आपका-अख्तर खान

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04 मई 2013

क्या फरक कि मैं चला या तू चला है ,

क्या फरक कि मैं चला या तू चला है ,
बात है कि फासला कुछ कम हुआ है |

एक अरसे से नहीं रूठी है मुझसे ,
मुझको किस्मत से फ़कत इतना गिला है |

टूटने वाला हूँ मैं कुछ देर में ,
ये मेरी अपनी अकड़ का ही सिला है |

तू भी इक दिन फेर लेगा मुंह यकीनन ,
खून में तेरे वही पानी मिला है |

आईने से मुंह चुराते हो भला क्यूँ ,
एक तेरा ही तो मुंह दूधों धुला है |

आज नाजायज है अपने ही शहर में ,
वो गुनाह जो सबकी गोदी में पला है |

दफ्न कर डाले हैं सबने फ़र्ज अपने ,
दौर ये अंगुली उठाने का चला है |

एक दिन बदलेगी ये तस्वीर, लेकिन
बोलने से क्या कभी पर्वत हिला है ?

----------------{Aakash Mishra}

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