आपका-अख्तर खान

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06 मई 2013

हाँ मैं भी प्रतिदिन

हाँ मैं भी प्रतिदिन ढेरों ख्वाब सजाता हूँ ,
सूरज की किरण,आशा की जोत जलाता हूँ ।
छलकते हैं आंसू मेरी आँख में ,चाहत के ,
पलकों के बीच उनको छिपा लेता हूँ ।
देखता हूँ ख्वाब तुझे पाने के ,हरदम ,
तन्हाई में तुझसे बात किया करता हूँ ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
८ २ ६ ५ ८ २ १ ८ ० ०

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