल लागे अति दूर ,यानि कबीर दास की निगाह मे मैदानी इलाके के हरियाली मे रहने के कारण ,,,,,खजूर के पेढ की कोई क़ीमत नहीँ रही ,,लेकिन दोस्तों ठीक इसके विपरीत सच्चाई अलग है ,,,बसंत के मौसम मे सभी हरे भरे पेड़  के पत्ते पीले पढ़ जाते है ,,कम्जोर होकर नीचे गिरते है लेकिन एक मात्र  खजूर का पेड़ होता है जो तनकर खड़ा रहता है ओर आंधी तूफ़ान पतझड़ उसकी ऐक पत्ती भी नहीं  गिरा सकता ,,,,,,,,,,रेगिस्तानी देश मे यही खजूर का पेढ़  वरदान बन जाता है ,,यही खजूर का पेढ जिसे कबीर दास नाकारा बतातें रेगिस्तानों को उजढने से बचाते है ,,,,,,ग्राऊँड वॉटर पानी का जलस्तर उपर रखते है ,,,,रेगिस्तान को आँधियों से बचाते है ओर फ़िर खजूर के रुप मे एक पौष्टिक फ़ल देते है  जो सब फलो से ज़्यादा ताक़तवर होती है ,इस्की रेगिस्तानी इलाक़ों  मिठाइयॉँ बनती है ओर रेगिस्तानी इलाक़ों मे यहीं खजर इश्वर का वरदांन मानी जाती है ,,,इसके तने से वहॉं लोग रेहने के लिएँ मकान बनाते है ,,पत्तो को छायां के लिये ओर नीचे बिछाने के लिये चटाई के रूप मे इस्तेमाल करते है ,,,,,,,,,,,,,,,,गंदगी साफ़ करने के लिये झाड़ू बनाते है दवाइयाँ बनाते है तो दोस्तों अगर कबीर दास खजूर के पेड़ का यह पहलु जान्ते रेगिस्तान मे रहते तो वोह खजूर के लिये ऐसा उपेक्षित दोहा नहीँ लिखते इसी तरह से भाई सोच ओर सम्झ का दायरा अगर हम बढ़ाएंगे अपनीं जानकारीयाँ बढाएंगे ,,किसी भी पोस्ट को पूर्वाग्रह से नहीं ज्ञान की द्रष्टी से मनोरंजन की द्रष्टी से पढेंगें तो नयापन लगेगा ,,लुत्फ़ आयेगा नफरत का भाव ओर गुस्सा  दूर भाग जायेगा लेकिन जो लोग धर्मे के नाम पर नफरत फैलाते है समाजो को लड़ाते है केवल ऐक तरफा सोच परवीन तोगडिया ,,,गिरराज शर्मा ,,,आज़म खान ,,असदुल्ला ओबेसी ,,बोडो ,नक्सलि ,,आतंकवादीयों की सोच रखते है उनका पक्षधर ना तो मे हुँ ओर ना ही कभी किसी से उनकी पैरवी करने की बात करता हूँ ,,अगर मे हिन्दुस्तान की बात करता हूँ तो इस्लाम  की बात करता हूँ ,,अगर मे इन्साफ की बात करता हूँ तो इस्लाम की बात करता हूँ अगर मे अमन की बात करता हूँ अगर मे ज़ालिमों को सज़ा देने की बात करता हूँ तो मे इस्लाम की बात करता हूँ ,,,,,लेकिन मे अगर किसी के धर्म मज़हब  को चोट पहूँचाने किसी  मज़हब को बदनाम करने की बात करता हुँ तो मे हराम  करतां हुँ ,,,,,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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