क्या नरेगा में भ्रष्टाचार की बहुत शिकायतें नहीं हैं?
शुरू में अनियमितताएं थीं। खातों में गड़बडिय़ां थीं। फर्जी भुगतान उठ रहे थे। हमने सिस्टम बदला और बहुत से दोषियों को जेल पहुंचाया।
नरेगा में खर्च 6500 करोड़ से घटकर 3000 करोड़ ही क्यों रह गया है? क्या यह विफलता नहीं?
यह गौरव की बात है। ये डवलपिंग स्टेट का पैमाना है। मजदूर अब सरकार के सौ सवा सौ के बजाय बाजार की महंगी दर काम करने जा रहा है।
बीओटी व टोल पॉलिसी में खामियां क्यों हैं?
सड़कों पर कहीं भी गड्ढ़ा दिखना ही नहीं चाहिए। ये उनकी जिम्मेदारी है। टोल नाके सिर्फ टोल एकत्र करने के लिए नहीं हैं। लोगों को चाहिए कि वे टोल नाके पर रुकें और वहां रखे रजिस्टर पर अपनी शिकायतें दर्ज करें। चंद्रभागा और बनास टोल पर अवैध वसूली हो रही थी। रात को पुलिस वाले, टोल वाले मिलकर पैसा बटोर रहे थे। हमने ट्रैप करवाया। मोरेल के पास नेशनल हाईवे पर टोल लगने जा रहा था, मैंने केंद्र को मना कर दिया। खराब सड़क हो तो टोल क्यों लगे!
क्या निर्माण सेक्टर में इंजीनियरों-अफसरों की कमीशनखोरी संस्थागत भ्रष्टाचार नहीं?
भ्रष्टाचार तो दिखता है। असल बात है इसे साबित करना। हमें सड़क खराब दिखती है, लेकिन कैसे साबित करें कि भ्रष्टाचार हुआ है। इसके लिए ऐसे विशेषज्ञों की मदद लेते हैं, जो भ्रष्टाचार बंद करने में दिलचस्पी रखता हो। ये तो ऐसा महकमा है, जहां भारी गड़बड़ की गुंजाइश है। लेकिन इसका कोई टॉनिक नहीं है। रंग का डिब्बा नहीं कि लाओ और पेंट कर दो। प्रयास करते हैं। लेकिन मैं पूरे सिस्टम को ठीक करने के लिए नहीं आया हूं।
रघु शर्मा ने आपके खिलाफ खुले बयान दिए थे?
चुप रहकर बहुत अच्छा जवाब दिया जा सकता है। मैंने यही किया। मैं उनके बयानों से विचलित नहीं हुआ। मैं उनका तहेदिल से आभारी हूं कि उन्होंने मेरा इम्तिहान लिया और मैंने अपना संयम नहीं खोया।
इस गुस्से की वजह?
नरेगा के कामों में उन दिनों मजदूरों से काम करवाने के बजाय जेसीबी से काम करवाने की शिकायतें आ रही थीं। मैंने रातोरात एक स्पेशल टीम भेजकर जांच करवाई थी। शिकायत सही पाई गई थी।
रघु का जेसीबी से क्या लेना-देना था?
मैं अब डिटेल में नहीं जाता। विभाग का मंत्री था। अगर उन्हें ध्यान में रखकर या कलेक्टर को सूचित करके कार्रवाई करता तो यह मैसेज जाता कि मैं शक्ल देखकर कार्रवाई कर रहा हूं।
मुख्यमंत्री के रूप में वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत में तुलना करें तो?
मैं तब विपक्ष में था। विपक्ष में कंपलेशन कम होते हैं। अब मैं कुछ ही बोल सकता हूं, सब कुछ नहीं। अशोक गहलोत ने मुझे दोनों बार चुनौतीपूर्ण महकमे दिए। फ्रीहैंड दिया और मैंने अचीव किया।
नरेगा में भ्रष्टाचार रोकने की कोशिश की तो सीएम ने आपका विभाग क्यों बदल दिया?
लोग ऐसी बात करते हैं। लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचता हूं। उन्होंने जब विभाग बदलना चाहा तो मुझसे कहा कि सड़कें देश-प्रदेश के लिए अहम हैं। इन्हें दो साल में सुधार दो। मैंने डेढ़ साल में ये करने की कोशिश की।
धारीवाल व आपके बीच विवाद क्यों रहता है?
मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि हम एक ही टीम के दो खिलाड़ी हैं। हमारा मूल्यांकन उसी आधार पर करें।
आप पेंटर हैं और पॉलिटिक्स में आ गए।
मैं बड़ौदा से फाइन आट्र्स का ग्रेजुएट हूं, लेकिन पॉलिटिक्स से बड़ी कोई फाइन आर्ट नहीं है। यही आर्ट है। अब इससे विचित्र बात और क्या होगी कि मैं पॉलिटिकल कैनवास पर तस्वीरें पेंट करने की कोशिश कर रहा हूं।
आपको पहली बार कांग्रेस से टिकट लेने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा?
78 में मैं पहली बार सरपंच रहा। तीन बार सरपंच और दो बार प्रधान रहा। एमएलए का टिकट मांगा, लेकिन नहीं दिया। लोगों ने निर्दलीय लड़वाया। जिला प्रमुख के लिए लड़ा, लेकिन कांग्रेस ने मदद नहीं की।
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