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29 अप्रैल 2014

तुम्हे बार बार टोकते हैं

सतीश यशोमद

लहरों को - रोको मत
बहने दो -
वो जो कहना चाहती हैं -
उन्हें कहने दो .

बांध - नदियों को
निश्छल बहने से -रोकते हैं .
ये बरसाती परनाले -आखिर क्यों
तुम्हे बार बार टोकते हैं .

तू सागर है - नदी नहीं
जिसे बाँध ले - ऐसा कोई
तटबंद नहीं जो -उमड़ते
तुफानो के रास्ते रोक ले.

रुका मत रह - तट पर
तुफानो के मिजाज -चाहे
कितने सवाली हैं-
तेरे हाथ पतवार- है
धाराओं के हाथ तो - आज भी
खाली हैं .

चल -निकल चल उस राह
जिसके नाम से लोग -आज
भय खाते हैं
नाम तो उनके ही होते हैं -
जो उस रस्ते पर -
अपने नाम के -मील के
पत्थर अपने हाथों से लगाते हैं .-

और सपने देखते ही नहीं

उन्हें सच भी बनाते हैं .

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