आपका-अख्तर खान

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03 मई 2013

सभी कहते हैं - मैं

सभी कहते हैं - मैं
कविता लिखता हूँ - पर
क्या जज्बात शब्द ओढ़ लें तो -
कविता बन जाती है - या भाव
निर्लज होकर सरेराह बिखर जाएँ -
तो कविता होती है - ये तमाशा है
जनाब - मनोभावों का दिखावा -
इसे सच मे कविता नहीं कहते .

कविता कलम से - नहीं
बन्दूक से निकलती है .
दिलों की आग दीये सी नहीं
मशाल सी जलती है - हवा साथ दे
तो फिर देख - कैसे
क्रांति की पुरवाई - तूफानी
जोर शोर से चलती है .

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