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03 मई 2013

कफस की बुलबुल''



है घर उसका कफस जैसा
जहाँ वो तड़फड़ाती है
है मायूसी उस बुलबुल सी
जो बाहर उड़ना चाहती है l

कतर कर पर परिंदे के
किस्मत जब जुल्म ढाती है
तसव्वुर के फलक पे उड़
हर बुलबुल लौट आती है l

अगर खोलो कफस को तो
हिम्मत ना कर पाती है
परों के बिन रही बरसों
अब यूँ ही लड़खड़ाती है l

-शन्नो अग्रवाल

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