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08 मई 2013

हिंदी ब्लोगिंग में लक्ष्य हुआ पार, मेरी पोस्टें हुई दस हजार

दोस्तों! हिंदी ब्लोगिंग में मेरा लक्ष्य हुआ पार, मेरी पोस्टें हुई दस हजार. मेरे बुजुर्गों, मेरे दोस्तों,मेरे हमदर्दों, मेरे आलोचकों और मेरे समालोचको आज आपके आशीर्वाद से मैंने हिंदी ब्लोगिंग की दुनिया में दस हजार हिंदी पोस्टें लिखने का रिकोर्ट बना लिया है.
                    मुझे याद आता है सात मार्च का वो दिन जब मैंने अपने इंजीनियरिंग कर रहे बेटे शाहरूख खान से अपना हिंदी ब्लॉग आपका अख्तर खान अकेला बनवाया था. जिसका लिंक यह www.akhtarkhanakela.blogspot.in है और इसी दिन मैंने अपनी पहली पोस्ट अपने परिचय के रूप में अंग्रेजी लिपि में लिखी थी. मुझे हिंदी टाईप नहीं आती और ना मुझे कम्प्यूटर का संचालन ही आता था. लेकिन पत्रकार और वकील होने के नाते अपने जज्बातों को मैं ब्लोगिंग की दुनिया में उतारना चाहता था. मैंने इसके लिए हिंदी टाइपिंग सिखने का प्रयास किया. लेकिन वकालात और सामाजिक कार्यों के साथ-साथ पारिवारिक मसरूफियत के कारण में हिंदी टाईप सीख नहीं पा रहा था और विचारों को लिखने के लिए दिल मचल रहा था. लिहाज़ा मुझे ट्रांसलिट्रेशन पर लिखने का सुझाव मेरे बेटे शाहरुख ने दिया और तब से मैंने ट्रांसलिट्रेशन पर अंग्रेजी में टाईप कर हिंदी कन्वर्जन में लिखना शुरू किया. उसके बाद तो फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मेरे साथियों मैंने कोशिश की है कि अपने विचारों को मैं इमानदारी से निष्पक्षता से अपने साथियों के साथ बाँट सकूं.मुझे ब्लोगिंग की तकनीकी समझ नहीं थी और अभी भी इतनी नहीं है. आज भी लिखने में पीछे हूँ लेकिन मैंने अपने दोस्तों से सहयोग लेकर ही आगे बढ़ा हूँ. मुझे हिंदी ब्लोगर ललित शर्मा , डाक्टर अनवर जमाल, एडवोकेट दिनेश राय द्विवेदी, एस मासूम, रमेश कुमार जैन उर्फ निर्भीक सहित दर्जनों साथियों और बहनों ने हौसला दिया और सीख दी. मेरी गलतियों को सुधारा, मेरे ब्लॉग को सजाया संवारा .मुझे फोटो डालना, ट्विटर के खाते पर लिखना सिखाया. फिर फेसबुक की दुनिया ने तो सोशल साईट पर मुझे आम कर दिया.
             मैं लिखता रहा और निरंतर लिखता गया. बीमारी ..पारिवारिक व्यस्तता ....कोटा से बाहर रहने का वक्त...इंटरनेट ..कम्प्यूटर में तकनीकी खराबियों के दिन अगर निकल दे तब सात मार्च दो हजार दस से आज तक इस हिंदी लेखन ब्लोगिंग में सौ दिन कम हो जाते है और अपनी शादी की सालगिरह के दिन दस मार्च मैंने  हिंदी में पोस्टें लिखना शुरू कीं. मैंने सन 2010 में 1811, 2011 में 3861, 2012 में 2900 और 2013 में बाकी पोस्टें लिखकर आज का दिन विजय दिवस के रूप में मना लिया है. मेरी कोशिश थी कि मैं जल्दी ही दस हजार पोस्टें लिखने का लक्ष्य पूरा करूँ ....मैं आभारी हूँ मेरे सभी आलोचकों का जिन्होंने वक्त-बा-वक्त मेरे कान उमेठ कर मुझे इस लेखन क्षेत्र में भटकने से बचाया और सही रास्ता दिखाया ..मैं आभारी हूँ उन लोगों का जिन्होंने मुझे ऊँगली पकड़ कर इस हिंदी ब्लोगिंग के नामुमकिन लक्ष्य को निर्धारित वक्त से पहले पूरा करने का हौसला दिया. दोस्तों मैंने लेख ..आलेख ..कविताएँ ..शायरी तो लिखी ही साथ में कुरान का संदेश हिंदी अनुवाद के रूप में अपने साथियों तक पहुंचाया. मैंने भगवत गीता का पाठ भी अपने साथियों को पढाया है
                    इसके साथ ही त्योहारों, देश के हालातों, सियासत पर लिखी पोस्ट पर मेरी जमकर आलोचना भी हुई. तब किसी ने मुझे मुसलमान लेखक समझकर मेरी आलोचना की तो किसी ने मुझे साहसी बताया और किसी ने मुझे साम्प्रदायिक भी करार दिया.किसी ने मुझे कोंग्रेस तो किसी ने भाजपा का और किसी ने कोमरेड विचारधारा का बताया.कई बार तो मेरे आलोचक जिन्होंने कुरान शरीफ तर्जुमे से नहीं पढ़ा है उन्होंने ने भी मेरी लेखनी पर आपत्ति जताई. कुछ हिन्दू भाइयों ने भी मुझे आईना दिखाने की कोशिश की.मगर फिर भी मुझे इस हिंदी ब्लोगिंग और ट्विटर की दुनिया में मेरे साथियों का बेहिसाब प्यार मिला है.उससे भी ज्यादा प्यार मुझे सोशल साईट फेसबुक पर मिला है.कई लोग मेरी पोस्ट फायरिंग स्टाइल से खुश भी थे और कई लोग वो पिछड़ न जाए इस डर से आहत भी थे. दोस्तों मैंने आपके आशीर्वाद, .आपके मार्गदर्शन और दुआओं से हिंदी ब्लोगिंग का अपना लक्ष्य पूरा किया है.मैं जानता हूँ कुछ लोग मुझे से खुश है और कई लोग मुझ से नाखुश है.लेकिन मैं उनका भी आभारी हूँ और मुझे उनकी आलोचनाओं का इसीलिए इंतजार है कहीं द्वेष भावना में भटक न जाऊं.  यदि अगर भटक जाऊं तब भी रास्ते पर आ जाऊं.
                      मैं शुक्रगुज़ार हूँ मेरी शरीके हयात का. जिसने मुझे हौंसला  दिया और ऐसे हालत दिए कि मैं यह सब कर सका.मैं शुक्रगुज़ार हूँ मेरे पत्रकार साथियों का और मेरे अदालत के वकील साथियों का जिन्होंने मुझे प्यार से नवाज़ा. खासकर पत्रकार के. डी. अब्बासी का भी आभारी हूँ और मेरी एक अनजान खुबसूरत मासूम सी महिला मित्र का भी आभारी हूँ. जिसने मुझे पुराने वक्त से निकाल कर नये अंदाज़ में लाकर खड़ा किया और नया लिखने का हौंसला दिया.मुझे मेरे साथियों के प्यार, आलोचना और समालोचना का उचित मार्गदर्शन के लिए हमेशा इंतजार था, इंतजार है और इंतजार रहेगा. एक बार फिर मेरे सभी साथियों का बहुत-बहुत शुक्रिया!                 -एडवोकेट अख्तरखान अकेला, कोटा-राजस्थान (M-9829086339)

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