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06 मई 2013

मौन रहकर भी



मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा है,
दर्द चेहरे से बयां वो हो रहा है ।

सोचा था जिऊँगा खुशहाल होकर ,
तनहा जीवन आज बोझिल हो रहा है ।

उम्र गुजरी सोचा नहीं मैंने कभी कुछ ,
जो नहीं सोचा वही सब हो रहा है ।

साथ थे मेरे हजारों हम सफ़र ,
आज क्यों सूना सा जीवन हो रहा है ?

मधुमास के दिन और रातें अब कहाँ ,
पतझड़ सा यौवन,उजड़ा सा आँगन हो रहा है ।

आंसू नहीं बहते मेरी आँख से अब ,
राजे दिल ,कौन फिर खोल रहा है ?

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

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