आपका-अख्तर खान

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04 मई 2013

तुम नहीं साथ तो फिर याद भी आते क्यूँ हो

तुम नहीं साथ तो फिर याद भी आते क्यूँ हो
इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यूँ हो

डर जमाने का नहीं दिल में तुम्हारे तो फिर
रेत पर लिखके मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो

दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
अपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो

हमपे उपकार बहुत से हैं तुम्हारे,माना
उँगलियों पर उसे हर बार गिनाते क्यूँ हो

जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्‍हें
यूं ही अश्‍कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो

ज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग ये इंतज़ार की सरकार लगाते क्यूँ हो .....

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