आज विरह के चार दोहे राजस्थानी मे-
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आजा अब तो साहिबा,लागे दूखण नैण,
कान बावरे हो लिये,मीठे सुणे न बैण,
कतनी मन की मैं सुणू,या जाणै ना कोय,
बिन सिळवट की सेज पे,भोळा नैणा रोय,
रात को उपर डागळे,चन्दो मिलियो आय,
सासू पूछे राज तो,कह दी सुपणो आय,
नस नस तणगी तार सी,जरा लोच ना खाय,
भीजे बिन ना मोड़ ले,तड़क तड़क मर जाय,
-गोविन्द हाँकला
आज विरह के चार दोहे राजस्थानी मे-
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आजा अब तो साहिबा,लागे दूखण नैण,
कान बावरे हो लिये,मीठे सुणे न बैण,
कतनी मन की मैं सुणू,या जाणै ना कोय,
बिन सिळवट की सेज पे,भोळा नैणा रोय,
रात को उपर डागळे,चन्दो मिलियो आय,
सासू पूछे राज तो,कह दी सुपणो आय,
नस नस तणगी तार सी,जरा लोच ना खाय,
भीजे बिन ना मोड़ ले,तड़क तड़क मर जाय,
-गोविन्द हाँकला
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आजा अब तो साहिबा,लागे दूखण नैण,
कान बावरे हो लिये,मीठे सुणे न बैण,
कतनी मन की मैं सुणू,या जाणै ना कोय,
बिन सिळवट की सेज पे,भोळा नैणा रोय,
रात को उपर डागळे,चन्दो मिलियो आय,
सासू पूछे राज तो,कह दी सुपणो आय,
नस नस तणगी तार सी,जरा लोच ना खाय,
भीजे बिन ना मोड़ ले,तड़क तड़क मर जाय,
-गोविन्द हाँकला
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