३ मई
को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में सारी दुनिया में मनाया
जाता है. लेकिन आज ये दिवस एक औपचारिकता भर मालूम होता है. स्वयं मीडिया ही
इस दिवस के प्रति धीर-गंभीर नहीं दिखाई दे रहा है. हमारे देश में प्रेस की
स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत दी गई वाक एवं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में अंतर्निहित है. हमारे यहाँ जिस प्रकार से
मीडिया के सभी अंगों का विकास हो रहा है, उसे देखते हुए मीडिया के कार्यों
का विश्लेषण करने की जरुरत है. मीडिया के सभी अंग अपनी दिशा से भटके हुए
हैं, और ये बात बहुत गलत नहीं है. आज युवा वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा
मीडिया को अंगीकार कर रहा है लेकिन वह दायित्वों के पसीने से बचकर चकाचौंध
भरी दुनिया की अपनी तमाम ख्वाहिशों को पूरा करने में जुटा हुआ है. ग्रामीण
भारत की आखिर कितनी सुध ले रहा है हमारा मीडिया ? जबकि ये देश गाँव का ही
है. क़त्ल, बलात्कार और डकैती ही मीडिया को गाँव की ओर आकर्षित करती है.
प्रेस समाज का आइना होता है जो समाज में घट रही हर अच्छी बुरी चीज को जनता
के सामने लाता है. लेकिन कल तक जो प्रेस जनता को समाज का आइना दिखाता था वह
आज कई प्रकार के दवाब तथा अधिक बलवान और धनवान बनने की चाह में अपने
आदर्शों के साथ समझौता करता नजर आ रहा है. आज प्रेस और मीडिया लोगों के लिए
एक पेशा बन कर रह गया है. खबरें आज समाज से निकाली कम जाती हैं और उन्हें
बनाई ज्यादा जाती हैं. यह भी कहा जा सकता है की खबरें मीडिया में शोषण का
शिकार हो रही हैं तो कुछ गलत नहीं होगा. संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1993
में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी. संयुक्त राष्ट्र संघ के
अनुसार, इस दिन प्रेस की स्वतंत्रता के सिद्धांत, प्रेस की स्वतंत्रता का
मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस
की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है.
लेकिन इस दिन आज हमारा मीडिया कितना इस दायित्व को निभा रहा है ?
इक्का-दुक्का को छोड़कर श्रद्धांजलि देने का काम भी हमारा मीडिया शायद ही
ठीक से कर रहा है. जबकि होना तो ये चाहिए की कम से कम इस दिन तो सारे देश
का मीडिया एकजुट होकर इस दिन की सार्थकता को अंजाम देता. कम से कम आज के
दिन तो ख़बरों में तड़का लगाने से परहेज करता. लेकिन नहीं. ऐसा होने पर टी
आर पी पर असर पड़ सकता है. जो की हरगिज बर्दास्त नहीं है. प्रेस की आजादी को
छीनना भी देश की आजादी को छीनने की तरह ही होता है. चीन, जापान, जर्मनी,
पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आजादी नहीं है. यहां की प्रेस
पर सरकार का सीधा नियंत्रण है. इस लिहाज से हमारा देश उनसे ठीक है. आज
मीडिया के किसी भी अंग की बात कर लीजिये- हर जगह दाव-पेंच का असर है. खबर
से ज्यादा आज खबर देने वाले का महत्त्व हो चला है. लेख से ज्यादा लेख लिखने
वाले का महत्तव हो गया है. पक्षपात होना मीडिया में भी कोई बड़ी बात नहीं
है. जो लोग मीडिया से जुड़ते हैं, अधिकांश का उद्देश्य जन जागरूकता फैलाना न
होकर अपनी धाक जमाना ही अधिक होता हैं. कुछ लोग खुद को स्थापित करने लिए
भी मीडिया का रास्ता चुनते हैं. कुछ लोग चंद पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर अपने
समाज के प्रति अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं. छदम नाम से भी मीडिया
में लोगों के आने का प्रचलन बढ़ा है. सत्य को स्वीकारना इतना आसान नहीं
होता है और इसीलिए कुछ लोग सत्य उद्घाटित करने वाले से बैर रखते हैं. लेकिन
फिर कुछ लोग मीडिया में अपना सब कुछ दाव पर लगाकर भी इस रास्ते को ही
चुनते हैं. और अफ़सोस की फिर भी उनकी वह पूछ नहीं होती, जिसके की वे हक़दार
हैं. आइये इस दिन की सार्थकता को बनाने और बढ़ाने में हम मिलकर योगदान
करें.
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