कुछ अनकहे सवालों की फेहरिस्त लिए घूमता हूँ .......
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
रोज़ निकल पड़ता हूँ रोटी की आस में ...
मैं आम आदमी हूँ ...
रोटी ही नहीं, इज्ज़त भी ढूँढता हूँ .....
सपने तो तब देखूं ऐशो आराम के ....
गर मिले सुकून की नींद मुझे ......
मैं महल नहीं मेरी झोपडी की चार दीवारों में....
सिर्फ सुरक्षा ढूंढता हूँ .........
जिस दिन मेरी बेटी घर आने में देरी करती है ....
गलियों में नहीं खबरों में उसे ढूँढता हूँ...
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
मुझे तो गर्व है आम आदमी होने पर भी.....
कम से कम टुच्चे बयानों को सिर्फ सुनता हूँ ...
गर होता आपसा ख़ास तो होता गुनाहगार ...
आज तो बस दर्द लिए घूमता हूँ ...
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
मजबूर मैं हूँ नहीं बन गया हूँ ...
मजबूत मैं था नहीं बना दिया गया हूँ ....
कीचड़ में डूबे पंख लिए कैसे ऊँडू.....
आज़ाद तो कागजों में हूँ मैं ....
हर राग की बंदिश मन में ....
और न दिखने वाली ज़ंजीरो में बंधा आज़ाद घूमता हूँ ..............
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ .......
गीत मल्होत्रा .
कुछ अनकहे सवालों की फेहरिस्त लिए घूमता हूँ .......
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
रोज़ निकल पड़ता हूँ रोटी की आस में ...
मैं आम आदमी हूँ ...
रोटी ही नहीं, इज्ज़त भी ढूँढता हूँ .....
सपने तो तब देखूं ऐशो आराम के ....
गर मिले सुकून की नींद मुझे ......
मैं महल नहीं मेरी झोपडी की चार दीवारों में....
सिर्फ सुरक्षा ढूंढता हूँ .........
जिस दिन मेरी बेटी घर आने में देरी करती है ....
गलियों में नहीं खबरों में उसे ढूँढता हूँ...
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
मुझे तो गर्व है आम आदमी होने पर भी.....
कम से कम टुच्चे बयानों को सिर्फ सुनता हूँ ...
गर होता आपसा ख़ास तो होता गुनाहगार ...
आज तो बस दर्द लिए घूमता हूँ ...
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
मजबूर मैं हूँ नहीं बन गया हूँ ...
मजबूत मैं था नहीं बना दिया गया हूँ ....
कीचड़ में डूबे पंख लिए कैसे ऊँडू.....
आज़ाद तो कागजों में हूँ मैं ....
हर राग की बंदिश मन में ....
और न दिखने वाली ज़ंजीरो में बंधा आज़ाद घूमता हूँ ..............
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ .......
गीत मल्होत्रा .
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
रोज़ निकल पड़ता हूँ रोटी की आस में ...
मैं आम आदमी हूँ ...
रोटी ही नहीं, इज्ज़त भी ढूँढता हूँ .....
सपने तो तब देखूं ऐशो आराम के ....
गर मिले सुकून की नींद मुझे ......
मैं महल नहीं मेरी झोपडी की चार दीवारों में....
सिर्फ सुरक्षा ढूंढता हूँ .........
जिस दिन मेरी बेटी घर आने में देरी करती है ....
गलियों में नहीं खबरों में उसे ढूँढता हूँ...
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
मुझे तो गर्व है आम आदमी होने पर भी.....
कम से कम टुच्चे बयानों को सिर्फ सुनता हूँ ...
गर होता आपसा ख़ास तो होता गुनाहगार ...
आज तो बस दर्द लिए घूमता हूँ ...
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ ....
मजबूर मैं हूँ नहीं बन गया हूँ ...
मजबूत मैं था नहीं बना दिया गया हूँ ....
कीचड़ में डूबे पंख लिए कैसे ऊँडू.....
आज़ाद तो कागजों में हूँ मैं ....
हर राग की बंदिश मन में ....
और न दिखने वाली ज़ंजीरो में बंधा आज़ाद घूमता हूँ ..............
मैं आम आदमी हूँ ....
श्रद्दा से नहीं, डर से आपके पाँव चूमता हूँ .......
गीत मल्होत्रा .
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