आपका-अख्तर खान

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05 मई 2013

चलो कुछ ढूँढ़ते हैं -

चलो कुछ ढूँढ़ते हैं -

सच की सपने .

पराये की अपने .

ना जाने क्या चाहता है

मन उद्विग्न अशांत

आज ना जाने क्यों .

ना पूरा भरा हूँ -

ना आधा खाली हूँ

फिर भी ना जाने

आज क्यों सवाली हूँ .

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